रायपुर. प्रगतिशील लैखक संघ और इप्टा रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में वृंदावन हॉल रायपुर में आयोजित प्रसंग परसाई में प्रख्यात लेखक प्रभाकर चौबे ने मुख्य अतिथि की आसंदी से कहा कि हरिशंकर परसाई जी का समाज से बेहद जीवंत संपर्क था. वे सिर्फ रचनाकार ही नहीं बल्कि एक्टिविस्ट भी थे. आज के समय में जो लेखक राजनीति से परहेज़ करेगा वह भजन तो लिख सकता है किंतु साहित्य नहीं लिख सकता. परसाई जी समाज की तमाम चीजो से रस ग्रहण कर उसे विचारों में ढालते थे. आज फेसबुक, वाट्सएप जैसी सोशल मीडिया में प्रेमचंद और परसाई को सबसे ज्यादा उद्धृत किया जा रहा है, इसी से उनकी बढ़ती प्रासंगिकता का पता चलता है. परसाई जी हमेशा हम सबको रास्ता दिखाते रहेंगे.
विशेष अतिथि वरिष्ठ रचनाकार और संपादक ललित सुरजन ने अपने संबोधन में कहा कि इन दिनों समाज और देश में जो कुछ भी घट रहा है, उसमें परसाई जी बहुत याद आ रहे हैं. आज परसाई की रचनाओं को लेकर जनता के बीच जाने की जरूरत है. आज जड़ स्थिति को तोड़ना जरूरी है. परसाई की रचनाएं युवाओं के लिए साहित्य में प्रवेश की खिड़की खोल सकती है.
विशेष अतिथि प्रख्यात रंगकर्मी एवं निर्देशक मिनहाज असद ने परसाई जी से हुई मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी याददाश्त अद्भुत थी. वे रंगकर्मियों के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रिय साहित्यकार हैं. वे छोटे छोटे वाक्यों में अपने तर्कों को बेहद सरलता से रखते थे.लेखक और रंगकर्मी सुभाष मिश्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हरिशंकर परसाई आजादी के बाद के सबसे बड़े लोकशिक्षक हैं. वे समय व समाज को बहुत बारीकी से देखते हैं.उनके व्यंग्य में करूणा की अंतरधारा बहती हैं. आज सबसे ज्यादा नाटक परसाई की रचनाओं पर ही खेले जा रहे हैं.
दिल्ली से आईं रचनाकार हेमलता माहेश्वर ने अपने संबोधन में पाश की कविता का जिक्र करते हुए कहा कि समय ऐसा आ गया है कि शिकायत करें भी तो किससे करें और कैसे करें. परसाई जी छोटे छोटे वाक्यों से बड़ा सटायर खड़ा कर देते थे.
कार्यक्रम की शुरुआत इप्टा के कलाकारों ने जीवन यदु के एक प्रभावशाली जनगीत से किया. अंत में इप्टा ने निसार अली के निर्देश न में परसाई की रचना टार्च बेचने वाला का छत्तीसगढ़ी नाट्य रूपांतरण टैच बेचईया का नाचा गम्मत की शैली में मंचन किया. इस अनूठे और प्रभावशाली मंचतन ने खूब तालियां बटोरी. विशेष कर निसार और शेखर नाग के अभिनय ने दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ दी.
कार्यक्रम का संचालन संजय शाम और आभार प्रदर्शन अरूण काठोते ने किया.
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🔦🔦 टार्च बेचने वाला 🔦🔦
●हरिशंकर परसाई
गांव के दो हमउम्र दोस्त ,समारू और दुलारू की कथा है , "टार्च बेचने वाले" ...
आर्थिक दिक़्कतों में उलझे मित्रों के पास "चोंगी-माखुर" ख़रीदने लायक़ औक़ात बची नहीं ।दोनों भाग्य-भरोसे "उत्ती" और "बुड़ती" दिशा में निकल पड़ते हैं क़िस्मत आज़माने , इस उम्मीद के साथ कि एक बरस बाद यहीं मिलेंगे ।
पहला सस्ती " टॉर्च " बेचते भटकता है , दर -ब- दर ।
दूसरा "भीतर के अंधेरे का डर" बता , भक्तों को "भीतरी के टैच बत्ती" जलाने का सर्वोत्तम उपाय बताता , चढ़ावा बटोरते , छप्पनभोग लगाते , सुखी जीवन जी रहा है ।
भटकते हुए समारू को एक दिन " दुलारनाथ " के दर्शन हो जाते हैं , और मित्र दुलारू से अचानक "मालदार" बन जाने का रहस्य पूछता है ।बाबा दुलारनाथ उस" बुद्धू" को समझाते हुए बताता है कि तू " टॉर्च " बेचते हुए बाहरी अंधकार का डर बताता है ...उसमें "कमाई " नहीं है ।
अगर तरक़्की करना है तो मेरे "धंधे" मेंं शामिल हो जा ...फ़ायदा-उप्पर-फ़ायदा ...
