Friday, September 15, 2017

कल जबलपुर में खुलेगी ’जंगल में खुलने वाली खिड़की’

बलपुर. महाकोशल शहीद स्मारक ट्रस्ट और विवेचना थियेटर ग्रुप ( विवेचना जबलपुर ) द्वारा प्रारंभ की गई नाट्य निरंतर योजना में के अंतर्गत इस माह 16 सितंबर शनिवार को अतिथि नाट्य मंचन के अंतर्गत ’जंगल में खुलने वाली खिड़कीै’ नाटक मंचित होने जा रहा है। इस नाटक के लेखक जितेन्द्र भाटिया हैं। इसका निर्देशन प्रशांत खिड़वड़कर ने किया है। यह नाटक भोपाल की जानी मानी संस्था ’रंगायन’ द्वारा मंचित किया जाएगा। इस नाटक में जाने माने फिल्म, टी वी व नाटकों के अभिनेता राजीव वर्मा प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। 

’रंगायन’ भोपाल द्वारा भोपाल में ’जंगल में खुलने वाली खिड़की’ के अनेक मंचन भारत भवन व रवीन्द्र भवन में किये गए हैं। नाटक की कहानी बहुत रोचक है। एक दंपत्ति जंगल के अपने रेस्ट हाउस में पहुंचते हैं। उनके बीच वाद विवाद चल ही रहा है कि एक युवक रेस्ट हाउस में घुस आता है। उसके आने से नाटक में तरह तरह के मोड़ आते हैं। 

नाट्य निंरतर योजना के अंतर्गत हर माह के दूसरे शनिवार को जबलपुर से बाहर की नाट्य संस्था का नाटक आमंत्रित किया जाता है। योजना के इस पांचवें माह में अपरिहार्य कारणों से दूसरे के बजाए तीसरे शनिवार को मंचन आयोजित किया जा रहा है। दर्शकों ने नाट्य निरंतर को बहुत पसंद किया है। 

’जंगल में खुलने वाली खिड़कीै’ का मंचन 16 सितंबर 2017 शनिवार को शहीद स्मारक गोलबाजार में संध्या 7.30 बजे से होगा। नाट्य निरंतर योजना के अंतर्गत मंचित होने जा रहे ’जंगल में खुलने वाली खिड़कीै’ नाटक के प्रवेश पत्र शहीद स्मारक के कार्यालय में उपलब्ध रहेंगे। विवेचना के हिमांशु राय, वसंत काशीकर, बांकेबिहारी ब्यौहार ने दर्शकों से ’जंगल में खुलने वाली खिड़कीै’ नाटक अवश्य देखने का अनुरोध किया है।
-हिमांशु राय
विवेचना 9425387580

Wednesday, September 6, 2017

ब्लू व्हेल गेम का यह वर्जन, इप्टा ने की निंदा

IPTA condemns brutal murder of Gauri Lankesh


National committee of IPTA condemns the shocking and brutal murder of senior journalist,activist and intellectual Gauri Lankesh at her residence at Bengaloru. 

IPTA is of the opinion that this is in  series of brutal murders of Dabholkar,Kalburgi, Govind Pansare by the sangh gang who are creating an atmosphere of terror and violence throughout the country.The voices of reason,rationality,humanity,peace and social justice are being systematically targeted. IPTA calls upon all peace loving rational people to fight this onslaught unitedly.It pays rich tributes to Gauri Lankesh who stood bravely against the forces of right reaction.

We resolve to carry on the struggle of all these martyrs who laid their lives in defense of rationality,freedom of expression and composite culture.

Ranbir Sinh, President.                                                    Rakesh, General Secretary


ब्लू व्हेल गेम का यह वर्जन

-कुमार अंबुज

यह 'ब्लू‍ व्हेल गेम' का वह वर्जन है जिसमें किशोरों और युवाओं को फँसाकर आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या करने का टॉस्क् दिया जा रहा है। इस खेल को खिलानेवाली देश में जो संस्था्ऍं हैं वे अपने प्रतिभागियों को इस कदर उत्तेजित और प्रेरित कर देती हैं कि वे हत्यारे को विजेता बन जाने के महान भ्रम में डाल देती हैं। लेकिन कुल मिलाकर यह एक आत्मघाती खेल है जिसमें समाज और देश अपनी ही हत्या पर उतारू हो गया है।

