जन संस्कृति दिवस पर इप्टा भिलाई के नाट्य शिविर का समापन


भिलाई इप्टा द्वारा आयोजित 18 वें बाल एवं तरुण नाट्य कार्यशाला का समापन 25मई 2014 को "जन संस्कृति दिवस" के रूप में नेहरू सांस्कृतिक भवन सेक्टर 1 में सम्पन्न  हुआ। इप्टा भिलाई के इस प्रतिष्ठापूर्ण आयोजन में 7वर्ष  से 22 वर्ष आयु समूह के कुल 164 बच्चों/युवाओं ने भागीदारी की।

दर्शकों से ठसाठस भरे नेहरू सांस्कृतिक भवन के सभागार मे शिविर के समापन के अवसर पर 5 जनगीत, पर्यावरण,उच्च पदों पर बैठे लोगों की मूर्खता,मल्टीनेशनल कंपनियों से लघु/कुटीर उद्योग को खतरा,लालच, पारिवारिक रिश्तों इत्यादि विषयों पर आधारित  नाटक "सपनो का डर" (नि.-निशू पाण्डे ),"कौओं की गिनती" (नि.-चारु श्रीवास्तव), "जूते और बौने" (नि.-जगनाथ साहू),"चुरकी और मुरकी" (नि.-नीतू जैन),"पा" (नि.-सुमय मुखर्जी)तथा रोशन घड़ेकर,रूचि गोखले,जगनाथ साहू,बी.किशोर,चारु श्रीवास्तव के निर्देशन में 5 नृत्य प्रस्तुत किये गये। इस शिविर की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि इसमें 5 में से 4 नाटक और 4 नृत्य इप्टा की कार्यशाला से प्रशिक्षित  पुराने प्रशिक्षार्थियों  चारु श्रीवास्तव,सुमय मुखर्जी,नीतू जैन,जगनाथ साहू,रूचि गोखले बी. किशोर ने तैयार किये।  

5 मई से प्रारम्भ इस नाट्य शिविर में प्रतिदिन बच्चों को थियेटर गेम्स,इम्प्रोवाइजेशन(  भाविक रूपड़ा,संदीप गोखले,राजेश श्रीवास्तव ) के जरिये नाटकों की समझ विकसित  करने का प्रयास किया गया। बच्चों को योग(अरुण पंडा ) और चित्रकला (तृप्ति मित्रा ) का भी नियमित प्रशिक्षण दिया गया। वरिष्ठ साथियों मणिमय मुखर्जी,सुचिता मुखर्जी ने गायन की कक्षाओं में जनगीत तथा भारत भूषण परगनिहा ने छत्तीसगढ़ी सुआ,कर्मा,जस गीत,फ़ाग गीत भी तैयार किये। प्रसिद्द पंडवानी गायिका उषा बारले,गायक प्रभंजय चतुर्वेदी तथा भंडारा(महाराष्ट्र) के नाट्य निर्देशक रंगकर्मी मनोज दाढ़ी ने भी शिविर के दौरान बच्चों से अपने अनुभव बांटे। 

समापन समारोह के मुख्य अतिथि भिलाई इस्पात संयंत्र के महाप्रबंधक श्री एच आर  चौधरी थे  तथा  प्रभंजय चतुर्वेदी,भालचंद्र शेगेकर,लोक बाबू  विशेष रूप से उपस्थित थे।कार्यक्रम का संचालन सचिव सुबास मुदुली ने किया राजेश श्रीवास्तव ने शिविर तथा इप्टा की विस्तृत जानकारी दी तथा मणिमय मुखर्जी ने सभी सहयोगियों का आभार व्यक्त किया |इस अवसर पर मुख्य अतिथि ने भिलाई इस्पात संयंत्र की तरफ से सभी 15 प्रशिक्षार्थियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। 

बाल नाट्य मेले का अहसास कराते इप्टा के इस आयोजन से निश्चित ही इप्टा और रंग जगत को नए कलाकार तो मिलेंगे ही साथ ही समाज को कुछ अच्छे ईमानदार,संवेदनशील नागरिक मिलेंगे ऐसा मानना अतिशयोक्ति नहीं होगा।
 
राजेश श्रीवास्तव

Saturday, May 24, 2014

इप्टा बिजनौर का रंग उत्सव

इप्टा बिजनोर द्वारा प्रसिद्ध रंगकर्मी और इप्टा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ए०के० हंगल की स्मृति में रंग उत्सव का आयोजन दिनांक १८ मई २०१४ को स्थानीय किरण उत्सव मंडप में किया गया. कार्यक्रम के आरम्भ में बोलते हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव श्री राकेश ने बाजारवाद और पूँजीवाद के खतरे से जनता को आगाह करते हुए कहा कि बाज़ार हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को नष्ट करने पर तुला हुआ है. 