ग्लोबल उपभोक्ता बाज़ार और बाबा बाज़ार के गलबहिंया डाले सुनामी युग में , चिरहा-फटहा पंहिरे जोक्कड़ , लोटावाली नजरिया , भक्तिभाव में झूमते भक्तगण , " बाबा दुलारनाथ " का लोकल से लेकर ग्लोबल तक फैलता बाज़ार ...
नाचा शैली की छौंक लगाते दृश्यों की खेप-दर-खेप , पहली झलक से ही ठहाकों और तालियों की बौछार का समां बांध देते हैं और जोक्कड़ को लबालब - अपनेपन से सराबोर करने लगती है ।
शेखर नाग ने जोक्कड़ - शैली में परसाई जी के व्यंग्य को शानदार ढंग से स्थापित किया , सीधे - सादे जोक्कड़ के रुप में " मैं हर हांवव जी टैच बेचईया " नचौड़ी गीत गाते ,टॉर्च बेचते , मनोशारिरिक आभिनय की चपलता और सहज-स्वभाविकता को शेखर ने शानदार ढंग से स्थापित किया । दूसरे जोक्कड़ के रुप में निसार अली ने बाबा दुलारनाथ की तर्र भूमिका निभाई ।
निसार अली अौर शेखर ने " प्रोफ़ेशनल नाचा एक्टर " का ख़िताब दर्शकों से पा ही लिया , दोनों की शानदार जुगलबंदी ने परसाई जी के तीखे व्यंग्य को लोकाभिनय के माध्यम से स्थापित किया ।
बाबा का इवेंट मैनेजर ( मानिक बर्मन ) , फ़ेसबुक नशेड़ी ( स्वप्निल एंथनी ) , लालचटनी बीमार( मीज़ान अहमद ) ,ऑटोवाला ( अजीत टंडन ) , टार्चवाला (मीज़ान अहमद) , चोटीकाट भूत-प्रेत- से बाधित महिला(ओंकार साहू) कोरस की भूमिका में अजय निर्मलकर ,छ्त्रपाल पठौर ने अभिनय किया से जुड़े दृश्यों ने दर्शकों से सामयिक संवाद क़ायम करने में कामयाबी हासिल की , इन दृश्यों में नये कलाकारों ने दमदार उपस्थिति दर्ज की । वेषभूषा , सामग्री संकलन अजय निर्मलकर का था ।मऊ गुप्ता( हारमोनियम ) ,( ढोलक ) , ने प्रस्तुति में सहयोग दिया । प्रस्तुति का निर्देशन निसार अली ने किया ।
कुल मिलाकर इप्टा ने साबित कर दिया कि नाटक की सामयिक अंर्तवस्तु , अभिव्यक्ति के ख़तरे और अभिनेता के निजि मेहनत से कमाई " आज़ाद गम्मत अभिनय शैली " दर्शकों से शाना-ब-शाना जुड़ अपनेपन का अहसास रचती है । "टैच बेचईया" पिछले 25 वर्षों से नुक्कड़ , चौपाल अौर मंच पर लगातार खेला जा रहा है , प्रगतिशील कवि-गीतकार जीवन यदु द्वारा नाचा शैली में रुपांतरित "टैच बेचईया" अौर ज़्यादा सामयिक अौर धारदार बन गया है जिसके पैनेपन को हम अपनी उंगलियों पर परख सकते हैं । बहुत क़रीब से...
नाचा के शरुआत में दर्शकों को " इहिच मन हमर देवी है अऊ इहिच मन हमर देवता है " कहकर संबोधित करते ही हैं "सर्वोत्तम नाचा देखईया दर्शकों " का इप्टा परिवार की ओर से शुक्रिया अदा करते हैं।
■ निसार अली