गौरी लंकेश के मारे जाने और कलबुर्गी, दाभोलकर, पानसरे की हत्याओं के बहुत पहले से ही कहता आया हूँ कि यह दौर नाजीवाद और फासीवाद की आधुनिक प्रतिलिपि है। इसका पूर्वाभास था ही कि प्रतिवाद-प्रतिरोध करनेवाले लेखकों-पत्रकारों-बुद्धिजीवियों पर हर तरह के झूठे मुकदमें दायर होंगे, हत्याऍं होंगी क्योंकि इससे ही उस आतंक का वातावरण ठीक तरह से रचा जा सकता है जिसकी जरूरत सांप्रदायिक प्रकृति की सत्ता को हमेशा होती है। यह सब उसके ऐजेंडे का विषय होता है। इस बारे में पहले भी कई बार, हम सबने लिखा ही है।

रचनाकारों के एक बड़े तबके ने लगातार इसका प्रतिरोध किया, यहॉं तक कि साहित्यं अकादेमी पुरस्कार सहित अन्य सम्मान लौटाने का एक प्रभावी उपक्रम भी हुआ। मगर अब वह प्रतिरोध कम होता दिख रहा है। उस पुरस्कार वापसी के बाद के दृश्य् में अनेक झंडाबरदार लेखक भाजपा सरकारों द्वारा आयोजित, प्रायोजित या समर्थित आयोजनों में हिस्सा  लेने के लिए तर्क बनाते रहे हैं, उत्कंठित हैं और तमाम तरह की ओट ले रहे हैं। अनेक चतुर्भुज ऐसे भी हैं जिनके तीन हाथों में कलम, किताब, प्रतिरोध का परचम है लेकिन चौथे हाथ में कमल के  फूल पर विराजमान लक्ष्मी का शुभ-लाभ लॉकेट भी लटका है।

और संभवत: इसी तसवीर के कारण प्रतिरोध, प्रतिवाद और भर्त्सना की सारी कार्यवाहियॉं निस्तेज हो जाती हैं। कई बार हास्यासस्पद भी।

गौरी लंकेश के ताजा घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में क्या इस पर विचार किया जाएगा कि जवाहर कला केंद्र, जयपुर में होनेवाले आयोजन का प्रतिभागी लेखक भी उसी तरह से त्याग करेंगे जैसे साहित्य आकदेमी सम्माान वापसी के समय वे सुस्पष्ट  और दृढ़ थे। क्योंकि केवल बयान जारी करना पर्याप्त नहीं होता, कर्म में भी कुछ पोजीशन लेना होता है। क्योंकि इससे एक प्रभावी संदेश जा सकता है। क्योंकि लेखक रिट्रीट नहीं कर रहे हैं, यह दिखना भी चाहिए।

लेखको-कलाकरों में हमेशा ही एक कलावादी समूह ऐसा रहता आया है जो इस सब तरफ से ऑंख मूँदकर बैठता है। उनकी बात भी आगे होगी ही।
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गौरी लंकेश की हत्या पर प्रलेस और जलेस मध्यप्रदेश का संयुक्त बयान

बैंगलौर में वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की आज  सरे शाम गोली मारकर की गई हत्या दाभोलकर , पानसरे और कलबुर्गी की हत्याओं की ही अगली कड़ी है । इन तमाम हत्याओं के पीछे एक ही विचार , एक ही विचारधारा और विभिन्न नामों वाले एक ही संगठन की हिंसक सक्रियता है ।

21 वीं सदी की शुरुआत से ही इस हिंसा का वीभत्स रूप खुलते जा रहा है । दुर्भाग्य से अब इस विचार को राजनैतिक समर्थन भी मिलता जा रहा है ।

लोकतंत्र को विफल करने की इन कोशिशों के पीछे धर्मांध राष्ट्रवाद की वह लहर है जिस पर सवार राजनीति इस देश मे फ़ासिस्ट तानाशाही कायम करने का सपना देख रही है ।

यह महादेश इस समय एक त्रासद दुःस्वप्न से भरी रात की ओर धकेला जा रहा है । विवेक की मशाल जलाए रखकर ही इस संघर्ष को हम जीत सकते हैं । और हम यही करेंगे भी ।

मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ मध्यप्रदेश एकमत से वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या की कठोरतम शब्दों में भर्त्सना करते हैं और कर्नाटक सरकार से हत्यारों की तत्काल गिरफ्तारी तथा त्वरित न्याय की मांग करते हैं ।

राजेन्द्र शर्मा , राजेश जोशी
विनीत तिवारी , मनोज कुलकर्णी

Monday, September 4, 2017

अच्छा रंगमंच सभी नियमाे काे ताेड़ कर किया जाता है

नाट्य-समीक्षा
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नाटक - मैकबेथ
लेखक - शेक्सपीयर
अनुवाद - सुमन कुमार
निर्देशक - अनिल रंजन भौमिक
प्रस्तुति - समानांतर इलाहाबाद |
आलेख नाटक का बदन हाेता है, निर्देशक आत्मा आैर पाञ इंद्रियाँ है | आत्मा की ज़िम्मेदारी हाेती है कि बदन पर काेई ज़ख्म न गहरा लग पाये आैर न ही इंद्रियों का दमन हाे |

मैकबेथ विश्व के बहुचर्चित आैर बहुप्रशंसित नाटकाे मे एक है, इसमे शेक्सपियर ने जाे पाञ रचे है, जाे दृश्य बंधन गढ़े है, इसमे मंच पर जिस भव्यता काे स्थापित किया गया है वह बहुत ही अनूठा कार्य है, शेक्सपियर ने मैकबेथ मे कथ्य आैर शिल्प मे स्पर्धा रखी है | मैकबेथ के संवाद किवदंती बन चुके है |

मैकबेथ पूर्णतया व्वसायिक मंड़लियाे द्वारा खेला जाने वाला नाटक है, यह बजट की मांग करता है, रंगमंच के दीर्घकालीन अनुभव की मांग करता है, परिपक्वता की मांग करता है, उम्दा मंच सज्जा, रूप सज्जा, परिधान आैर प्रकाश व्यवस्था की मांग करता है | अगर आप के पास यह सब न हाे ताे मैकबेथ ज़िद की मांग करता है, दीवानगी की मांग करता है, रंगमंच के नशे की मांग करता है |

रंगमंच करने के बहुत से नियम है आैर अच्छा रंगमंच सभी नियमाे काे ताेड़ कर किया जाता है | एैसा ही बिरला नाटय प्रयोग मैने समानांतर इलाहाबाद की नाटय प्रस्तुति "महादेव " मे देखा |

"महादेव " शेक्सपियर के बहुचर्चित बहुप्रशंसित नाटक "मैकबेथ" का अनुवाद है | अनुवाद सुमन कुमार ने किया है, सुमन कुमार का संबंध राष्ट्रीय नाटय विद्यालय दिल्ली से रहा है | समानांतर इसे़ करने का साहस जुटा पाई इसकी एक महत्वपूर्ण वजह सुमन कुमार का सरल सहज अनुवाद भी है, या अनुवाद ही है | सुमन कुमार ने अव्यवसायिक नाटय संस्था की न्यूनतम एवं अधिकतम सीमा का पूरी तरह ध्यान मे रख कर इसका भारतीय करण किया है |
मैकबेथ एक वीर आैर वफ़ादार सैनिक था जिसे तीन चुड़ैल राजा बन सकने का सपना दिखाती है आैर उसकी पत्नी उसे सब कुछ पा लेने के लिये उकसाती है | शेक्सपियर ने चुड़ैलाे काे अशुभ एवं विनाश का का प्रतीक मानकर समूचे विश्व काे आगाह किया है कि सचेत रहे कि आप के घर मे आप के समीप भी काेई चुड़ैल ताे नही है ???

नाटक केे निर्देशक इलाहाबाद के वरिष्ठ नाटय कर्मी अनिल रंजन भौमिक है, भौमिक जी के पास रंगमंच का चालीस वर्षाे का अनुभव है | मैकबेथ मे भाैमिक जी ने अपने चालीस वर्षाे के अनुभव काे मा़नाे निचोड़ के उंड़ेल दिया है | चुड़ैल वाला दृश्य हाे या युद्ध वाला दृश्य, षड़यंत्र रचने वाला दृश्य हाे या समूचे बरनम वन का स्वतः चलकर महल मे आ जाने वाला दृश्य, भौमिक जी की निर्देशकीय परिकल्पना ने इन सभी दृश्याे काे बहुत खूबसूरती के साथ मंच पर प्रस्तुत कराया है, विशेष कर सैनिकाे का घाेड़े दाैड़ाते हुए आने जाने का दृश्य आकर्षक बन पड़ा है |