इस अवसर पर लखनऊ इप्टा ने प्रदीप घोष के निर्देशन में विजय कुमार लिखित नाटक "किस्सा अजनबी लाश का" का मंचन किया. नाटक के माध्यम से इंसानी ज़िन्दगी में राजनीति के अनैतिक दखल को दर्शाया गया है, जिसके कारण आदमी लालच में आकर झंडों में बाँट गया है और उसके जज़्बात मरते जा रहे हैं. नाटक में विपिन मिश्र, राजीव भटनागर, चंद्रभाश सिंह, धर्मेन्द्र उपाध्याय, नितीश प्रताप, अनुज मिश्र, सुन्दरम, देवाशीष मिश्र, पवन कटियार, वीरेंदर रस्तोगी, प्रदीप घोष, प्रणय दीक्षित तथा राधा सिंह ने अभिनय किया. 

कार्यक्रम में दूसरी प्रस्तुति थी इप्टा बिजनोर द्वारा प्रेम साइमन लिखित नाटक "मुर्गीवाला", जिसका निर्देशन सौरभ श्रीवास्तव ने किया. इस नाटक के माध्यम से आम इंसान पर भ्रष्ट व्यवस्था द्वारा लगातार हो रहे हमलों को दर्शाया गया है. इस नाटक में फकीहा फरहीन, अभिकांत कुमार, के०के० पीपल, शान मोहम्मद, अनामिका, फिज़ा भाटिया, कपिल सैनी, अमन सक्सेना तथा अमित मिश्र ने अभिनय किया.

कार्यक्रम को सफल बनाने में इप्टा बिजनोर के मश्कुरुल हसनैन, अश्विनी चित्रांश, सौरभ राजवंशी, संजीव श्रीवास्तव, सोनल शर्मा, डॉ अनिल चौधरी, इकबाल अहमद आदि ने अपना योगदान दिया.


Wednesday, May 21, 2014

अशोकनगर : दसवीं बाल नाट्य कार्यशाला का समापन आयोजन 23 मई को


भारतीय जन नाट्य संघ ( इप्टा ) द्वारा आयोजित दसवीं बाल एवं किशोर नाट्य कार्यशाला का सामपन आयोजन 23 मई , 2014 को स्थानीय माधव भवन में शाम  7 बजे किया जायेगा । 1 मई से लेकर 23 मई तक चली इस नाट्य कार्यशाला में 12 से 14 वर्ष अयु वर्ग के 75 से ज़ियादा बच्चों ने भागीदारी की है और नाटक ,नृत्य , जनगीत , क्राफ्ट , चित्रकला , लोक संगीत आदि अनेक कलारूपों का अभ्यास किया है । समापन आयोजन में इस वार तीन नाटकों का प्रदर्शन किया जायेगा साथ में  खैरागढ़ से  आये  युवा रंगकर्मी मोहन सागर  के  निर्देशन  में तैयार सैला और भगोरिया लोकनृत्यों का प्रदर्शन भी  होगा । इस अवसर पर बच्चों  की रचनात्मकता को रेखांकित करने वाली उनकी कलाकृतियों की प्रदर्शनी पंकज दीक्षित के  निर्देशन में  लगाई जायेगी ।

  शिविर में तीन नाटक तैयार किये गए हैं  | कार्यशाला के शुरू होने के दस दिन पहले से पूर्ववर्ती बच्चों ने ऋषभ श्रीवास्तव के निर्देशन में चेखब की कहानी “ गिरगिट “ पर  आधारित नाटक तैयार किया था इप्टा के युवा रंगकर्मी रामबाबू कुशवाह ने नए बाल पात्रों के साथ इस नाटक को पुन: नए सिरे से तैयार किया है | कार्यशाला के दरम्यान जकिया मशहदी की कहानी “ चौथे अब्बा “ का नाट्य आलेख पंकज दीक्षित , सीमा राजोरिया और अरवाज़ खान के सामूहिक प्रयास से तैयार किया है और इस नाटक का निर्देशन  सीमा राजोरिया ने  किया है | खैरागढ़ से आये युवा रंगकर्मी धीरज सोनी के निर्देशन में  तौफीक अल हकीम द्वारा लिखित नाटक “ गधों का मेला “ तैयार करवाया गया है ।

