राजेश जोशी की कविता 'इत्यादि' के मंचन का एक दृश्य |
गुजरे चार पांच दिनों में बहुत तेजी के साथ फैलाई जा रही अफ़वाह यह है कि राजेश जोशी 70 के हो गए हैं । अफ़वाह को तथ्यात्मक बनाने के लिए भाई लोग 1946 की 18 जुलाई का हवाला इस तरह दे रहे हैं जैसे राजेश न हों प्रतीत्य समुत्पाद या अगर धुंआ है तो फिर आग भी वहीँ होगी मार्का अनुभवजन्य प्रमाण का कोई उदाहरण हों या चरक का कोई आसव हों । अब इन रयुमरमॉंगर्स को कौन बताये कि इस तरह के सरलीकरण के बारे में निदा साब लिखकर और जगजीत सिंह से गवा कर छोड़ गए हैं कि "दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है / सोच-समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला !!"
हम जिन राजेश जोशी को जानते हैं वे 70 के तो हरगिज नहीं हैं । हद्दतन 7 और 17 के बीच कहीं के हैं । पॉपुलर साहित्य की उपमाओं में कहें तो हमे वे मार्क ट्वेन के टॉम सायर और हक्लबेरी फिन के जोड़, जे के रोलिंग के जेम्स पॉटर-सिरियस ब्लैक-रेमुस लुपिन त्रयी के किशोरवय लुपिन, कुछ कुछ मराठी बालसाहित्य के बनास फास्टर फैणे, सत्यजित बाबू की फेलुदा के तोपेश उर्फ़ टोप्से, मालगुडी डेज के स्वामी और कई बार तो लोकप्रिय कार्टूनस्ट्रिप् डेनिस द मीनेस के प्रश्नाकुल डेनिस अधिक लगते हैं ।
ब्लॉन्डी सीरीज के डैगवूड बमस्टेड की तरह घर में सोफे पर बैठे दोनों हाथ ऊंचे कर अंगड़ाई लेकर "अरे यार , कहीं आने जाने की मत कहो, हमे तो घर में ही मजा आता है" कहते दिखने में आलसी से नजर आते , किन्तु इसी के साथ पूरी चैतन्यता के साथ शरलॉक होम्स की तरह साहित्य की भरीपूरी दुनिया में विचरते और खूब मेहनत से न जाने क्या क्या ढूंढ कर पढ़ते छानते राजेश । एलटीसी टूर में दिल्ली एअरपोर्ट से टिकिट कैंसल करवाके फ़टाफ़ट घर लौटते यात्राभीरु मगर किताबों में डुबकी लगाते जेर, जबर, पेश और नुक्तों की सही जगह तलाशने की फ़िक्र में डूबे राजेश ।
मुमकिन है 70 की उम्र राजेश जोशी हो गयी हो- राजेश जोशी तो 70 के नहीं हुए ।
कविता की आलोचना अपना डिपार्टमेंट नहीं है । इसलिए उनकी कविताओं की शल्यक्रिया वे करें जो इसमें पारंगत हैं । वे हमारे प्रिय कवि, नाटक लेखक, गल्पकार और कहानीकार हैं । (यूं तो वे बाकायदा प्रशिक्षित चित्रकार भी हैं मगर मरदूद कला की दुनिया के मेंडलीफों ने उन्हें कवि के खांचे में बाँध कर रख दिया है ।) एक पाठक के रूप में हमें राजेश जोशी की कवितायें बहुत अच्छी लगती हैं । तय नहीं कर पाते कि उस कविता विशेष की मारकता ज्यादा भायी या शिल्प ज्यादा रुचिकर लगा । तड़का बढ़िया था या पौष्टिकता !!
हम जिन राजेश जोशी को जानते हैं वे 70 के तो हरगिज नहीं हैं । हद्दतन 7 और 17 के बीच कहीं के हैं । पॉपुलर साहित्य की उपमाओं में कहें तो हमे वे मार्क ट्वेन के टॉम सायर और हक्लबेरी फिन के जोड़, जे के रोलिंग के जेम्स पॉटर-सिरियस ब्लैक-रेमुस लुपिन त्रयी के किशोरवय लुपिन, कुछ कुछ मराठी बालसाहित्य के बनास फास्टर फैणे, सत्यजित बाबू की फेलुदा के तोपेश उर्फ़ टोप्से, मालगुडी डेज के स्वामी और कई बार तो लोकप्रिय कार्टूनस्ट्रिप् डेनिस द मीनेस के प्रश्नाकुल डेनिस अधिक लगते हैं ।
ब्लॉन्डी सीरीज के डैगवूड बमस्टेड की तरह घर में सोफे पर बैठे दोनों हाथ ऊंचे कर अंगड़ाई लेकर "अरे यार , कहीं आने जाने की मत कहो, हमे तो घर में ही मजा आता है" कहते दिखने में आलसी से नजर आते , किन्तु इसी के साथ पूरी चैतन्यता के साथ शरलॉक होम्स की तरह साहित्य की भरीपूरी दुनिया में विचरते और खूब मेहनत से न जाने क्या क्या ढूंढ कर पढ़ते छानते राजेश । एलटीसी टूर में दिल्ली एअरपोर्ट से टिकिट कैंसल करवाके फ़टाफ़ट घर लौटते यात्राभीरु मगर किताबों में डुबकी लगाते जेर, जबर, पेश और नुक्तों की सही जगह तलाशने की फ़िक्र में डूबे राजेश ।
मुमकिन है 70 की उम्र राजेश जोशी हो गयी हो- राजेश जोशी तो 70 के नहीं हुए ।
जो अपने बचपन को सहेज कर रखते हैं, अपने अंदर के बच्चे को रोज नहला धुलाकर उसके बालों में करीने से कंघी करके तैयार करते हैं । मगर साथ ही उसे मोहल्ले की अमराइयों से आम और अमरुद तोड़ने तथा गली क्रिकेट के छक्कों चौकों से खुर्राट आंटी की खिड़कियों के कांच तोड़ने से नहीं रोकते, बल्कि उकसाते हैं । उसे चुपके से यूँही चलते फिरते अपना होमवर्क निबटाने के बाद धमाल करने से नहीं रोकते और कक्षा में फर्स्ट आने पर बजाय इठलाने के शर्म से लाल हो जाते हैं वे ही राजेश जोशी बन पाते हैं । जो भूगोल की किताब में लिखी पृथ्वी से सूरज की दूरी पर पूरी तरह यकीन करने के पहले उसे एक बार खुद नाप लेने की जुगत भिड़ाते रहते हैं वे ही राजेश जोशी बन पाते हैं ।
कविता की आलोचना अपना डिपार्टमेंट नहीं है । इसलिए उनकी कविताओं की शल्यक्रिया वे करें जो इसमें पारंगत हैं । वे हमारे प्रिय कवि, नाटक लेखक, गल्पकार और कहानीकार हैं । (यूं तो वे बाकायदा प्रशिक्षित चित्रकार भी हैं मगर मरदूद कला की दुनिया के मेंडलीफों ने उन्हें कवि के खांचे में बाँध कर रख दिया है ।) एक पाठक के रूप में हमें राजेश जोशी की कवितायें बहुत अच्छी लगती हैं । तय नहीं कर पाते कि उस कविता विशेष की मारकता ज्यादा भायी या शिल्प ज्यादा रुचिकर लगा । तड़का बढ़िया था या पौष्टिकता !!
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