Sunday, April 2, 2017

विश्व रंगमंच दिवस संदेश – 2017 : ईज़ाबेल हपर्त

                                     

हिन्दी अनुवाद – अखिलेश दीक्षित

विश्व रंगमंच दिवस का उत्सव मनाने का सिलसिला 55 वर्षों से लगातार चल रहा है | इस वसंत ऋतु में हम फिर यहाँ एकत्रित हो गए | पूरी दुनिया में रंगमंच का उत्सव मनाने के लिए सिर्फ़ दिन या चौबीस घंटे समर्पित हैं | आज हम पेरिस जैसे शहर में हैं जो विश्व के हर कोने से अनतरराष्ट्रीय रंगमंच समूहों को सम्मान पूर्वक आमंत्रित करता रहता है |
पेरिस, जो कि एक वैश्विक शहर है, एक दिन के उत्सव में भी पूरे विश्व की रंगमंच परंपरा को समाहित करने में सक्षम है | यहीं से हम जापान के नोह और बनराकू तक पहुँच सकते है, कथक कली और पेकिंग ऑपेरा जैसी एकदम भिन्न विधाओं के विचार और अभिव्यक्ति को समझ सकते हैं | जैसे ही हम एस्किलस, इब्सन, सोफ़ोक्लीज़ और स्ट्रिंगबर्ग के विचारों में डूबते हैं मंच हमें ग्रीस और स्कैंडेनेविया के बीच लाता-ले जाता है | जैसे ही सारा केन और पिरेंदिलो की आवाज़ सुनाई देती है हम ब्रिटेन और इटली के बीच उड़ान भरने लगते हैं | इन्हीं चौबीस घंटों में हम फ़्रांस से रूस, रसीन, मौलियर और चेखोव तक जा सकते हैं | केलिफ़ोर्निया के किसी अध्ययन केन्द्र में युवा छात्रों को उनकी रचनात्मक ऊर्जा को पुनर्सृजित कर थियेटर में रच-बस जाने और अपनी पहचान बनाने के लिए उत्प्रेरित करने के उद्देश्य से हम अटलांटिक भी पार कर सकते हैं | रंगमंच में निश्चित रूप से ऐसा उन्नतिशील जीवन है जो दिक्-काल (Time and Space) को चुनौती देता रहता है | इस कला के अधिकतर समकालीन प्रारूपों को पिछली शताब्दियों की उपलब्धियों ने विकसित किया | यहाँ तक कि विशुद्ध शास्त्रीय प्रस्तुतियाँ अपने हर प्रदर्शन के साथ नयी व अधिक जीवंत दिखाई देती हैं | रंगमंच हमेशा अपनी ख़ाक से पैदा होता है | हर प्रदर्शन का अंत ही उसका पुनर्जीवन है जो  वर्तमान सन्दर्भों की मांग के अनुसार पिछली परिपाटियों में बदलाव करते हुए अपने अभिनव प्रारूपों में सामने आता है | यही प्रक्रिया इसे जीवित रखती है |

विश्व रंगमंच का उत्सव कोई साधारण अवसर नहीं है कि हम किसी भी जुलूस या भीड़ में शामिल हो जाएँ | यह हमें वसुधैव कुटुंबकम जैसे विचार के माध्यम से दिक्-काल की निरंतरता और असीमितता तक ले जाता है | मैं अपनी बात को फ़्रांसीसी नाटककार ज़्यां तार्दू के विचारों से स्पष्ट करना चाहती हूँ | स्पेस के बारे में उन्होंने कहा कि यह पूछना जागरूक होने की पहचान है, “एक से दूसरे तक का सबसे लम्बा रास्ता क्या है?” समय के लिए वो मापने की बात करते हैं, “ ‘अनन्त’ शब्द को उच्चारित करने के लिए एक सेकेण्ड का दसवां हिस्सा ही काफ़ी है |” दिक्-काल के लिए वो कहते हैं “सोने से पहले अपने मस्तिष्क को काल के दो बिन्दुओं पर केन्द्रित करो, स्वप्न में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के समय की गणना करो |”

