-सारिका श्रीवास्तव
इंदौर, 29 अगस्त 2012। कॉमरेड ए.के.हंगल के निधन पर भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) तथा प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई द्वारा 29 अगस्त 2012, बुधवार को रीगल चौराहे पर स्थित देवी अहल्या केन्द्रीय लाइब्रेरी में श्रद्धांजली दी गई।
कॉमरेड ए.के.हंगल के बारे में चर्चा हुए सजला श्रोत्रिय ने बताया कि 1917 में सियालकोट में पैदा हुए हंगल साहब आजादी के पहले ट्रेड यूनियन से जुड़ने और मजदूरों के साथ उनके संघर्ष में लड़ते-लड़ते आजादी के आंदोलन से जुड़ गए। विचारों और कला की आजादी के लिए निडरता से बोलने में वे कभी नहीं हिचके, जिसका बड़ा खामियाजा उन्होंने भुगता भी, लेकिन फिर भी अपनी बात पर कायम रहे। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी थे। उन्होंने पाकिस्तान में भी कम्युनिस्ट पार्टी और मज़दूर संगठनों के साथ काम किया था और उसी दौरान वे फै़ज़ अहमद फ़ैज़ और सज्जाद ज़हीर जैसे दिग्गज वामपंथी लोगों के संपर्क में आए थे। हंगल साहेब कराची में कम्यूनिस्ट पार्टी के सचिव भी रहे। हिन्दी सिनेमा के आने वाले दिनों और आज बनने वाली आम आदमी को सच्चाई से दूर करती फिल्मों के लिए चिंतित रहते थे। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। वे भारत-पाकिस्तान दोनों की साझा संस्कृति के प्रतीक थे।
प्रगतिशील लेखक संघ, इंदौर के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार कृष्णकांत निलोसे जी ने उनको याद करते हुए बताया कि सन् 2004 में इंदौर आयोजित नवें राष्ट्रीय सम्मेलन में हमने उन्हें आमंत्रित किया था और लग रहा था कि वे आएंगे भी कि नहीं, पर वे आए और बड़े ही सहजता से सबसे मुलाकात भी की। बैंक की साहित्यिक पत्रिका के संपादक ब्रजेष कानूनगो ने कहा कि कॉ. हंगल का व्यतित्व विचार से परिपूर्ण था, वे मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर हमेशा कायम रहे और जिसके चलते उन्होंने फिल्मों में भी समझौता नहीं किया। विरोधियों ने उनका बायकाट किया लेकिन फिर भी उन्होंनेंने मनुष्यता का लेबल नहीं छोड़ा और हिंदुस्तान-पाकिस्तान की एकता पर जोर देते हुए अपनी बात पर कायम रहे और फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार का साथ दिया। आर्थिक विपन्नता कि स्थिति में टेलरिंग का काम किया और जीवन के उतार-चढ़ाव में दृड़ता के साथ बढ़ते रहे। ऑल इंडिया बैंक ऑफीसर्स एषोसिएसन के अध्यक्ष और प्रगतिशील लेखक संघ, इंदौर के संयोजक मंडल के साथी आलोक खरे ने उनको श्रृद्धांजलि देते हुए कहा कि आज के समय में ऐसे उदाहरण ढूंढना कठिन है। उन्होंने मार्क्सवाद को व्यवहारिक जीवन में उतारा और फिल्म लाइन में रहने के बावजूद प्रलोभन में पड़े। इप्टा और प्रलेस के साथ उनका जुड़ाव अंत तक बना रहा।
इप्टा के साथी रवि गुप्ता ने चर्चा करते हुए बताया कि हंगल साहेब जमीन से जुड़े इंसान थे। स्वतंत्रता संग्राम के काबुली गेट पर हुए प्रदर्षन के नरसंहार को उन्होंने भी देखा था। पढ़ाई के दौरान ही वे स्वतंत्रता आंदोलनों से जुड़ गए थे। आजादी के बाद 1949 में वे मुंबई आ गए। उनका इप्टा से संबंध आजादी से पहले का है और इसलिए मुल्क में तरक्की के गीत गाने एवं नाटक करने का संकल्प लेकर यहाँ आने के साथ ही वे इप्टा से जुड़ गए और अंत तक अपना संकल्प निभाते रहे। अपने जीवनकाल में उन्होंने करीब 40-50 नाटक भी किये। सन् 1965 से फिल्मों में आए हंगल साहेब ने छोटी-बड़ी अनेकों फिल्मों में अभिनय किया। कॉमरेड ए. केहंगल
सन् 2005 से जीवन की अंतिम साँस तक भारतीय जन नाट्य संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।