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के खुले प्रांगण मे मैकबेथ की यह अंतरंग प्रस्तुति थी, प्रांगण की भव्यता दृश्याे के अनुसार कभी राजमहल की भव्यता का आभास कराती ताे कभी वहां की हरियाली बरनम वन मे पहुचा देती |
युवा रंगकर्मियाे के साथ किया गया भौमिक जी का यह प्रयोग लम्बे समय तक चर्चा का विषय रहेगा |

-अखतर अली
आमानाका, निकट कांच गोदाम
रायपुर (छ. ग.)
माे. 9826126781

Friday, September 1, 2017

रंजीत कपूर ने थिएटर व सिनेमा में नये मुहावरे गढ़े

कानपुर। रंजीत कपूर साहब थिएटर व सिनेमा के सिर्फ कामयाब लेखक, निर्देशक ही नहीं हैं, बल्कि उन्होंने जब भी जो किया नये मुहावरे गढ़े। यह बात बुधवार को 'अनुकृति रंगमंडल कानपुर' द्वारा लोक सेवा मंडल के सहयोग से शास्त्री भवन खलासी लाइन कानपुर में आयोजित कार्यक्रम 'अतीत को नमन, वर्तमान को सम्मान' में वरिष्ठ रंगकर्मी व अनुकृति के सचिव डा.ओमेन्द्र कुमार ने कही। इससे पहले फिल्म गीतकार/ कवि शैलेन्द्र को उनके जन्मदिन के मौके पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की गयी।

श्री कपूर के सम्मान से पूर्व डा. ओमेन्द्र कुमार ने बताया कि 09 जून 1948 में सिहोर मध्य प्रदेश में जन्मे रंजीत जी 1973-76 में राष्ट्रीय नाट्य विधालय दिल्ली से स्नातक हैं। सुप्रसिद्ध अभिनेता अन्नू कपूर उनके छोटे भाई व फिल्म/ धारावाहिक निर्देशक सीमा कपूर उनकी बहन हैं। जाने भी दो यारों, कभी हां कभी न, लज्जा, बैंडिट क्वीन समेत तमाम फिल्मों की स्क्रिप्ट लिख चुके श्री कपूर ने रंगमंच के लिए एक रुका हुआ फैसला, एक घोड़ा छह सवार, एक संसदीय समिति की उठक बैठक सहित काफी नाटक लिखे और निर्देशित किये हैं।

 रंगकर्मी कृष्णा सक्सेना ने भी श्री कपूर से जुड़े अपने संस्मरण बताये। अनुकृति द्वारा रंजीत कपूर को 'लाइफ टाइम एचीवमेंट' सम्मान प्रदान किया गया। श्री कपूर ने शैलेन्द्र को एकमात्र मूलतः कवि गीतकार बताया। कहाकि 'सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है' जैसे सहज शब्दों के इस्तेमाल से शैलेन्द्र जी के गीत हमेशा जन जन तक लोकप्रिय रहेंगे।
इसके बाद भारत पाक संबंधों को रेखांकित करती रंजीत कपूर द्वारा लिखित-निर्देशित उनकी चर्चित फिल्म 'जय हो डेमोक्रेसी' का विशिष्ट प्रदर्शन आयोजित किया गया है।

फिल्म में एक पाक सैनिक का एक संवाद 'अल्लाह ईश्वर ने तो एक ही धरती बनायी थी इसे सीमाओं में तो हमने बांटा है' पर दर्शकों की खूब तालियां बजीं।

कार्यक्रम में डा. आनंद शुक्ला, डा. राजेन्द्र वर्मा, लोक सेवा मंडल के अध्यक्ष दीपक मालवीय, कपिल सिंह, संजय शर्मा, नीलम प्रिया मिश्रा, दीपिका सिंह, योगेन्द्र श्रीवास्तव, गोपाल शुक्ला, अनिल गौड़, उमेश शुक्ला, अभिलाष, आकाश, स्वयं कुमार समेत तमाम लोग मौजूद रहे।

मेछा-दाढ़ी बढ़ा ले भाई, साधू बन उड़ा मलाई...

