Friday, May 5, 2017

नसीरुद्दीन शाह का रंगमंचीय जादू से मोहभंग

- राजेश कुमार 
ज लखनऊ, हिदुस्तान में एक खबर छपी है जिसमे नसीरुद्दीन शाह ने कहा है कि रंगमंच कोई जादू नहीं है। उन्होंने amu के कैनेडी हॉल में घोषणा की है कि वे अब लाइट, साउंड और सेट लगे रंगमंच में काम नहीं करेंगे। जो लोग परिकल्पना के नाम पर भव्य सेट लगाते हैं, तिलस्मी प्रकाश उत्पन्न करते हैं, दरअसल वे रंगमंच देखने आ रही जनता के साथ धोखा है। उन्होंने कहा है कि इस भुल भुलैया में रंगमंच भटक गया है।आज स्टेज पर कोई समुद्र ले आता है, हेलीकाप्टर उतार देता है, एक सेकंड में महल खड़ा कर देता है, उसमे आग लगा देता है। रंगमंच के नाम पर जो किया जा रहा है, वो गलत है। क्योंकि रंगमंच कोई जादू नहीं, हक़ीक़त दर्शाता है। रंगमंच देखना फ़िल्म देखने से ज्यादा मुश्किल है। रंगमंच देखने में दिमाग का इस्तेमाल करना होता है।

नसीरूदीन शाह का सवाल वाजिब है। यथार्थवादी नाटक के आने के पूर्व भारतीय रंगमंच चाहे संस्कृत नाटक हो या लोक नाटक इसी अवधारणा पर कायम था।ब्रेष्ट ने एशियाई नाटकों को देखकर ही एपिक थिएटर गढ़ा। उसमे में कोई प्रकाश,सेट का भव्य तिलस्म नहीं था। जब हमारे मुल्क में साम्राज्यवाद का प्रवेश हुआ, यहां का थिएटर भी प्रभावित हुआ।जिसका चरम है एनएसडी और महानगरों के नाटक। दिल्ली सरकार का तुगलक और अंधा युग कोई भूल सकता है? आये दिन एनएसडी में जिस तरह के महंगे नाटक होते हैं, या आज भी हो रहे हैं, नसीर के शब्दों का मजाक उड़ाने जैसे हैं।और फिरोज खान का नाटक 'मुगले आजम'को नसीर भी देख ले तो पता नहीं क्या कहेंगे? धोखा शब्द बहुत छोटा लगेगा।

लेकिन नसीर भाई को ये बयान amu में कहने के अपेक्षा, दो दिन पूर्व देना बेहतर होता । और वो जगह सटीक होती जहां अभी अभी अपना नाटक किया है। ये बात अगर मेघदूत से ये एनएसडी के अभिमंच से की जाती तो उसका असर कुछ और होता। हम भी देखते, जो नसीर के भक्त है और एनएसडी की परंपरओं से जोंक की तरह चिपके हैं, क्या रियेक्ट करते हैं? कहते हैं कि इब्राहिम अल्काजी की यथार्थवादी अवधारणा पर एनएसडी की बुनियाद टिकी है। आषाढ़ का एक दिन, अंधा युग, तुग़लक़, आधे अधूरे, जैसे नाटक ने भारतीय रंगमंच को यथार्थवाद से परिचय कराया था। आज वो यथार्थ बढ़ते हुए किस कदर विकृत हो गया है, नसीर ने उसकी तरफ इशारा कर दिया है।

कहीं उस बुनियाद की तरफ तो नसीर का इशारा नहीं है ? कहीं उस पर नसीर शक तो नहीं कर रहे है? कुछ तो गड़बड़ है वरना उम्र के इस पड़ाव पर नसीर इतने मुखर नहीं होते?

-लेखक की फेसबुक वॉल से साभार

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