पुराने साथी बिंदल जी ने कहा कि फिल्मों में किए गए उनके रोलेल किरदार असल जीवन में हमें कुछ न कुछ शिक्षा जरूर देते थे। उन्होंने हमेषा साफ-सुथरी फिल्मों में ही काम किया। थिएटर भी किया। देष की आजादी के आंदोलन में भी भाग लिया। हमें ऐसे व्यक्ति से सीख लेते हुए अपने संगठन को आगे बढ़ाना है। श्री पी.सी. जैन ने याद करते हुए बताया भारत-सोवियत सांस्कृतिक संघ के अहमदाबाद में हुए अखिल भारतीय सम्मेलन में उनसे मेरी पहली बार मुलाकात हुई थी एवं इसी के मुंबई में हुए पश्चिम क्षेत्रीय सम्मेलन में जब उनसे फिर मुलाकात हुई तो मेरे कंधे पर बड़ी ही आत्मीयता से हाथ रखते हुए उन्होंने पूछा कि “कहाँ रुके हो ?” फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े होने के बाद भी बहुत सहज ओर सरल हृदय के व्यक्ति थे। एटक, इंदौर इकाई के सचिव रुद्रपालजी ने श्रृद्धांजली देते हुए कहा कि वे वामपंथी विचारों के प्रति समर्पित कलाकार थे।
प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई के सचिव वक्ताओं ने उनके बारे में बहुत सारी जानकारी देते हुए बताया कि फिल्मों में निरीह किरदार निभाने वाले हंगल साहेब का असली जीवन में जीवट व्यतित्व था। वे सियालकोट में जन्मे थे। ब्रिटिश मिल्कियत के दौरान उनके दादा डिप्टी कमिश्नर थे ओर उन्हें भी अंग्रेजी हुकुमत से नौकरी का ऑफर आया लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया और खान अब्दुल गफ्फार खान, भगत सिंह, फैज अहमद फैज से प्रेरित होने और आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। रोजगार के लिए उनके एक दोस्त ने कपड़ों की कटिंग का काम सीखने के लिए इंग्लैंड में प्रशिक्षण कि व्यवस्था की, लेकिन उनके पिता ने उन्हें नहीं जाने दिया और उन्होंने भारत में ही रहकर यह काम सीखा और इसरदास नाम की फर्म में दर्जी का काम करने लगे। वहाँ उनके साथ काम करने वाले साथियों के साथ होने वाले अत्याचार का
विरोध ही नहीं किया बल्कि सारे दर्जियों की बहुत बड़ी यूनियन बना दी। बाद में जब उन्हें नौकरी से निकाला गया तो इसी यूनियन के लोगों ने बहुत बड़ा आंदोलन किया।
अपनी आत्मकथा लिखने के दौरान कुछ दस्तावेज हासिल करने उन्हें पाकिस्तान जाना था, जिसके लिए उन्होंने मुंबई स्थित पाकिस्तानी हाई कमीशन से फोन करके सियालकोट की यात्रा के लिए वीजा मांगा था, जिसे उनकी सरल इमेज के चलते आसानी से एप्रूव कर दिया गया था और उन्हें दिल्ली स्थित पाकिस्तान के दूतावास में 14 अगस्त को मनाए जाने वाले पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के समारोह में आमंत्रित भी किया, जिसमें हंगल साहेब के साथ-साथ दिलीप कुमार और शबाना आजमी को भी आमंत्रित किया गया। जिसका बाल ठाकरे ने विरोध किया और धमकी दी, जिसके कारण दिलीप कुमार और शबाना आजमी नहीं गए। लेकिन हंगल साहेब गए और उसमें उपराष्ट्रपति के.ए. नारायणन और भाजपा के मुरलीमनोहर जोशी भी मौजूद थे। लेकिन ठाकरे ने इनमें से केवल हंगल साहब को ही सजा का फरमान सुनाया। जिसके बाद बाल ठाकरे ने उनकी फिल्मों पर प्रतिबंध लगा दिया। ठाकरे के डर से लोगों ने उन्हें फिल्मों में काम देना बंद कर दिया, लेकिन इसके बाद भी वे अपनी बात पर अडिग रहे और उन्होंने ठाकरे से माफी नहीं मांगी। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आपने बाल ठाकरे से दुश्मनी क्यों मोल ली तो उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के समय मैं दो बार जेल गया, संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन जिसे ठाकरे के पिता प्रबोधन ठाकरे ने चलाया था उसमें मैंने और मेरी पत्नी ने भाग लिया और मेरी पत्नी जेल भी गई ऐसे में मैं बाल ठाकरे से क्यों डरूँ। चुन्नीलालजी ने बताया कि उनको पस्तो, उर्दू, सिंधी, अंग्रेजी सहित कुल सात-आठ भाषाएँ बहुत अच्छी तरह आती थीं। कराची में उनकी दर्जी की दुकान पर ही बैठकें जमा करती थीं, जिसमें कॉमरेड सोभो ज्ञानचंदानी इत्यादी लोग भी शामिल हुआ करते थे। कार्यक्रम में कॉ. पेरीन दाजी भी उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संचालन सारिका श्रीवास्तव ने किया।