Monday, August 13, 2012

अभी आप तैयार नहीं हैं

-मोहनदास करमचंद गांधी 

"जंतर मंतर पर चुनावी राजनीति में उतरने से पहले अण्णा हजारे उधेड़बुन में थे। यह उधेड़बुन ‘गांधी-मार्ग’ पत्रिका में छपे गांधीजी के एक भाषण को पढ़ कर खड़ी हुई। उन्होंने गांधीजी के आलेख की प्रतियों का अपने सहयोगियों से साझा भी किया। हालांकि अंतिम फैसला कुछ और हुआ। 20 मार्च, 1940 को रायगढ़ में कांग्रेस के अधिवेशन में दिया गया भाषण। गांधीजी बोले हिंदी में ही थे, पर उनके इस भाषण का कोई हिंदी प्रारूप नहीं मिलता। इसलिए यह अंश ‘गांधी-मार्ग’ में संपूर्ण गांधी वांग्मय में दिए गए अंग्रेजी विवरण से अनुवाद किया गया है।" -संपादक जनसत्ता
यहां आकर मुझे यह तमाम चर्चा सुनने का अवसर मिला, इसकी मुझे खुशी है। जब मैं देखता हूं कि हर वक्ता की जुबान पर ‘सविनय अवज्ञा’ शब्द ही था तो मुझे ‘बाइबिल’ की यह उक्ति याद आ जाती है: ‘‘प्रभु-प्रभु’ की रट लगाने वाले हर व्यक्ति को स्वर्ग के साम्राज्य में प्रवेश नहीं मिलेगा; जो स्वर्ग में विराजमान मेरे पिता (परमेश्वर) की इच्छा के अनुसार आचरण करेगा, केवल उसी को उस साम्राज्य में प्रवेश मिलेगा।’’ (हर्षध्वनि) मुझे आपकी तालियों की गड़गड़ाहट की जरूरत नहीं है। मैं तो आपके हृदय और बुद्धि को जीतना चाहता हूं और तालियों की गड़गड़ाहट और वाहवाही से मेरे उस विजय अभियान में बाधा पड़ती है। सविनय अवज्ञा के नारे लगाने वाले लोग सविनय अवज्ञा शुरू नहीं कर सकते। उसे करने की सामर्थ्य तो केवल उन्हीं में है जो उसके लिए काम करते हैं। सच्ची सविनय अवज्ञा की दृष्टि से ऐसे आंदोलन में भाग लेने वालों के लिए यह जरूरी है कि उन्हें जो करने का आदेश दिया जाए उसे करें और जो करने का निषेध किया जाए, उसे न करें। सही ढंग से शुरू की गई और सही ढंग से चलाई गई सविनय अवज्ञा का परिणाम निश्चित तौर पर स्वराज्य के रूप में प्रकट होगा। 

मुझे लगता है कि आप अभी तैयार नहीं हैं। इसलिए जब मैंने आपको उन वक्ताओं की वाहवाही करते देखा, जिन्होंने कहा कि हम तैयार हैं, तो मुझे बड़ा आघात पहुंचा। कारण, मैं जानता हूं कि हम तैयार नहीं हैं। यह सच है कि हम सब यह जानते और महसूस करते हैं कि हम अपने ही देश में गुलाम बन कर रह रहे हैं। हम यह भी महसूस करते हैं कि स्वतंत्रता हमारे लिए आवश्यक है। फिर, हम यह भी महसूस करते हैं स्वतंत्रता के लिए हमें लड़ना पड़ेगा। तत्काल सविनय अवज्ञा आरंभ करने की मांग करने वाले वक्ताओं को वाहवाही देने में मैं भी शरीक हो सकता हूं। एक चोर मेरे घर घुस आया है और उसने मुझे अपने ही घर से बाहर निकाल दिया है। मुझे उससे लड़ कर अपना घर वापस लेना है, लेकिन वैसा करने से पहले मुझे उसके लिए पूरी तरह तैयार हो जाना चाहिए। (हर्षध्वनि) आपकी तालियों से केवल यही प्रकट होता है कि इस तैयारी का मतलब क्या है, यह आप नहीं समझते। आपके सेनापति को लग रहा है कि आप तैयार नहीं हैं, आप सच्चे सिपाही नहीं हैं और अगर हम आपके बताए रास्ते पर बढ़े तो निश्चय ही हमारी हार होगी। और यह जानते हुए मैं आपसे लड़ने को कैसे कह सकता हूं? मैं जानता हूं कि आपके जैसे सिपाहियों को लेकर लड़ूं तो मेरी पराजय होगी। 

