Wednesday, June 28, 2017

परमाणु रिसाव के ख़तरों से आगाह करती एक नाट्य प्रस्तुति

-सारिका श्रीवास्तव

इंदौर। 11 मई 2011 में जापान के फुकुशिमा में सुनामी के बाद टूटे परमाणु संयंत्र के विकिरण से तमाम दुष्प्रभाव हुए। जनहानि का पता चला नहीं या चलने नहीं दिया गया लेकिन परमाणु रिसाव के फलस्वरूप हजारों की संख्या में मारे गए समुद्री जीव-जन्तुओं ने तो ये राज खोला ही कि परमाणु विकिरण का क्या असर जीवन पर पड़ता है और यह कि अभी तक हमें उस पर काबू पाने के तरीके पता नहीं हैं। नतीजा यही है कि जब भी ऐसी दुर्घटना होती है तो समुद्री जल जीवों की तरह ही आम नागरिक ही निशाना बनते हैं। परमाणु विकिरण से होने वाले दुष्प्रभावों पर केन्द्रित 30 मिनिट की अवधि के माइम नाटक ‘‘एक मछली की कहानी’’ के जरिए कोलकाता से आये माइम कलाकार सुषान्त दास ने अदुभुत समा बाँधा। कुडनकुलम में लगाए जाने वाले परमाणु संयंत्र के विरोध में समुद्र पर आश्रित एवं अपनी जीविका चलाने वाले मछुआरों, नाविकों के विरोध, नेताओं की स्वार्थपरक राजनीति और अपनी ताकत के दम पर पुलिस द्वारा इस विरोध पर दमनात्मक कार्यवाही और समुद्री जीवजन्तुओं के ऊपर इससे पड़ने वाले दुष्प्रभाव को उन्होंने बहुत ही भावप्रवण तरीके से प्रस्तुत किया।

उनके शरीर की मुद्राएँ और अभिनय तथा सिर्फ़ मेकअप के सहारे अकेले ऐसे जटिल विषय पर बच्चों-बड़ों की दिलचस्पी कायम रखना आश्चर्यजनक था। बिना किन्हीं उपकरणों व संगीत आदि के पूरी तरह उनकी प्रस्तुति उन पर ही निर्भर रहती है। उनका संतुलन, भाव-भंगिमाएँ चकित कर देती हैं।

श्री सुषान्त दास कोलकाता के रविन्द्र भवन से 2004 के माइम कला के टॅापर रहे हैं। वे पिछले 15 वर्षों से एकल अभिनय के जरिए माइम द्वारा लोगों के बीच सामाजिक चेतना लाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जनांदोलनों के विषयों को अपने नाटक का विषय बनाया है ताकि उनकी कला भी आंदोलन का एक हिस्सा बन सके।

उनकी यही प्रस्तुति उपस्थित दर्षकों की समझ को देखते हुए थोड़ी-बहुत रद्दोबदल के साथ इंदौर में 22 और 23 जून 2016 को तीन जगहों पर इंदौर इप्टा द्वारा आयोजित की गई। उन्होंने इंदौर इप्टा के किशोर और युवा कलाकारों को भी माइम के बारे में विस्तार से बताया।

स्टेट बैंक अॅाफ इंदौर यूनियन द्वारा चलाये जा रहे एक विद्यालय में 22 जून को सुषान्त द्वारा माइम की प्रथम प्रस्तुति इसी विद्यालय के बच्चों व शिक्षकों के मध्य दी गई। नर्सरी से कक्षा 12 तक के बच्चों के मध्य किए गए इस माइम के जरिए पर्यावरण प्रदूषण के जलजीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को बखूबी पेश किया गया। कॉमरेड आलोक खरे व स्कूल प्रशसन का इसमें उत्साहजनक सहयोग रहा।
इसी दिन शाम को पालदा स्थित कचड़ा बीनने वालों और दूसरों के घरों में काम करने वाली मेहनतकश महिलाओं के अधिकारों के लिए एकजुट करने वाले जनविकास केन्द्र की मेहनतकश महिलाओं और उनके बच्चों के मध्य भी उन्होंने प्रभावी प्रस्तुति दी। कृष्णार्जुन और फादर रॉय ने इस सभा को सफल बनाने में योगदान दिया।

रूपांकन के साथी अशोक दुबे, साथी शारदा बहन, अरविंद, घनश्याम, दीपिका, डोलू (रितिका), राज आदि के सहयोग से शंकरगंज, जिंसी में इप्टा के तत्वावधान में तीसरी प्रस्तुति की गई थी। कार्यक्रम का प्रारंभ करते हुए इंदौर इप्टा के सचिव अषोक दुबे ने उपस्थित लोगों को इंदौर में 2, 3 व 4 अक्टूबर को आयोजित होने वाले चौदहवें राष्ट्रीय सम्मेलन की जानकारी दी और कहा कि लगभग हर 15 दिन में इप्टा की ओर से इंदौर में की जा रहीं ये प्रस्तुतियाँ राष्ट्रीय सम्मेलन की तैयारियों का हिस्सा हैं और आगामी 22 जुलाई को अमृतलाल नागर की कहानियों पर मुम्बई के कलाकार नाटक प्रस्तुत करेंगे।