रायपुर. प्रगतिशील लैखक संघ और इप्टा रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में वृंदावन हॉल रायपुर में आयोजित प्रसंग परसाई में प्रख्यात लेखक प्रभाकर चौबे ने मुख्य अतिथि की आसंदी से कहा कि हरिशंकर परसाई जी का समाज से बेहद जीवंत संपर्क था. वे सिर्फ रचनाकार ही नहीं बल्कि एक्टिविस्ट भी थे. आज के समय में जो लेखक राजनीति से परहेज़ करेगा वह भजन तो लिख सकता है किंतु साहित्य नहीं लिख सकता. परसाई जी समाज की तमाम चीजो से रस ग्रहण कर उसे विचारों में ढालते थे. आज फेसबुक, वाट्सएप जैसी सोशल मीडिया में प्रेमचंद और परसाई को सबसे ज्यादा उद्धृत किया जा रहा है, इसी से उनकी बढ़ती प्रासंगिकता का पता चलता है. परसाई जी हमेशा हम सबको रास्ता दिखाते रहेंगे.

 विशेष अतिथि वरिष्ठ रचनाकार और संपादक ललित सुरजन ने अपने संबोधन में कहा कि इन दिनों समाज और देश में जो कुछ भी घट रहा है, उसमें परसाई जी बहुत याद आ रहे हैं. आज परसाई की रचनाओं को लेकर जनता के बीच जाने की जरूरत है. आज जड़ स्थिति को तोड़ना जरूरी है. परसाई की रचनाएं युवाओं के लिए साहित्य में प्रवेश की खिड़की खोल सकती है.

विशेष अतिथि प्रख्यात रंगकर्मी एवं निर्देशक मिनहाज असद ने परसाई जी से हुई मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी याददाश्त अद्भुत थी. वे रंगकर्मियों के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रिय साहित्यकार हैं. वे छोटे छोटे वाक्यों में अपने तर्कों को बेहद सरलता से रखते थे.लेखक और रंगकर्मी सुभाष मिश्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हरिशंकर परसाई आजादी के बाद के सबसे बड़े लोकशिक्षक हैं. वे समय व समाज को बहुत बारीकी से देखते हैं.उनके व्यंग्य में करूणा की अंतरधारा बहती हैं. आज सबसे ज्यादा नाटक परसाई की रचनाओं पर ही खेले जा रहे हैं.

 दिल्ली से आईं रचनाकार हेमलता माहेश्वर ने अपने संबोधन में पाश की कविता का जिक्र करते हुए कहा कि समय ऐसा आ गया है कि शिकायत करें भी तो किससे करें और कैसे करें. परसाई जी छोटे छोटे वाक्यों से बड़ा सटायर खड़ा कर देते थे.

कार्यक्रम की शुरुआत इप्टा के कलाकारों ने जीवन यदु के एक प्रभावशाली जनगीत से किया. अंत में इप्टा ने निसार अली के निर्देश न में परसाई की रचना टार्च बेचने वाला का छत्तीसगढ़ी नाट्य रूपांतरण टैच बेचईया  का नाचा गम्मत की शैली में मंचन किया. इस अनूठे और प्रभावशाली मंचतन ने खूब तालियां बटोरी. विशेष कर निसार और शेखर नाग के अभिनय ने  दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ दी.
कार्यक्रम का संचालन संजय शाम और आभार प्रदर्शन अरूण काठोते ने किया.
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🔦🔦 टार्च बेचने वाला 🔦🔦
●हरिशंकर परसाई

गांव के दो हमउम्र दोस्त ,समारू और दुलारू की कथा है , "टार्च बेचने वाले" ...
आर्थिक दिक़्कतों में उलझे मित्रों के पास "चोंगी-माखुर" ख़रीदने लायक़ औक़ात बची नहीं ।दोनों भाग्य-भरोसे "उत्ती" और "बुड़ती" दिशा में निकल पड़ते हैं क़िस्मत आज़माने , इस उम्मीद के साथ कि एक बरस बाद यहीं मिलेंगे ।
पहला सस्ती " टॉर्च " बेचते भटकता है , दर -ब- दर ।

दूसरा "भीतर के अंधेरे का डर" बता , भक्तों को "भीतरी के टैच बत्ती" जलाने का सर्वोत्तम उपाय बताता ,  चढ़ावा बटोरते , छप्पनभोग लगाते , सुखी जीवन जी रहा है ।

