आज इप्टा अशोकनगर (मध्यप्रदेश) के ग्रीष्मकालीन बाल एवं किशोर शिविर में प्रमुख समकालीन बुन्देली ग़ज़लकार महेश कटारे सुगम ने गजलों का पाठ किया। इस अवसर पर इप्टा मध्य प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष हरिओम राजोरिया, वरिष्ठ चित्रकार और रंगकर्मी पंकज दीक्षित, रंगकर्मी सीमा राजोरिया, विनोद शर्मा, जनवादी लेखक संघ मध्यप्रदेश के प्रांतीय संयुक्त सचिव सुरेन्द्र रघुवंशी, व्यंग्यकार वीरेन्द्र उदैनिया ,अर्चना, संजय माथुर , अरबाज खान, अभिषेक तिवारी एवं अन्य साथियों सहित सैकड़ों प्रतिभागी बच्चे भी मौज़ूद थे।
मूलतः बीना ( मध्य प्रदेश) के निवासी सुगम जी की गजलें बिम्ब और प्रतीक विधान में भी अग्रणी हैं।उनके पास जनभाषा का सम्पूर्ण सौंदर्य शास्त्र है और शब्दों में प्रिय, आकर्षक आँचलिक गंध भी।उनकी गजलें हमारे ग्रामीण भारत का सच्चा रोजनामचा हैं। जहाँ आज भी छल-कपट से विहीन कृषक मज़दूर जीवन में मनुष्यता को बचाये हुए है।जहां रिश्ते और और परम्पराएं आज भी जीवित हैं। जहां धूल धूसरित बच्चे गोबर लिपे कच्चे घरों में वैश्विक षड्यंत्रों से अनजान एक खुशहाल जीवन का सपना पाले हैं।महेश कटारे सुगम ऐसे सरल गॉवों और भोले- भाले लोगों के जन कवि हैं। ऐसे लोक कवि / गजलकार महेश कटारे सुगम को मेरा सलाम जिनकी रचनाओं में क्रांति का आगाज़ है।
महेश कटारे सुगम अपनी बुंदेलखंडी लोक भाषा में प्रखर और प्रतिबद्ध प्रगतिशील जनवादी गजलों के लेखन के लिए जाने जाते हैं ।वे बड़ी पाठक संख्या के साथ फेसबुक पर सर्वाधिक पढ़े जाने वाले कवियों में शुमार हैं।अब जबकि लोक भाषाएँ खतरे में आकर साहित्य में होकर लुप्तप्राय होती जा रही हैं ; ऐसे विरुद्ध बाजारवादी समय में महेश कटारे सुगम बुन्देली/ बुंदेलखंडी क्षेत्रीय लोक भाषा को बचाने में दिन -रात जुटे हैं । उनकी गजलों में शोषित और दमित जनता जनता की आवाज़ है और व्यवस्था के प्रति गहरा और ज़रूरी आक्रोश है।उनकी वैचारिकता इन्हें अपने समय के प्रमुख कवियों में शामिल करती है।
महेश कटारे सुगम अपना प्रतिरोध दर्ज़ कराने के लिए कभी संकोच , भ्रम और भय को अपने पथ में बाधा नहीं बनने दिया।वे अन्याय के ख़िलाफ़ जनता के पक्ष में खड़े होकर निर्भीकता के साथ समूची पाखंडी, दोमुंही और शोषणकारी व्यवस्था को गरियाते हैं। ऐसा करते हुए वे हमारे समय के दुष्यन्त और निराला लगते हैं।आज के विरुद्ध समय में उनकी आवाज़ की बहुत ज़रूरत है।
मूलतः बीना ( मध्य प्रदेश) के निवासी सुगम जी की गजलें बिम्ब और प्रतीक विधान में भी अग्रणी हैं।उनके पास जनभाषा का सम्पूर्ण सौंदर्य शास्त्र है और शब्दों में प्रिय, आकर्षक आँचलिक गंध भी।उनकी गजलें हमारे ग्रामीण भारत का सच्चा रोजनामचा हैं। जहाँ आज भी छल-कपट से विहीन कृषक मज़दूर जीवन में मनुष्यता को बचाये हुए है।जहां रिश्ते और और परम्पराएं आज भी जीवित हैं। जहां धूल धूसरित बच्चे गोबर लिपे कच्चे घरों में वैश्विक षड्यंत्रों से अनजान एक खुशहाल जीवन का सपना पाले हैं।महेश कटारे सुगम ऐसे सरल गॉवों और भोले- भाले लोगों के जन कवि हैं। ऐसे लोक कवि / गजलकार महेश कटारे सुगम को मेरा सलाम जिनकी रचनाओं में क्रांति का आगाज़ है।
- सुरेन्द्र रघुवंशी
सराहणीय
ReplyDeleteसराहणीय
ReplyDelete