Friday, May 12, 2017

तो इसलिए कटप्पा ने बाहुबली को मारा!

-राजेश कुमार 
टप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? आज भी ये सवाल चर्चा में है। इस फ़िल्म के हिंदी संवाद लेखक ने मीडिया को बताया कि उसने ये रहस्य अपनी पत्नी को भी नहीं बताया। हर आदमी इसे गोपनीय रख रहा है, न किसी को बता रहा है न कोई दूसरे से जानने की कोशिश कर रहा है। अब तो काफी लोग जान गए होंगे, अब बताने में क्या झिझक है? मारने के पीछे कौन से मनोविज्ञान है, जानने में क्या परेशानी है? हमारे कुछ रंगकर्मी साथी ये भी कह रहे हैं कि मनोरंजक फ़िल्म को मनोरंजन की ही तरह देखना चाहिए, आलोचना करने के बजाय डबल फ़िल्टर बिसलरी पीते हुए कोई क्लासिक साहित्य को पढ़ना उचित है। मनोरंजन प्राप्त करने का हर किसी का अपना नजरिया होता है।बहुतों को क्लासिकल साहित्य पढ़ने में भी खूब आनंद आता है। बहुतों को चालू साहित्य, फ़िल्म देखने में भी मनोरंजन प्राप्तनहीं होता है।

खैर यहां बात हो रही थी कटप्पा की। कटप्पा को मंत्री ने बाहुबली को मारने का आदेश दिया जो राजमाता के ही परिवार का है। प्रारम्भ में कटप्पा तैयार नहीं होता है तो मंत्री ने उसके तथाकथित संस्कार को जगाया। कहा कि पीढ़ियों से , कोई दसियों पीढ़ियों से तुम्हारा वंश राजा की आज्ञा मानता रहा है, राजसत्ता की सेवा करता रहा है। परिणाम ये होता है कि कटप्पा बाहुबली को मार देता है। वह सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय कुछ नहीं देखता है। धोखे से , पीछे से बाहुबली की पीठ में कटार घोप देता है। कटप्पा जिसके साथ हमेशा न्याय चलता है, इस मोड़ पर आंख मूंद लेता है।

सवाल उठता है कि कटप्पा है कौन? कटप्पा दास है। कटप्पा सेवक है राजवंश का। और राजतंत्र की व्यवस्था का पन्ना धाय है जो राजा के बच्चे को बचाने के लिए अपने बच्चे की बलि दे दी। उस व्यवस्था को बचाने के लिए राजतंत्र के उस उत्तराधिकारी को बचाया जिसके वंशज सहारनपुर , लक्ष्मण बाथे में पन्ना धाय के बच्चों को मार रहे हैं। 

कटप्पा उस राजतंत्र के वर्णवादी व्यवस्था का शूद्र है जिसका काम केवल सेवा करना है। यही उसका धर्म है। और इस धर्म को पालन करने में उसकी जान भी चली जाय तो कोई बात नहीं हैं। कटप्पा के माध्यम से निर्देशक यही कहना चाहता है कि राजतंत्र में ही नहीं जनतंत्र में भी तुम तभी सम्मान पा सकोगे जब शूद्रत्व का पालन करते हुए जीवन भर कटप्पा की तरह सेवा करोगे। दर्शक भी आज के शूद्रों से कटप्पा की तरह सेवा भाव की आशा करता है। जैसे बाहुबली के पुत्र के पैरों को कटप्पा अपने सर पर रख कर जीवन सार्थक समझता है, उसी तरह आज सवर्ण समाज शूद्रों से अपेक्षा करता है।मन में यही भाव प्रबल रहता है, इसलिए निर्देशक ऐसे पात्र सृजन करता है, दर्शक उसे प्यार देता है। जिस दिन कटप्पा रोम के स्पार्टकस की तरह विद्रोह कर देगा, यहीं निर्देशक उसे खलनायक में बदल देगा और अगली फिल्म के लिये टैग लाइन बना देगा कि बाहुबली ने कटप्पा को क्यों मारा?

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