 बच्चे अपनी भाषा से प्रेम करना सीख सकें इस हेतु कार्यशाला  के दरम्यान बच्चों को लेखन के लिये भी प्रेरित किया गया है और  बच्चों ने अपने रंग अनुभवों पर आधारित एक हज़ार से ज़ियादा ‌पृष्ठों की  डायरी भी  लिखी है | बच्चों की डायरी के इन अनुभवों को इप्टा अशोकनगर पुस्तक रूप में प्रकाशित करने  की  योजना बना  रही है  । शहर के युवाओं में स्मैक के तेजी से फैलते नशे की लत पर एक वृत चित्र बनाने के प्रयास में इप्टा के साथी कलाकार लगे हैं इस दिशा में राकेश विश्वकर्मा और गौरव जैन के निर्देशन में यह  काम किया जा रहा है । इस नशा बिरोधी वृत चित्र का प्रदर्शन जून के महीने में किया जायेगा ।

 23 मई को होने जा रहे बाल नाट्य कार्यशाला के  समापन आयोजन की तैयारियां अंतिम चरण में चल रही  हैं । इप्टा से जुड़े रंगकर्मियों ने दर्शकों से  अपील की है कि कलाकारों के इस रचनात्मक अभियान में वे अपनी सक्रिय भागीदारी  करें ।
                                                                                                        
   ‌‌- सीमा राजोरिया ( अध्यक्ष ) \ सिद्धार्थ शर्मा (सचिव ) इप्टा , अशोकनगर

Monday, May 5, 2014

फासीवादी ताकतों से देश को खतरा

4 मई को वाराणसी में देश भर से जुटे लेखकों ,संस्कृतिकर्मियों और बुद्धिजीवियों की जुटान की रपट

(राष्ट्रीय सहारा  के वाराणसी  संस्करण की रिपोर्ट )

