जनसंघर्ष में रंगकर्म की भूमिका विषय पर विचार व्यक्त करते हुए मुख्य वक्ता डॉ. दादूलाल जोशी ने कहा कि भरतमुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना की है। इसमें लोक स्वभाव के चित्रण को नाटक का विषय बताया है। उन्होंने कहा कि दुनिया की ऐसी कोई भी कला नहीं है जो नाटक में समाहित न हो। भारत में नाट्य आंदोलन पर भारतेंदु व उसके बाद के तमाम लेखकों व कलाकारों ने अंग्रेजी साम्राज्य विरोधी संघर्ष में हिस्सा लिया। बंगाल की अकाल पीडि़त जनता के सहयोग के लिए इप्टा का जन्म हुआ। जो बाद में साम्राज्यवाद, फासीवाद, सांप्रदायिकता व पूंजीवाद के विरोध के साथ हर जन आंदोलन में सहभागिता को प्रेरक करने लगा। साहनी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वे एक संवेदनशील कलाकार थे जो जीवन पर्यंत जनसंघर्ष के पक्ष में अभिनय करते रहे।
विशिष्ट अतिथि भिलाई से आए मणिमय मुखर्जी ने साहनी के व्यक्तित्व व कृतित्व का विस्तार से परिचय दिया। साहनी ने इप्टा से जुड़कर अनेक नाटकों में काम किया। धरती के लाल, हकीकत, वक्त, काबुलीवाला, गर्म हवा, दो बीघा जमीन जैसी अनेक फिल्मों में जीवंत अभिनय किया। साहनी एक सुविधा संपन्न परिवार के थे जो चाहते तो पैतृक व्यवसाय चलाते हुए सुखपूर्वक जीवन यापन कर सकते थे लेकिन उन्होंने संघर्ष का रास्ता चुना। आजादी के आंदोलन में व आजादी के बाद जन संघर्ष में जेल गए। उन्होंने रंगकर्म की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केरल को साक्षर राज्य बनाने में रंगकर्मिय की बड़ी भूमिका रही है। आज स्त्रियों, दलितों के उत्पीडऩ व भ्रष्टाचार के विरोध में रंगकर्मी जुटे हुए हैं। रंगकर्म की भूमिका कभी कम नहीं हो सकती।
विशिष्ट अतिथि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल अग्रवाल ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में लेखक, नाटक, पत्रकारिता की बड़ी भूमिका रही है। तिलक ने गणेशोत्सव को जनचेतना का माध्यम बनाया। राजनांदगांव में बाल समाज, महाराष्ट्र मंडल के मंचों में राष्ट्रीय, सामाजिक मुद्दों पर व्याख्यान, वाद-विवाद होते रहा है। प्रयास अपना प्रभाव छोड़ जाता है। आजादी के बाद देश की स्थिति निराशाजनक है। आज इतना नैतिक पतन, भ्रष्टाचार देखने को मिल रहा है जिसका विरोध आवश्यक है।
मुख्य अतिथि श्रीवास्तव ने साहनी को याद करते हुए कहा कि वे एक प्रतिभाशाली कलाकार थे। उन्होंने जीवन पर्यंत वैचारिक निष्ठा को निभाया। मजदूरों किसानों के हक के लिए रंगकर्म को माध्यम बनाया। रंगकर्म की भूमिका पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे यहां भरतमुनि से इसकी शुरूआत हो चुकी थी। भारतेंदु ने इसे आगे बढ़ाया। इसे इप्टा ने वैचारिक दिशा दी। अंग्रेजों ने नाटक विरोधी जो कानून बनाया है वह आज भी लागू है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। 1936 से प्रलेस व इप्टा इसका विरोध कर रही है। सफदर हाशमी की हत्या के बाद भी रंगकर्मी पीछे नहीं हटा है।
अध्यक्षीय भाषण में तिवारी ने कहा कि लोग संसार को ही एक रंगमंच मानते आए हैं। हमारे राजनीतिज्ञ हमसे बड़े कलाकार हैं जो हर अभिनय में माहिर है। दरअसल हम जो कर रहे हैं वह कहां तक पहुंच रहा है हमें देखना है। उन्होंने साहनी पर प्रकाश डाला। हमारे पुरखों की वाणी प्रगतिशीलता का साथ देने प्रेरित करती है। उनकी उपेक्षा से वह पाखंडियों के हाथों पहुंच जाती है। बलराज ने कहा कि कोई यदि मानवता की सेवा करना चाहता है तो उसे श्रमिक वर्ग से जुडऩा पड़ेगा। एक लेखक के लिए व्यक्ति, समाज, वर्ग की भूमिका को समझना आवश्यक है। एक लेखक, कलाकार के रूप में बलराज साहनी की समझ स्पष्ट थी। कार्यक्रम का संचालन थानसिंह वर्मा व नरेश श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में कथाकार कुबेर साहू, मुकेश रामटेके, नलिनी श्रीवास्तव, संजय अग्रवाल, कैलाश श्रीवास्तव, प्रो.पीडी सोनकर, जैतराम साहू, नरेश श्रीवास्तव, मुन्ना बाबू, गजेंद्र झा, योगेश अग्रवाल, लखन साहू, गजेंद्र बघेल, सुधीर ठाकुर, गिरीश ठक्कर, सतीश भट्टड़, बंशीलाल जोशी, शंकर सक्सेना, यशवंत मेश्राम, राजेश जगने के अलावा बड़ी संख्या में लेखक- कलाकार उपस्थित थे।
भास्कर भूमि से साभार
No comments:
Post a Comment