बकरी रायपुर के मंच पर खेले गये उन नाटकाे मे शुमार है जिससे मै ज़बरदस्त प्रभावित रहा हूं, चुस्त निर्देशन, सशक्त पटकथा, प्रभावशाली अभिनय, अनुरुप प्रकाश व्यवस्था, पाञाे का सही चयन, नाटक की गति, अभिनेताओ का आपसी तालमेल. वाह ! रंगमंदिर के मंच पर उस दिन जो हुआ वह अदभुद था |
जिस समय बकरी नाटक प्रकाशित होकर बाजार में आया उस समय मणि मधुकर के दो नाटक 'रस गंधर्व' और 'दुलारी बाई' , मुद्राराक्षस जी का नाटक 'आला अफसर' और लक्ष्मी नारायण लाल के दो-तीन नाटक काफी खेले जा रहे थे| इसके अलावा रामेश्वर प्रेम, बादल सरकार ,विजय तेंदुलकर के नाटक भी नाट्य मंडलियों की पसंद बन कर उभरे थे ,लेकिन उस समय भी यह देखा गया था कि नाटक मंडलियों का मोह मोहन राकेश के दो नाटक 'आधे- अधूरे' और 'आषाढ़ का एक दिन' तथा धर्मवीर भारती का कालजेयी नाटक 'अंधायुग' की तरफ ही ज्यादा था | राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में उन दिनों 'बेगम का तकिया' जैसे भव्य नाटक खेले जा रहे थे|
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखित नाटक बकरी के निर्देशक थे मिर्जा मसूद | मिर्जा मसूद रायपुर के रंगमंच पर पिछले कई कई वर्षों से एक ऊंचे मुकाम पर खड़े हुए हैं | इस नाटक में मिर्जा मसूद ने अपनी निर्देशकीय क्षमता का लोहा मनवाया था नाटक की हर एक प्रेम में निर्देशक मौजूद था, इस नाटक में रायपुर शहर के बहुत से दक्ष अभिनेता एक साथ मंच पर मौजूद थे |नाटक एक व्यंग था और अभिनेताओं ने अपने निर्देशक का जबरदस्त साथ दिया था | मंच पर बेहतरीन अनुशासन ,उम्दा संवाद संप्रेषण ,अनुकूल संगीत, और परिणाम जिसे फिल्मी भाषा में कहा जाता है सुपर डुपर हिट |उस नाटक में जहां तक याद आ रहा है घनश्याम शेंद्रे ,आबिद अली , शाहनवाज ,शंकर चक्रवर्ती , दिनेश दुबे ,अजीज कबीर, मिनहाज असद , नीलिमा काठोटे वगैरा-वगैरा उस समय के नामचीन अभिनेता मौजूद थे लेकिन जिन के कंधे पर यह नाटक सफलता की ऊंची उड़ान भरा वह अभिनेता थे मोईज़ कपासी , इनके सहज अभिनय ने नाटक को नाटककार की कल्पना के अनुरूप एक सशक्त प्रस्तुति में परिवर्तित कर दिया था |
मिर्ज़ा मसूद पहले अविंतका के बैनर तले रंगकर्म किया करते थे उसके पश्चात वे इप्टा से जुड़े और उसके बाद वे महाकोशल नाट्य अकादमी के बैनर तले काम करने लगे लेकिन उन्होंने अवंतिका में अपना बेहतर रंगकर्म किया था |
मिर्ज़ा मसूद ने रायपुर के रंगमंच के लिए जो किया है उसके लिए रायपुर का रंगमंच उन्हें सदा सदा याद रखेगा |मैं मिर्जा मसूद की रंगमंचीय सोच उनकी सक्रियता उनकी लगन को सलाम करता हूं और दुआ करता हूं कि मंच का यह विशेषज्ञ सदा सक्रिय रहे ,स्वस्थ रहे , उम्र दराज़ रहे |
-अखतर अली
रायपुर (छत्तीसगढ)
मोबाइल न. 9826126781
जिस समय बकरी नाटक प्रकाशित होकर बाजार में आया उस समय मणि मधुकर के दो नाटक 'रस गंधर्व' और 'दुलारी बाई' , मुद्राराक्षस जी का नाटक 'आला अफसर' और लक्ष्मी नारायण लाल के दो-तीन नाटक काफी खेले जा रहे थे| इसके अलावा रामेश्वर प्रेम, बादल सरकार ,विजय तेंदुलकर के नाटक भी नाट्य मंडलियों की पसंद बन कर उभरे थे ,लेकिन उस समय भी यह देखा गया था कि नाटक मंडलियों का मोह मोहन राकेश के दो नाटक 'आधे- अधूरे' और 'आषाढ़ का एक दिन' तथा धर्मवीर भारती का कालजेयी नाटक 'अंधायुग' की तरफ ही ज्यादा था | राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में उन दिनों 'बेगम का तकिया' जैसे भव्य नाटक खेले जा रहे थे|