वाराणसी (एसएनबी)। वामपंथी विचारधारा से जुड़ाव रखने वाले साहित्यकार, रंगकर्मी व बुद्धिजीवियों ने कन्वेंशन ‘विरासत कबीर’ के बहाने फासीवादी ताक तों का जमकर विरोध किया। प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष व वरिष्ठ उपन्यासकार डा. काशीनाथ सिंह ने कहा कि काशी में इसबार जो चुनाव हो रहा है उसे हल्के में लेने की जरूरत नहीं है, इसबार ऐसी शक्ति सिर उठाये खड़ी है, जिससे काशी की संस्कृति ही नहीं देश को खतरा है। कहा कि अभी समय है चेत जाइये क्योंकि चुनाव में नरेंद्र मोदी का जीतना काशी की हार होगी। कहा कि मोदी को हराना होना अन्यथा फासीवादी ताकतें जैसे ही चुनाव में फतह हासिल करेंगी उसी दिन से संस्कृति नष्ट होनी शुरू हो जाएगी। कबीर मठ में रविवार को सांप्रदायिक फासीवाद विरोधी मंच के कन्वेंशन में डा. सिंह ने कहा कि काशी की भूमि पर हिंदुओं के मठ-मंदिरों की भरमार है, लेकिन आज तक यहां मोदी या तोगड़िया जैसे सांप्रदायिक व्यक्ति पैदा नहीं हुए। यह तप की भूमि भी है हिन्दु- मुस्लिम एकता की प्रतीक भी। इसे नष्ट करने का प्रयास हो रहा है, जिसका हमें विरोध करना होगा। उन्होंने कहा कि कबीर की भूमि पर यह ऐतिहासिक कन्वेशन है, जिसमें देशभर के एक्टिविस्ट जुटे हैं सभी चाहते हैं काशी की संस्कृति पर चोट न हो। इसलिए सभी को सोचना होगा आगे कैसे काम हो कि फिरकापरस्त शक्तियां सिर न उठा पायें।महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति व वरिष्ठ उपन्यासकार विभूति नारायण राय ने कहा कि काशी के लिए यह बहुत भयावह समय है। अगर यहां से नरेन्द्र मोदी चुनाव में विजय प्राप्त करते हैं तो निश्चित रूप से विखंडन की शुरुआत होगी, जिसके लिए हम भी जिम्मेदार होंगे। वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रो. दीपक मलिक ने कहाकि 650 साल पहले कबीर ने यहीं से न हिन्दू, न मुसलमान के विचार की धारा बहायी, जिसपर करोड़ों लोग विश्वास कर रहे हैं। हम भी इस कन्वेंशन के जरिये एक विचारधारा की शुरुआत करना चाहते हैं जो लंबे समय से बंद है। विचारों की हत्या 30 साल पहले शुरू हुई जो जारी है। हम चाहते हैं विचारों की जीत हो, फासीवादी ताकतें परास्त हों। वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव ने मीडिया को कटघरे में खड़ा किया, उन्होंने कहा कि वे एक माहौल बनाकर ऐसी शक्तियों को मजबूत कर रही हैं जो समाज में विखराव के लिए जिम्मेदार हैं। सभी को चेतना होगा, खासतौर पर समाज के जिम्मेदार लोगों को सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ एक होना होगा। कहा कि आज देशभर की ऐसी शक्तियां एक मंच पर साथ हुई हैं जिनके विचार सुनने के लिए लोग बेताब रहते हैं। आज हम विचारों की गंगा बहाकर ऐसी लहर को रोकने का प्रयास करेंगे जो एक संस्कृति को नष्ट करना चाहती है। समाजसेवी तीस्ता सीलतवाड़ ने कहा कि जो गुजरात विकास का मॉडल पेश किया गया वो झूठ का पुलिंदा है। विकास ऐसे लोगों का हुआ तो पहले से ही समृद्ध थे। गरीबों का हाल कोई जानने वाला नहीं है। वहां तानाशाही चल रही है जो लोगों को दिख नहीं रही है। अगर फासीवादी ताकतें अपने मकसद में सफल रहीं तो पूरे देश में तानाशाही दिखेगी। एक व्यक्ति राज करेगा बाकी लोग उसका आदेश मानेंगे। पाकिस्तान केअखबार डान के जावेद नकवी ने हिंदू- मुसलमान सामंजस्य के लिए फासीवादी ताकतों को खतरनाक बताया। द ट्रुथ आफ गुजरात के लेखक हेमंत शाह ने गुजरात के विकास के मॉडल को पूंजीपतियों का मॉडल बताया। ज्या द्रेज, खगेंद्र ठाकुर, राजेंद्र कुमार, राकेश, शकील सिद्दीकी, प्रो. रूपरेखा वर्मा, शबनम हाशमी, अनुषा रिजवी आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। इससे पूर्व कन्वेशन का शुभारंभ इप्टा पटना के कार्यकर्ताओं के जनगीत और कबीर वाणी से हुआ। संचालन व्योमेश शुक्ल व धन्यवाद कार्यक्रम संयोजक व पर्लेस के सचिव संजय श्रीवास्तव ने दिया। कबीर मठ में आयोजित कबीर विरासत कन्वेंशन को संबोधित करते डा. काशीनाथ सिंह व मौजूद विशिष्टजन। 
अनुराग शुक्ल/एसएनबी वाराणसी। देशभर के साहित्यकार,रंगकर्मी और अर्थ शास्त्रियों का जुटाव काशी में एक संदेश के तहत हुआ। उनका मकसद नरेन्द्र मोदी नहीं है, लेकिन नरेन्द्र मोदी के रूप में गुजरात के दंगे के बाद जो सांप्रदायिक चेहरा उभरा वह मोदी के रूप में ही सामने आया। आज ऐसी शक्तियां चरम पर हैं। सभी चाहते हैं कि काशी में ही नहीं देश में कहीं भी ऐसी शक्तियां सिर न उठा पाये और इस शहर की संस्कृति को दूषित न करें। इन्हीं सवालों और शंकाओं को लेकर कुछ बुद्धिजीवियों से राय साझा की गयी। फिल्म ‘पीपली लाइव’ की निर्देशक अनुषा रिजवी का मानना है कि काशी जैसी नगरी में जहां दुनियाभर के लोग सुख-शांति की कामना करने के लिए निवास करते हैं लगता है कि यह आबोहवा खराब हो रही है। ऐसी शक्तियां अगर सिर उठाने में कामयाब हुई तो स्थिति पकड़ के बाहर हो जाएगी। सभी को चेतना होगा साथ ही लोगों को जगाना होगा, जिससे हालात काबू में रहे। प्रमुख समाजसेवी प्रो.रूपरेखा वर्मा ने कहा कि साम्प्रदायिक शक्तियां गंगा के बहाने लोगों को बहलाना चाहती हैं, लेकिन उनको नहीं पता कि यहां केलोग बहकने वाले नहीं है और उनको गंगा के बहाने मोक्ष भी दिला सकते हैं। प्रमुख आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि किसी भी कीमत पर गंगा-जमुनी तहजीब को विखंडित होने न दिया जाय। हम तो आज आये हैं लोगों को जगाना चाहते हैं कि फांसीवाद ताकतें 1992 से सिर उठाना चाहती है और हम लगातार उनके सामने खड़े। सभी जागेंगे तो बात बनेगी। मशहूर रंगकर्मी राकेश का कहना है कि सभी भ्रमित हैं कि आखिर काशी की जनता ने एक ऐसे व्यक्ति को इतना महत्व कैसे दे दिया कि लोग आज उसकी र्चचा कर रहे है। सभी को समझना होगा कि आखिर काशी की संस्कृति कैसे सुरक्षित रह सकती है। इस लिए जागकर लोगों को जगाना होगा और काशी की संस्कृति का बचाना होगा।