मुझे यह साफ कर देना चाहिए कि मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला हूं, जिसके लिए मुझे बाद में पछताना पड़े। इतने वर्षों से किसी भी संघर्ष में मैंने पराजय स्वीकार नहीं की है। कुछ लोग राजकोट का उदाहरण सामने रख सकते हैं, लेकिन मैं मानता हूं कि मेरे लिए वह पराजय नहीं थी। यह बात तो भावी इतिहास ही बताएगा। मेरे कोश में ‘पराजय’ शब्द नहीं है, और मेरी सेना में भरती किया जाने वाला हर आदमी इस बात के लिए आश्वस्त रहे कि सत्याग्रही कभी पराजित नहीं होता। 

मैं आपको भरोसा दिलाता हूं और सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करता हूं कि जब आप तैयार होंगे, मैं आगे बढ़ चलूंगा और तब हमारी विजय होगी- इसमें मुझे तनिक भी संदेह नहीं है; यही बात मैंने विषय-समिति में कही थी और उसी को यहां फिर दोहराता हूं। अपने दिल और दिमाग को शुद्ध कीजिए। यहां उपस्थित कुछ लोग जरूरी नहीं हैं। मैं उन लोगों की ईमानदारी और बहादुरी पर शक नहीं करता। लेकिन, जैसा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आपको बताया है, उनकी बात से उनके मन की कुछ कमजोरी प्रकट होती है। खैर, जो बात मैं पिछले बीस वर्षों से कहता आया हूं वही आपसे फिर कहता हूं- सत्याग्रह और चरखे में गहरा आपसी संबंध है, और मेरी इस मान्यता को लोग जितनी ज्यादा चुनौती देते हैं, उसमें मेरी आस्था उतनी ही अधिक दृढ़ होती जाती है। यह बात न होती तो मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूं कि दिन-रात यहां तक कि रेलगाड़ी में भी और डॉक्टरों की सलाह के खिलाफ भी चरखा चलाता रहूं। डॉक्टर तो चाहते हैं कि मुझे अपने-आपको तैयार करना है। मैं चाहता हूं कि आप भी इसी आस्था से चरखा चलाएं। और अगर आप ऐसा नहीं करते और नियमपूर्वक खादी नहीं पहनते तो आप मुझे धोखा देंगे। सारी दुनिया को धोखा देंगे। जो चरखे में विश्वास नहीं करता वह मेरी सेना का सिपाही नहीं बन सकता। 

