Thursday, August 24, 2017

परसाई बनने के लिए तह पर जाकर मुद्दों को समझना जरुरी

ख्यात रचना और व्यंगकार हरिशंकर परसाई को उनकी रचनाओं पर आधारित नाटकों के जरिए किया याद. 

इंदौर. प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई ने हरिशंकर परसाई को उनकी रचनाओं पर आधारित नाटक के जरिए याद किया। मंगलवार को कस्तूरबाग्राम रुरल इंस्टीट्यूट में भोलाराम का जीव और सदाराव का तावीज जैसे नाटक मंचित किए गए। दोनों नाटकों के जरिए परसाई की रचना में व्यंग के समावेश ने दर्शकों को गुदगुदाया। साथ ही संदेश की गहराई पर सोचने को मजबूर किया। संस्था के करीब 200 से 250 युवतियां और कॉलेज प्रोफेसर्स शामिल हुए। व्याख्याता अजय सोलंकी ने कस्तूरबाग्राम का परिचय देकर कार्यक्रम की शुरुआत की। इंदौर प्रलेसं के अध्यक्ष एस के दुबे ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना 1936 में और पहला अधिवेशन लखनऊ में प्रेमचंद की अध्यक्षता में 9 और 10 अप्रैल 1936 में हुआ। विद्यार्थी निकिता जामले ने परसाई जी का परिचय दिया। हिंदी की विद्वान शोभना जोशी ने परसाई, परसाई बने कैसे? परसाई बनने के लिए तह पर जाकर मुद्दों, परेशानियों को समझना जरुरी है। विद्यार्थियों को व्यंग्य और हास्य में अंतर बताते हुए कहा किसी समस्या को, शोषण को शब्दों के ताने बाने में लपेटकर कटाक्ष के साथ लोगों के सामने रखना व्यंग्य है। जो सतही या उथली बातों पर केंद्रित नहीं होता है। 

लगातार पढ़ते हुए भी हर बार खुलेगी नई परत

सारिका श्रीवास्तव ने संचालन करते हुए कहा साहित्यकारों का काम केवल मजे मजे और घनघोर साहित्य की रचना करना ही नहीं है। एक अच्छा रचनाकार वही है जो लोगों तक अपनी बात पहुंचा सके। उनके दुख तकलीफ को समझ सके। जो किसानों, मजदूरों और तमाम शोषित तबके के दर्द अपनी रचनाओं के जरिए दिखा सके। जो परसाई को एक बार पढ़ेगा बार बार पढऩा चाहेगा और जितनी बार पढ़ेगा हर बार नया व्यंग्य एक नई परत को खुला हुआ पाएगा। उनके व्यंग्य पढ़ते हुए लगता है जैसे वर्तमान परिस्थितियों पर ही बात हो रही हो।

कुरीतियों और प्रशासन की व्यंग से खोली पोल

गुलरेज खान ने नाटक के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि हरिशंकर परसाई मखमल में जूते लपेटकर मारते थे। उन जैसा व्यंग्यकार जो समाज की कुरीतियों और प्रशासन की पोल को अपने व्यंग्य के जरिए लोगों के सामने रखा। ये आज हम उनकी दो व्यंग्य रचनाओं भोलाराम का जीव और सदाचार का ताबीज पर दो नाटक खेल रहे हैं। संस्था की ही छात्रा निर्मला सिसौदिया ने परसाई की रचनाओं पर अपनी बात रखी। कार्यक्रम में कस्तूरबाग्राम रुरल इंस्टीट्यूट की प्राचार्या निर्मला सिंह और उनके स्टाफ ने विशेष सहयोग दिया। आभार प्रलेस की नई सदस्य अर्शी ने माना। 

कलाकार 

नाटकों का निर्देशन गुलरेज खान ने किया। अजय, जय, यश, पलश, हिमांशु रायकवार, शाहबाज खान, रौशन, कनक, नुपूर, मयंक, मेलिस एस मिलन, यश जैन, अजय गोयल, पुलकितसोनी, अमुल, अनुज यादव, हिमांशु पांचाल, हिमांशी, चित्रांश, मोहित,  ऋषभ, राजिक, उमंग, जय शर्मा आदि कलाकारों ने अभिनय किया।   

- सारिका श्रीवास्तव                      

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