इस मौके पर इंसानियत और सूफियाना रवायत को कव्वाली के जरिए देश-विदेशों तक पहुँचाने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मशहूर कव्वाल अहमद साबरी की पाकिस्तान के कराची में दिनदहाड़े हुई हत्या और बंगाल में इंसानियत के लिए आवाज बुलंद करने वाले ब्लॉगरों की हत्या की घोर निंदा और विरोध करते हुए अशोक दुबे ने कहा कि अहमद साबरी हों, दाभोलकर, पानसरे या कलबुर्गी हों वे हमारी आवाज, हमारे विचारों को कभी नहीं मार सकते क्योंकि वे पूरी फिजां में घुले हुए हैं। इंदौर इप्टा की ओर से अहमद साबरी को श्रृद्धांजली दी गई।

शान्ति एकजुटता समिति के संयोजक कॅामरेड पी.सी. जैन, इंदौर इप्टा अध्यक्ष विजय दलाल, अरविंद पोरवाल, अजय लागू, जयप्रकाश, इंदौर के नाट्यकर्मी सुशील गोयल, रवि और उनके साथी, शिल्पकार जितेन्द्र वेगड़, इप्टा के साथी पूजा सोलसे, महिमा सिंह, राज लोगरे, साक्षी और अंशुल सोलंकी के अलावा दस साल से लेकर सत्तर वर्ष की उम्र तक के लोग इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।

कार्यक्रम के अंत में कॅामरेड पी.सी.जैन ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हम शांति और अमन चाहने वाले लोग हैं जो पृथ्वी को खुशहाल रखना चाहते हैं। हजारों करोड़ रुपया परमाणु संयंत्र पर खर्च करने के बजाए भारत में लोगों को शिक्षा, रोजगार और अच्छा स्वास्थ्य उपलब्ध करवाना अधिक जरूरी है परंतु सरकार निजी स्वार्थ के चलते पूरे देश को फिर से विदेशियों के हाथ में सौंप रही है। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। कार्यक्रम का संचालन अशोक दुबे और सारिका श्रीवास्तव ने किया।

Saturday, June 24, 2017

अमेरिकी फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन की मख़मली गोद और जन नाट्य मंच

- राजेश चन्द्र

जन नाट्य मंच सफदर हाशमी की हत्या के बाद से ही एक सांस्कृतिक दोराहे पर खड़ा रहा है।  एक तरफ सफदर की जनवादी सांस्कृतिक आन्दोलन की परंपरा के संरक्षण का दबाव और दूसरी तरफ इलीट संस्कृति की ऐश्वर्यशाली जीवनशैली का व्यामोह उसे खींचता रहा है। सांगठनिक लोकतंत्र के सम्पूर्ण निषेध और पार्टी (सीपीआईएम) की दुर्भाग्यपूर्ण विफलताओं ने जनम को हमेशा इतनी सुविधा और स्पेस मुहैय्या कराया कि वह इस विरोधाभास को जीते हुए भी जनवादी भ्रम बनाये रख सके और अपनी इलीट लालसाओं की सम्पूर्ण तुष्टि का व्यापार गांठता रह सके। इस खींचतान का फ़ायदा इलीट सुधन्वा देशपांडे और माला हाशमी ने खूब उठाया है। एक तरफ उन्होंने रंगमंच के एनएसडी जैसे ब्राह्मणवादी और इलीटिस्ट संस्थान से एक साहचर्य और आदान-प्रदान का सम्बंध बनाये रखा ताकि दिल्ली और देश के इलीट सर्किल में उनकी स्वीकार्यता बनी रहे, और दूसरी तरफ पार्टी के बौद्धिक-सांस्कृतिक अकाल और सन्नाटे का चालाक दोहन करते हुए जनवादी हलकों में भी उनकी केन्द्रीयता क़ायम रहे। इस सुअवसर को मुफ़ीद और स्वर्णिम बनाने का एक भी अवसर उन्होंने गंवाया हो, इसका उदाहरण नहीं मिलेगा।