मेरे लिए तो अहिंसा के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं है। मेरी मृत्यु के समय भी मेरे अधरों पर अहिंसा का ही नाम होगा, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन आप मेरी तरह इससे प्रतिबद्ध नहीं हैं, और इसलिए आपको कोई दूसरा कार्यक्रम अपना कर देश को स्वतंत्र करने की पूरी छूट है, लेकिन अगर आप न तो यह करना चाहें और न चरखा चलाएं और यह इच्छा करें कि मैं लड़ाई आरंभ कर दूं तो यह तो बड़ी कठिन बात होगी। अगर आपको लगता हो कि आपको लड़ना है और अभी तुरंत लड़ना है और अगर आपको यह विश्वास हो कि उस लड़ाई को जीतने का कोई और रास्ता भी है तो मैं आपसे कहूंगा कि आप आगे बढ़िए और अगर आप विजयी हुए तो आपको शाबाशी देने वालों में मैं सबसे आगे रहूंगा। लेकिन अगर आप मुझे छोड़ना नहीं चाहते और साथ ही मेरे रास्ते पर चलना और मेरे निर्देशों का पालन करना भी नहीं चाहते तो फिर मैं जानना चाहूंगा कि आप मुझसे किस तरह का सेनापति बनने की अपेक्षा रखते हैं। जो लोग यह रट लगाए हैं कि सविनय अवज्ञा अविलंब आरंभ की जाए, वे चाहते हैं कि मैं उनका साथ दूं। क्यों? इसलिए कि जन साधारण मेरे साथ है। मैं निस्संकोच कहता हूं कि मैं आम जनता का आदमी हूं। हर क्षण मैं करोड़ों भूखे लोगों के लिए दुख का अनुभव करता हूं। उनके कष्ट दूर करने और उनकी तकलीफों को कम करने के लिए ही मैं जिंदा हूं और इसी के लिए मैं अपने प्राण भी दे देने को तैयार हूं। मैं दावा करता हूं कि उन करोड़ों लोगों पर मेरा कुछ प्रभाव है, क्योंकि मैं उनका निष्ठावान सेवक रहा हूं। मैं सबसे अधिक वफादार उन्हीं के प्रति हूं, और आप मेरा साथ छोड़ दें या मुझे मार डालें तब भी अगर मैं चरखे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हूं तो उन्हीं की खातिर हूं। कारण मैं जानता हूं कि अगर मैं चरखा-संबंधी शर्त में ढील दे दूं तो उन करोड़ों मूक लोगों के विनाश का सामान जुटा दूंगा, जिनके लिए मुझे ईश्वर के दरबार में जवाब देना होगा। इसलिए अगर आप उस अर्थ में चरखे में विश्वास नहीं करते जिस अर्थ में कि मैं करता हूं तो आपसे मेरा निवेदन है कि आप मुझे छोड़ दें। आप मुझ पर पत्थर बरसाएं और मुझे मार डालें तब भी मैं जन साधारण के लिए काम करने की अपनी लगन नहीं छोडूंगा। यह है मेरा रास्ता। अगर आप समझते हों कि कोई और रास्ता भी है तो मुझे अकेला छोड़ दें।

स्वतंत्रता की लड़ाई में चरखे के बिना मैं आपको जेल जाने का आदेश नहीं दे सकता। मैं ऐसे किसी आदमी को अपनी सेना में नहीं लंूगा जो चरखे में विश्वास नहीं करता। मैं तभी आगे बढ़ंूगा जब मुझे भरोसा हो जाएगा कि चरखे में आपकी आस्था है, आपका विश्वास है। याद रखिए कि अगर यहां एकत्र हम लोग कोई भूल करेंगे तो उससे करोड़ों मूक लोगों पर कष्टों का तूफान फट पड़ेगा। कांग्रेस प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, और आपको आने वाली विपत्ति से सावधान करना है। इसलिए मुझे तो बहुत सावधानी से आगे बढ़ना है।
बहुत-से वक्ताओं ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की बुराइयों पर अपने विचार व्यक्त किए। उस बात की मैं और चर्चा नहीं करना चाहता। इतना ही कहूंगा कि हमें उससे छुटकारा पाना है। मैंने आपको इसका गुर बता दिया है। मैं सत्याग्रह तभी आरंभ करूंगा जब मुझे पूरा विश्वास हो जाएगा कि आपने मेरे उपचार को समझ लिया है।
अगर आप किसी डॉक्टर की दवा उसकी हिदायतों के अनुसार लेने को तैयार नहीं हैं तो उससे कोई दवा बताने को कहना बेकार है। ऐसी बात हो तो मैं तो यही कहूंगा कि आप अपने रोग के इलाज के लिए कोई और डॉक्टर ढूंढ़ लें। आज आपने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ जितने भाषण सुने हैं, वे सब आपको उससे छुटकारा पाने में मदद नहीं देंगे। उनसे सिर्फ आपका क्रोध ही भड़केगा। इससे समस्या हल नहीं होगी। क्रोध सत्याग्रह के प्रतिकूल है। ब्रिटेन के लोगों से हमारा कोई झगड़ा नहीं है। हम उनको मित्र बनाना चाहते हैं और अपने प्रति उनकी सद्भावना कायम रखना चाहते हैं- लेकिन उनकी प्रभुता के आधार पर नहीं, बल्कि स्वतंत्र और समान दर्जे का उपभोग करने वाले भारत की बुनियाद पर।