भटकते हुए समारू को एक दिन " दुलारनाथ " के दर्शन  हो जाते हैं , और मित्र दुलारू से अचानक "मालदार" बन जाने  का रहस्य पूछता है ।बाबा  दुलारनाथ उस" बुद्धू" को समझाते हुए बताता है कि तू " टॉर्च " बेचते हुए बाहरी अंधकार का डर बताता है ...उसमें "कमाई " नहीं है ।

अगर तरक़्की करना है तो मेरे "धंधे" मेंं शामिल हो जा ...फ़ायदा-उप्पर-फ़ायदा ...
ग्लोबल उपभोक्ता बाज़ार और बाबा बाज़ार के गलबहिंया डाले सुनामी युग में , चिरहा-फटहा पंहिरे जोक्कड़ , लोटावाली नजरिया , भक्तिभाव में झूमते भक्तगण , " बाबा दुलारनाथ " का लोकल से लेकर ग्लोबल तक फैलता बाज़ार ...

नाचा शैली की छौंक लगाते दृश्यों की खेप-दर-खेप , पहली झलक से ही ठहाकों और तालियों की बौछार का समां बांध  देते हैं और जोक्कड़ को  लबालब - अपनेपन से सराबोर करने  लगती है ।

शेखर नाग ने जोक्कड़ - शैली में परसाई जी के व्यंग्य को शानदार ढंग से स्थापित किया , सीधे - सादे जोक्कड़ के रुप में " मैं हर हांवव जी टैच बेचईया " नचौड़ी गीत गाते ,टॉर्च बेचते , मनोशारिरिक आभिनय की चपलता और सहज-स्वभाविकता को शेखर ने शानदार ढंग से स्थापित किया । दूसरे जोक्कड़ के रुप में निसार अली ने बाबा दुलारनाथ की तर्र भूमिका निभाई ।
                                         
निसार अली अौर शेखर ने " प्रोफ़ेशनल नाचा एक्टर " का ख़िताब दर्शकों से पा ही लिया , दोनों की शानदार जुगलबंदी ने परसाई जी के तीखे व्यंग्य को लोकाभिनय के माध्यम से स्थापित किया ।

बाबा का इवेंट मैनेजर ( मानिक बर्मन ) , फ़ेसबुक नशेड़ी ( स्वप्निल एंथनी ) , लालचटनी बीमार( मीज़ान अहमद ) ,ऑटोवाला ( अजीत टंडन ) , टार्चवाला (मीज़ान अहमद) , चोटीकाट भूत-प्रेत- से बाधित महिला(ओंकार साहू) कोरस की भूमिका में अजय निर्मलकर ,छ्त्रपाल पठौर ने अभिनय किया से जुड़े दृश्यों ने दर्शकों से सामयिक संवाद क़ायम करने में कामयाबी हासिल की , इन दृश्यों में नये कलाकारों ने दमदार उपस्थिति दर्ज की । वेषभूषा , सामग्री संकलन अजय निर्मलकर का था ।मऊ गुप्ता( हारमोनियम ) ,( ढोलक ) , ने प्रस्तुति में सहयोग दिया । प्रस्तुति का निर्देशन निसार अली ने किया ।

कुल मिलाकर  इप्टा ने साबित कर दिया कि नाटक की सामयिक अंर्तवस्तु , अभिव्यक्ति के ख़तरे और अभिनेता के निजि मेहनत से कमाई " आज़ाद गम्मत अभिनय शैली " दर्शकों से शाना-ब-शाना जुड़ अपनेपन का अहसास रचती है । "टैच बेचईया" पिछले 25 वर्षों से नुक्कड़ , चौपाल अौर मंच पर लगातार खेला जा रहा है , प्रगतिशील कवि-गीतकार जीवन यदु द्वारा नाचा शैली में रुपांतरित "टैच बेचईया" अौर ज़्यादा सामयिक अौर धारदार बन गया है जिसके पैनेपन को हम अपनी उंगलियों पर परख सकते हैं ।  बहुत क़रीब से...

नाचा के शरुआत में  दर्शकों  को " इहिच मन हमर देवी है अऊ इहिच मन हमर देवता है " कहकर संबोधित करते ही हैं  "सर्वोत्तम नाचा देखईया दर्शकों " का  इप्टा परिवार की ओर से शुक्रिया अदा करते हैं।

■ निसार अली