‘स्वप्न में...’ ये अभिव्यक्ति हमेशा मेरे साथ चलती है | ऐसा लगता है जैसे तार्दू और बॉब विल्सन* एक दूसरे से मिल रहे हों | (अनुवादक का फ़ुट नोट देखें)
हम सैमुयल बेकेट के चरित्र विनी के संवाद “ओह, कितना खूबसूरत दिन होगा” के माध्यम से भी इन चौबीस घंटों की विशिष्टता को रेखांकित कर सकते हैं | इस संदेश को लिखने का अवसर मुझे मिला..... बहुत सम्मानित महसूस किया मैंने | इस युनेस्को सभागार में मैं अकेले नहीं आई हूँ | हर वो चरित्र जो मैंने निभाया है मेरे साथ है; फ़ेद्रा, अरामिंते, ऑरलैंडो, हेड्डा गेब्लर, मेदिया, मेफ़्तोई, ब्लांश डुबॉय... (**इन चरित्रों का परिचय अनुवादक द्वारा लेख के अंत में दिया गया है) | संदेश लिखते वक़्त मुझे उन सभी दृश्यों की छवियाँ याद आयीं | भूमिकाएँ जो पर्दा गिरने के साथ यूं तो मुझसे अलग हो जाती हैं मगर मुझमें एक अंदरूनी जीवन तराश कर भविष्य के चरित्रों की संरचना में सहायक होती हैं या उनके प्रभाव को मिटा देती हैं....वो सब चरित्र भी मेरे साथ हैं जिन्हें मैंने दर्शक बनकर देखा, चाहा और सराहा | कह सकती हूँ कि मेरा रिश्ता  ग्रीस, अफ़्रीक़ा, सीरिया, वेनिस, रूस, ब्राज़ील, फ़ारस, रोम, जापान, न्यूयॉर्क, मॉरीशस, फ़िलीपीन्स, अर्जेन्टीना, नॉर्वे, कोरिया, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और ब्रिटेन से भी है | मेरे भीतर समाहित चरित्रों ने मुझे एक सच्चा विश्व नागरिक बना दिया है | रंगमंच ही वैश्वीकरण को सही अर्थों में परिभाषित करता है |

1964 के विश्व रंगमंच दिवस पर लॉरेंस ओलीवियर ने कहा कि एक शताब्दी से अधिक समय तक संघर्ष करने के बाद यूनाइटेड किंग्डम में राष्ट्रीय रंगमंच की स्थापना संभव हो सकी जिसे वो रंगपटल और प्रस्तुतियों के स्तर पर जल्दी ही अंतरराष्ट्रीय रंगमंच का स्वरूप देना चाहते हैं | वो समझते थे कि शेक्सपियर का संबंध पूरी दुनिया से है |

अपने आज के संदेश को लिखने की शोध प्रक्रिया से गुज़रते हुए मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि 1962 में विश्व रंगमंच दिवस का उदघाटन संदेश लिखने का आग्रह ज़्यां कुकतू से किया गया | अपनी किताब अराउण्ड द वर्ल्ड इन एट्टी डेज़ के कारण वो सबसे योग्य व्यक्ति थे | मुझे एहसास हुआ कि अस्सी नाटकों या अस्सी फ़िल्मों के माध्यम से मैंने भी तरह-तरह से विश्व भ्रमण पर किया है | रंगमंच और फ़िल्म को अलग करके नहीं देखती मैं | हर बार जब ऐसा कहती हूँ तो मुझे आश्चर्य होता है... पर यह सच है |

यहाँ आपसे मुख़ातिब होते हुए मैं सिर्फ़ मैं नहीं हूँ | एक अभिनेत्री भी नहीं हूँ... उन लोगों की प्रतिनिधि हूँ जिन्हें रंगमंच अपने अस्तित्व का वाहक बनाता है.... माध्यम बनाता है | मुझे यह तथ्य खुले मन से स्वीकारना चाहिए | दूसरे शब्दों में कहें तो रंगमंच का अस्तित्व हम नहीं रचते बल्कि वो हमारे अस्तित्व को गढ़ता है | हम रंगमंच के कृतज्ञ हैं कि हम जीवित हैं, जागरूक हैं | रंगमंच बहुत ही सामर्थ्यवान और प्रबल विधा है.... युद्ध हो, अभिव्यक्ति पर रोक हो या अभाव..... यह सबका प्रतिरोध करते हुए अपना रास्ता बना लेता है |

“मंच एक अनिश्चित/अनपेक्ष समय का अनावृत दृश्य है |” यहाँ एक अभिनेता या अभिनेत्री चाहिए | वो क्या करेंगे ? वो क्या कहेंगे ? क्या वो बातें करेंगे ? ऐसे बहुत से प्रश्न सामने बैठे दर्शकों की उत्सुकता बढ़ा रहे हैं !  हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि दर्शक या प्रेक्षक के बगैर रंगमंच का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता | हॉल में बैठा अकेला व्यक्ति भी दर्शक है | पर हम आशान्वित रहें कि कम से कम कुर्सियां ख़ाली रहें | आयोनेस्की के नाटकों में प्रेक्षागृह हमेशा भरे रहते हैं | उनके किसी नाटक के अंत में एक बूढ़ी औरत कहती है “हाँ...हाँ.....पूरी शान से मौत को गले लगायें | अपना रास्ता ख़ुद चुनने के लिए आज़ाद हों |” वह हमेशा ऐसे कलात्मक साहस का प्रतिनिधित्व करते दिखायी देते हैं |