स्वतंत्र देश के रूप में भारत किसी के प्रति विद्वेष नहीं रखेगा और न किसी अन्य देश को अपना गुलाम बनाना चाहेगा। हम शेष संसार के साथ कदम मिला कर आगे बढ़ेंगे- ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार हम संसार से यह आशा रखेंगे कि वह हमारे साथ कदम मिला कर चले। इसलिए याद रखिए कि आपको बाहरी और आंतरिक दोनों शर्तें पूरी करनी हैं। अगर आप आंतरिक शर्त पूरी करेंगे तो फिर अपने विरोधी से घृणा करना छोड़ देंगे। आप उसका विनाश नहीं चाहेंगे और उसके विनाश का प्रयत्न नहीं करेंगे, बल्कि ईश्वर से प्रार्थना करेंगे कि वह उस पर दया करे। इसलिए सरकार के कुकृत्य का वर्णन करते रहने में अपनी शक्ति न लगाएं, क्योंकि हमें उसका संचालन करने वालों का हृदय-परिवर्तन करके उनकी मित्रता प्राप्त करनी है। और फिर कोई स्वभाव से तो बुरा नहीं होता। और अगर दूसरे बुरे हैं तो क्या हम कुछ कम बुरे हैं? यह दृष्टिकोण सत्याग्रह का सहज गुण है और मैं तो कहंूगा कि यहां भी एक ऐसी चीज है, जिसको आप नहीं मानते तो मुझे मुक्त कर दीजिए। कारण, मेरे कार्यक्रम में विश्वास रखे बिना और मेरी शर्तों को स्वीकार किए बिना अगर आप मेरे साथ होंगे तो आप मुझे, स्वयं अपने को और हमारे उद्देश्य को भी नष्ट कर देंगे।

सत्याग्रह हर कीमत पर सत्य पर दृढ़ रहने का मार्ग है। और आप इस मार्ग का अनुसरण करने को तैयार न हों तो मुझे अकेला छोड़ दीजिए। आप भले ही मुझे निकम्मा कहें, मैं उसका बुरा नहीं मानूंगा। अगर यह बात मैं आपके सामने अभी और यहीं स्पष्ट न कर दूं तो मैं बरबाद हो जाऊंगा और मेरे साथ यह देश भी बरबाद हो जाएगा। सत्य और अहिंसा सत्याग्रह के मूल तत्त्व हैं और चरखा उनका प्रतीक है। जिस प्रकार किसी सेना का सेनापति इस बात का आग्रह रखता है कि उसके सिपाही एक खास किस्म की ही पोशाक पहनें, उसी प्रकार आपके सेनापति की हैसियत से मुझे इस बात का आग्रह रखना है कि आप चरखे को अपनाएं और वही आपकी पोशाक होगी। सत्य, अहिंसा और चरखे में पूरी आस्था रखे बिना आप मेरे सिपाही नहीं बन सकते। और मैं एक बार फिर कहता हूं कि अगर इसमें आपका विश्वास न हो तो मुझे अकेला छोड़ दीजिए और अपने तरीकों को आजमा कर देखिए।

जनसत्ता 12 अगस्त, 2012

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