सांस्कृतिक मार्च को पुलिस ने रोका


वाराणसी (एसएनबी)। कन्वेंशन विरासत कबीर समारोह में दिन के सत्र की समाप्ति के बाद कबीर मठ से लहुराबीर के लिए सांस्कृतिक मार्च निकाला गया। साहित्यविद् काशीनाथ सिंह, चौथीराम यादव, खगेन्द्र ठाकुर, विभूति नारायण राय, वीरेन्द्र यादव, राकेश, प्रो.रूपरेखा वर्मा, फिल्मकार अनुषा रिजवी (पीपली लाइव फेम) सहित देशभर के एक्टिविस्टों ने सांप्रदायिक विरोधी पर्चे बांटते कबीर मठ से प्रस्थान किया। जनगीत गाते चल रही लोगों की रैली को लहुराबीर चौराहे पर पुलिस ने रोक लिया, कहा कि चुनाव की समय है आप इस प्रकार नारे और पोस्टर लेकर नहीं चल सकते। एसपी सिटी से रैली का परमिशन मांगा तो उसमें साफ था कि कबीर मठ से लहुराबीर तक रैली निकाली जाएगी। फिर वह चुप हो गये और उसके दिशा निर्देश देकर रैली रोकने और लोगों की गिरफ्तारी की बात करने गले। बड़े साहित्यकारों में एक पूर्व डीजीपी भी थे उन्होंने उनको समझाया कि यहीं खत्म हो जाएगी, क्यों पंगा लेते हैं देशभर के एक्टिविस्ट जुटे हैं और अभी मीडिया का जमावड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ठीक है जल्दी रैली को खत्म कराइये। रैली चंद्रशेखर व प्रेम चंद पार्क गयी जहां प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर कबीर मठ प्रस्थान कर गयी। चा ब दि क व्िको उठ स क ने अ अ इस् सं दास्तानगोई का छेड़ा राग कबीर मठ में राजस्थान के लोक साहित्यकार विजयदान देथा की कहानी पर ‘पीपली लाइव’ जैसी फिल्म का निर्देशन करने वाली अनुषा रिजवी व महमूद फारुकी की टीम ने दास्तानगोई का राग छेड़ा। उन्होंने शमसुर रहमान फारुकी की दास्तनगोई की प्रथा को बड़े ही जीवंत तरीके से पेश किया, जिसमें निश्चित रूप से 16 वीं शताब्दी में कहानी कहने की स्टाइल और प्रथा का अवलोकन दर्शकों ने किया।

SECULARAISM AND GANGA JAMANI CULTURE.