इन सब नाटकों में एक चिंता की बात यह थी कि यह खर्चीले थे| इनकी तुलना में सक्सेना जी का नाटक बकरी मंच पर कम तड़क-भड़क के साथ अधिक प्रभाव उत्पन्न करने वाला साबित हुआ था | इसकी एक वजह यह भी थी कि नाटककार एक कवि भी था उनका कवि होना उनके नाटय लेखन के लिए एक अतिरिक्त विशेषता साबित हुई| उसी समय सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी का एक अन्य नाटक अब 'गरीबी हटाओ' भी काफी पसंद किया जा रहा था | लोगों को इस लेखक से और भी अधिक नाटकों की उम्मीद थी, लेकिन उनके असामयिक निधन ने रंगमंच को गहरी क्षति पहुंचाई |
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखित नाटक बकरी के निर्देशक थे मिर्जा मसूद | मिर्जा मसूद रायपुर के रंगमंच पर पिछले कई कई वर्षों से एक ऊंचे मुकाम पर खड़े हुए हैं | इस नाटक में मिर्जा मसूद ने अपनी निर्देशकीय क्षमता का लोहा मनवाया था नाटक की हर एक प्रेम में निर्देशक मौजूद था, इस नाटक में रायपुर शहर के बहुत से दक्ष अभिनेता एक साथ मंच पर मौजूद थे |नाटक एक व्यंग था और अभिनेताओं ने अपने निर्देशक का जबरदस्त साथ दिया था | मंच पर बेहतरीन अनुशासन ,उम्दा संवाद संप्रेषण ,अनुकूल संगीत, और परिणाम जिसे फिल्मी भाषा में कहा जाता है सुपर डुपर हिट |उस नाटक में जहां तक याद आ रहा है घनश्याम शेंद्रे ,आबिद अली , शाहनवाज ,शंकर चक्रवर्ती , दिनेश दुबे ,अजीज कबीर, मिनहाज असद , नीलिमा काठोटे वगैरा-वगैरा उस समय के नामचीन अभिनेता मौजूद थे लेकिन जिन के कंधे पर यह नाटक सफलता की ऊंची उड़ान भरा वह अभिनेता थे मोईज़ कपासी , इनके सहज अभिनय ने नाटक को नाटककार की कल्पना के अनुरूप एक सशक्त प्रस्तुति में परिवर्तित कर दिया था |
मिर्जा मसूद हमेशा से सक्रिय रहे हैं | मिर्जा भाई के सामने कई निर्देशकों ने अभिनेताओं ने अपनी रंगमंच की पारी शुरू की और वह रिटायर हो गए लेकिन मिर्जा भाई आज भी अपने पूरे दमखम के साथ रायपुर के हिंदी रंगमंच पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं | मिर्जा मसूद के द्वारा निर्देशित अन्य महत्वपूर्ण नाटक है एक सत्य हरिश्चंदर ,अंधों का हाथी ,अंधायुग, सबरंग मोहभंग, कबीरा खड़ा बाजार में, चंद्रमा सिर उर्फ चंपू ,गोदान ,अंधा युग , लोककथा 78 , पगला घोड़ा , तमाशा, | मिर्जा मसूद के नाटकों में जिन महत्वपूर्ण रंगकर्मियों ने काम किया है उनमें महत्वपूर्ण लोग हैं श्री मोबिन शम्स, जावेद इकराम हैदर ,अमर पांडे , जयप्रकाश मसंद ,शोभा यादव ,दिनेश दुबे, मकीउदीन अहमद , मिनहाज असद ,याेगेश नैयर ,निसार अली ,ज्वाला कश्यप, कीर्ति आयंगर ,इस्माइल खान, सलीम अंसारी बलदेव संधू आदि |
मिर्ज़ा मसूद पहले अविंतका के बैनर तले रंगकर्म किया करते थे उसके पश्चात वे इप्टा से जुड़े और उसके बाद वे महाकोशल नाट्य अकादमी के बैनर तले काम करने लगे लेकिन उन्होंने अवंतिका में अपना बेहतर रंगकर्म किया था |
मिर्ज़ा मसूद ने रायपुर के रंगमंच के लिए जो किया है उसके लिए रायपुर का रंगमंच उन्हें सदा सदा याद रखेगा |मैं मिर्जा मसूद की रंगमंचीय सोच उनकी सक्रियता उनकी लगन को सलाम करता हूं और दुआ करता हूं कि मंच का यह विशेषज्ञ सदा सक्रिय रहे ,स्वस्थ रहे , उम्र दराज़ रहे |
-अखतर अली
रायपुर (छत्तीसगढ)
मोबाइल न. 9826126781
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