सफदर स्टूडियो बन जाने के बाद सुधन्वा ने अपनी निजी इलीट लालसाओं के अनुसार उसकी कार्यशैली विकसित की और खुद को अब तक उसका एकच्छत्र भाग्यविधाता बनाये रखा है। सफदर स्टूडियो उस मेहनतकश जनता के सहयोग से निर्मित हुआ है, जिसके लिये सफदर काम करते रहे, पर वह उस वर्ग की बख़्तरबंद आरामग़ाह बना हुआ है, जिसके ख़िलाफ़ लड़ते हुए सफ़दर ने शहादत दे दी। सुधन्वा और माला हाशमी ने उसे आम जनता की पहुंच और भागीदारी से मुक्त एक इलीट द्वीप की तरह विकसित किया है और इसका अहसास वहां जाकर कोई भी कर सकता है। सुधन्वा और माला हाशमी का दिल्ली के रंगजगत और यहां की सामान्य जनता से कोई सम्पर्क और जुड़ाव नहीं है और स्वाभाविक ही है कि वे जनता के किसी भी आन्दोलन और संघर्ष में शामिल नहीं दिखायी पड़ते। नुक्कड़ नाटक से तो वर्षों पहले उन्होंने किनारा कर लिया था, और सफदर की पुण्यतिथि और जयंती जैसी सालाना उत्सवधर्मिताओं का निर्वाह करने भर के लिये उन्होंने एनएसडी जैसे इलीट और ब्राह्मणवादी संस्थान में मुलायम कालीन के ऊपर चुनिन्दा दर्शकों के बीच बाबा आदम के ज़माने के कथित 'जनवादी नाटक' का उथला, प्राणहीन प्रदर्शन कर देने तक खुद को सीमित कर लिया है। दिल्ली की मलिन बस्तियों, कल-कारखानों की धूल फांकने के बजाय उन्होंने पिछले एक-डेढ़ दशक में अमेरिका और यूरोप के देशों में जाकर 'जनवाद' की अलख जगायी है! मकसद समझना इतना मुश्किल भी नहीं है। यह ऐसा ही है जैसे दिल्ली के एनजीओ सड़क के बच्चों को विदेश यात्रा पर ले जाते हैं, ताकि उनकी फटेहाली और दुर्दशा का प्रदर्शन कर 'डॉलर सहायता' जुटा सकें। सड़क के बच्चे दुबारा सड़कों पर छोड़ दिये जाते हैं। उनकी भूमिका यही समाप्त हो जाती है।

जन नाट्य मंच ने अब इन्डिया फ़ाउन्डेशन फ़ॉर द आर्ट्स जैसी फ़ंडिंग एजेन्सी का दामन थाम लिया है, जो भारत में फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन और रॉकफ़ेलर फ़ाउन्डेशन के वैश्विक साम्राज्यवादी एजेन्डे को लागू कराने वाली प्रतिनिधि संस्था है। फ़ोर्ड और रॉकफ़ेलर जैसी संस्थाओं के कारनामे दुनिया भर के शिक्षित लोगों को मालूम हैं और उन्हें दोहराने की बहुत ज़रूरत नहीं महसूस होती। ये संस्थाएं अमेरिकी हितों के अनुरूप दुनिया में हिंसा, अशान्ति, उपद्रव और अराजकता फैलाने तथा वामपंथी आन्दोलनों को पनपने न देने की अपनी बेहतरीन उपलब्धियों के लिये विख्यात हैं। आज 23 जून है और आज ही जन नाट्य मंच और इन्डिया फ़ाउन्डेशन फ़ॉर द आर्ट्स के नये गठबंधन और वैचारिक साझेदारी की औपचारिक शुरुआत हो रही है। शाम को 7 बजे सफदर स्टूडियो में 'नुक्कड़ नाटक की एक शाम' का आयोजन है, जिसके लिये जनम ने लोगों को आमंत्रण बांटा है। यह जनपक्षधर रंगमंच का एक नया शिफ़्ट है, जिसका नेतृत्व एक बार फिर से जनम कर रहा है। यह उसका ऐतिहासिक कार्यभार जो है। हाल के वर्षों में जनम की सक्रियता इजरायल के खिलाफ नुक्कड़ नाटक के माध्यम से एक देशव्यापी प्रतिरोध विकसित करने को लेकर दिखायी पड़ी थी, जिसके बारे में सुनने में आता है कि उस अभियान के लिये जनम को फिलिस्तीन से भरपूर फंड मिला था और इस फंड का हिस्सा उसने देश के कई अन्य समानधर्मा संगठनों (खास तौर से पटना की प्रेरणा जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा) के साथ भी बांटा!

प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने 'विरोधी धारा का थियेटर' शीर्षक से अपने एक आलेख में कहा था कि, 'कला और संस्कृति का विकास तब तक होता है, जब तक वह धारा के विरुद्ध गतिमान रहती है। उसके साथ चल कर वह हमेशा कमज़ोर पड़ जाती है। शासक वर्ग की संस्कृति ने आज ऐसी व्यूह रचना कर ली है कि अब अगर लोकधर्मी या शोषित वर्ग की संस्कृति को पनपना है तो वह उसके विरोध में ही पनप सकेगी, वरना उसी संस्कृति का एक हिस्सा बन कर रह जायेगी।' सफदर हाशमी का जन नाट्य मंच आज वैश्विक पूंजी के सांस्कृतिक खेल का हिस्सा बन गया है। इस नये शिफ़्ट का इस्तक़बाल कीजिये!

(पोस्ट के साथ आज के कार्यक्रम का आमंत्रण और इन्डिया फ़ाउन्डेशन पर एक रपट का स्नैपशॉट है, जिसमें उसके फंडिंग स्रोतों का स्पष्ट विवरण दिया गया है। रपट का लिंक कमेन्ट बॉक्स में है।)