RANBIR SINH

The word secularism is being flaunted by the social media without understanding the spirit of foundation of the culture of the people of India. The basic culture of  India by which it has withstood many invasions, birth of several religions, in fact is the Ganga-Jamani culture about which neither the social media or the members of the extreme rightist party make any mention of it, or wish to know anything Secular means “occurring once in or lasting for an age or a century” or it mean  “sceptical of religious truth or opposed to religious education. etc”. To my mind the word “secular” is a wrong word to be used for the culture of India. It may mean to some that everyone will tolerate and respect all religions. But it does not mean that they will not only respect and tolerate, but will intermingle in the religious , social, economical,  cultural, and day to day happenings of daily life of each of other irrespective of religion or community .


Ustad Ahmed Hussain -Muhammed Hussain Singing Ganapti Vandana.




Ganga-Jamani culture is exactly like the intermingling of the waters of the two rivers, and they become one. They are no longer two different rivers. In the same way the Ganga-Jamani culture is the synonymous of the mixture of all different cultures and the way of  life of different communities professing Islam, Christianity, Buddhism, Jainism, Zorastrian and Hinduism in one composite culture which becomes the Hindustani culture which is the strongest foundation of India. When Mohd.Iqbal says: Kuch Baat hai ki hasti mit ti nahin hamari; sadiyoun raha hai dushman daure-zamaan hamara. Hasti means Ganga Jamani culture, and Dushman here means the fanatics, fascists ,extreme rightists, and the super-powers.

Ganaga-Jamani culture is that which we live every moment of our lives. When the Dagar Bandhu sings the ancient verses of Veda and they go into a trance or catharsis that is our Ganga Jamani culture. When Wajid Ali Shah writes Thumris on the life of Radha and Krishnas, and they become a part of Kathak, danced by Hindu and Muslim artists and reaches the millions of people that is our Ganga Jamani culture. When Nazir writes the prayer (Stuti) in praise of Bhairav which till today is sung in the temple of bhairav in Agra is our Ganga jamani culture. When Ustad Bismillah Khan played Shahanai every morning at the temple of Mahadev, in Varanasi with greatest of respect and devotion that is our Ganga Jamani culture. At the time of the procession of Tazia on both side of the road hindu women stand with their child clasped in their arms, and pass them from beneath the Tazia, to seek the blessing for happy life of their child ,is our Ganga Jamani culture. At the time of our daughters marriage the bridal bangles are brought by the Maniyari who makes the bangles, she is a muslim, and she blesses the bride, that is our Ganga Jamani culture. The village Bagoria near Bhopalgarh in Jodhpur, 

Rajasthan, has two temples of Goddess Kali Mata. The priest of one of them is a muslim and the other is barber. This is our Ganga Jamani culture. The religious thread known as (ROLI) which every hindu ties to his hand when he has done the puja is made by the muslims. Which is offered to all Hindu temples and Masjids. This is our Ganga Jamani culture. India is the land of Nanak and Kabeer, who preached Ganga Jamani Culture. Guru Granth sahib is a beautiful example where the essence of all religious thoughts have been closely weaved into one. That is our Ganga Jamani Culture. A glance is suggested on Majma’al Baharain; The intermingling of two Oceans, by Dara Shukoh to learn about the Ganga Jamani culture. Indian national literature and Theatre has propagated through novels, poems and plays the essence of Ganga Jamani culture. Jahan bajta tha shankh wahan hoti this azaan bhi. This is our Ganga Jamani culture.


Pt. Jasraj Singing Mero Allah Meharban




But the extreme rightist parties have different agenda. When Bade Ghulam Ali Khan in Pakistan was singing thumri ;Meri Bayiyan na marodo Kanha, a bureaucrat sent a note reminding Ghulam Ali Khan sahib as to which country he was singing. He was promptly invited by Jawahar Lal Nehru to come back. In our own country objection was raised not to sing Miyan Ki Malhar.And the latest that I can cite is that the play Jis ne Lahore deka nahin was not permitted to be stated at Ahmedabad. This is blatant attack on Ganga Jamani culture and above all on the freedom of speech. 

Modi gave the slogan of Ganga Jamani Tahjeeb in Varanasi. Probably Barkha Dutt does not understand the meaning of the word Tahjeeb. There is no appropriate word in English which can describe Tahjeeb. The nearest one can go is the manners. Tahajeeb is just a part of composite Culture. One may adopt good manners but he may not be a protagonist of Ganga Jamani Culture. One can be of good manners, be well dressed in designed clothes, yet he can be a part of the demolish of Masjid, he can allow genocide in his state. They can use bad words and throw them like stones on others, without realizing that they come back on them. Ghalib has said, ”Maine ladakpan mein majnu par sang uthaya tha ki Asad:Sang ko dekh kar sir yaad aya.” It is more than evident that the present election of 2014 is not fought on the agenda of development as the social media has been announcing for the last couple of years. Development is the mask, a curtain, a purdah behind which is the hidden agenda of Hindutatava. Hinduatatva is exactly the same as Aryanisation of Germany by Hitler. If the RSS sponsored 

BJP comes into power then Ganga Jamani culture is in dire danger. Not only the Muslims will be targeted but all others who are NOT Hindus. If that happens the India will crumble as house of cards. The social media in the wake of make money should realize their responsibility and understand the danger and take the message of the composite culture, the Ganga Jamani culture which in fact is the strongest foundation of our country, and save our motherland- Hindustan. 


Saturday, May 3, 2014

अशोकनगर इप्टा की 10 वीं कार्यशाला का शुभारंभ

शोकनगर। भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा द्वारा इस वर्ष भी अशोकनगर शहर के बच्चों के लिए रंगकर्म का प्रशिक्षण प्रदान करने की दृष्टि से एक कार्यशाला का शुभारंभ किया गया है। इप्टा की यह 10वी कार्यशाला है। निरंतर 25 दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में बच्चों को नाट्य, संगीत और संस्कृति से जुड़ा प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। इस कार्यशाला के शुभारंभ समारोह में बड़ी संख्या में प्रतिभागी बच्चों द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज की गई।
जन नाट्य संघ (इप्टा) की अशोकनगर इकाई द्वारा दसवीं बाल एवम किशोर नाट्य कार्यशाला का उद्घाटन इप्टा से जुड़ी स्थानीय रंगकर्मी डा. अर्चना ने उद्घाटन की मौखिक घोषणा के साथ किया। स्थानीय जयप्रकाश पुस्तकालय के हाल में शहर के संस्कृतिकर्मी, लेखक, कलाकार, रंगकर्मी, बच्चे और बच्चों के अभिभावक उपस्थित थे । 12 से 18 आयु वर्ग के बच्चों के लिये आयोजित इस नाट्य कार्यशाला की रूपरेखा पर बोलते हुये विनोद शर्मा ने कहा कि इप्टा की अभी तक आयोजित की गईं नाट्य कार्यशालाओं में एक दर्जन से ज्यादा नए नाटक तैयार किये जा चुके हैं। चित्रकार पंकज दीक्षित ने अजादी से पहले और आजादी के बाद इप्टा के आंदोलन पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर नगरपालिका परिषद के उपाध्यक्ष महेंद्र भारद्वाज, रंगकर्मी सीमा राजोरिया ने भी अपने विचार रखे।
उद्घाटन समारोह के अवसर पर पूर्ववर्ती शिविरों में भागीदारी कर चुके बच्चों ने दो जनगीत प्रस्तुत किये। उदघाटन सत्र के बाद बच्चों ने एक पुराने नाटक '' गिरगिट'' की प्रस्तुति दी गई। महान रूसी गद्यकार चेखब के इस नाटक का निर्देशन ऋषभ श्रीवास्तव ने किया था। इस प्रभाबी नाट्य प्रस्तुति को पूरी तरह से बच्चों द्वारा ही तैयार किया गया था। नाटक में अनुपम तिवारी, सौरभ झा, अमित गुप्ता, अनुज तिवारी, डाली जाधव, आर्यन अरोरा, कबीर राजोरिया, दीपांशी बिजौले, साक्षी यादव, दर्श दुबे, स्नेहा गुप्ता, किशोर माझी और हर्ष सोनी आदि बच्चों ने प्रभावी अभिनय किया। इस पूरे कार्यक्रम का संचालन सत्यभामा ने किया और इप्टा अशोकनगर के सचिव सिद्धार्थ शर्मा ने अमंत्रितजनों के प्रति आभार व्यक्त किया। हाल छोटा होंने के कारण अनेक लोगों को लौट जाना पड़ा।
नई दुनिया से साभार

Friday, May 2, 2014