विश्व रंगमंच दिवस का उत्सव मनाते हुए 55 बरस हो गए हैं | इस दौरान मैं आठवीं महिला हूँ जिसे ये संदेश लिखने और पढ़ने के लिए आमंत्रित किया गया (ओह, पुरुष प्रजाति अपने आप को किस किस क़दर थोपती है) संदेश लिखने वालों ने कल्पना, भाव प्रवणता, आज़ादी और मौलिकता के विचार पर बल दिया जिससे सौंदर्य, बहुसंस्कृतिवाद और अनुत्तरित प्रश्नों का आह्वान किया जा सके | 2013 में दोरिओ फ़ो ने अपने संदेश में कहा “इस तरह के संकट का हल इसी आशा पर टिका है कि हमारे युवा, ख़ास तौर पर उनके विरुद्ध जो रंगमंच की कला सीखना चाहते हैं, धर-पकड़ और निर्वासन की एक मुहिम चले और हास्य-व्यंग्य कलाकारों के साथ रंगमंच की तामीर करने वालों का नया समूह उसमें निश्चित रूप से अकल्पनीय फ़ायदा तलाशने के साथ इस ज़ोर-ज़बरदस्ती के विरुद्ध आगे आए |” अकल्पनीय फ़ायदा – ये जुमला एक नुस्ख़े की तरह अच्छा ध्वनित होता है जिसे किसी भी राजनैतिक शब्दाडंबर में शामिल किया जा सकता है | क्या आप ऐसा नहीं सोचते ? फ्रांस के नए राष्ट्रपति के चुनाव से कुछ दिन पहले मैं यहाँ पेरिस में हूँ | वो सभी जो हमारे ऊपर शासन करने को लालायित रहते हैं उन सबको एक सुझाव देना चाहती हूँ कि उन्हें रंगमंच के अकल्पनीय फ़ायदों के प्रति जागरूक और सचेत रहना चाहिए | धर-पकड़ और ज़ोर-ज़बरदस्ती के बग़ैर  |

मेरे लिए रंगमंच का मतलब संवाद बनाए रखने से है – किसी तरह की घृणा या वैमनस्य के बिना..... लोगों के बीच दोस्ती के साथ | समुदाय, दर्शक व अभिनेता की दोस्ती.... कभी न खत्म होने वाला जुड़ाव | उन सभी के बीच जिहें थियेटर एक मंच पर ले आता है  - अनुवादक, शिक्षाविद, वेषभूषा अभिकल्पक (कॉस्टयूम डिज़ाइनर), मंच के कलाकार, विद्वान, दर्शक | इससे अधिक व्याख्या करने की सामर्थ्य नहीं है मुझमें | रंगमंच हमें सुरक्षा देता है – आश्रय प्रदान करता है | मेरा विश्वास है कि थियेटर के मन में हमारे लिए अगाध प्रेम है..... उतना ही जितना कि हमें....
मुझे एक पुरानी परिपाटी के रंग निदेशक की याद आ गई जिनके साथ मैंने काम किया है | वो पर्दा उठने से ठीक पहले पूरी दृढ़ता और विश्वास के साथ भरपूर आवाज़ में चिल्लाते थे ‘रंगमंच को रास्ता दीजिये’ – आज की शाम यही मेरे अंतिम शब्द होंगे |
धन्यवाद
ईज़ाबेल हपर्ट

* बाब विल्सन नाम के कई फ़ुटबाल, बास्केट बाल, रगबी, बेसबाल, क्रिकेट और बर्फ़ पर खेली जाने वाली हाकी के खिलाड़ी हुए हैं | यहाँ इज़ाबेल की मुराद किस बॉब विल्सन से है यह स्पष्ट नहीं होता | मेरा अनुमान है किसी फ़ुटबॉल खिलाड़ी की बात कर रही हैं | संभवतः चेस्टरफील्ड, इंग्लैंड में जन्मे और स्कॉटलैंड के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गोलकीपर रॉबर्ट बॉब प्राइमरोज़ विल्सन का ज़िक्र है जो बॉब विल्सन के नाम से प्रसिद्ध हैं | रिटायर होने के बाद उन्होने फ़ुटबॉल कोच और कमेंटेटर का काम किया |  प्रोस्टेट कैंसर जैसे रोग से ग्रस्त होते हुए भी उन्होने कहा   “मुझे पूरा विश्वास है कि इलाज सफल होगा और मैं जल्दी ही काम पर वापस आ जाऊंगा |” ये कथन मृत्यु से लड़कर पुनः जीवन की ओर अग्रसर होने की जिजीविषा है जो रंगमंच में लगातार परिलक्षित होती रहती है | इस संदर्भ में हम पौराणिक पक्षी फीनिक्स को भी संदर्भित कर सकते है जो स्वयं अपनी चिता बनाकर उसमें खाक हो जाती है | उसी राख़ से एक अंडा सृजित होकर नए फ़ीनिक्स को जन्म देता है |
** फ़ेद्रा (यूरिपडीज़ और लूशियस एनियस सेनेका के नाटक का मुख्य स्त्री पात्र),
अरामिंते (पियरे दे मारीबू के नाटक ले फ़ोसे कन्फ़ीडेंसेस में एक अमीर विधवा का चरित्र), ऑरलैंडो (वर्जीनिया वुल्फ़ के उपन्यास ‘ऑरलैंडो : अ बायोग्राफ़ी’ का चरित्र, एक कवि जो लिंग परिवर्तन कर कई सौ साल जीता है),
हेड्डा गेब्लर (इब्सन के इसी नाम के नाटक का मुख्य स्त्री पात्र),
मेदिया (यूरिपडीज़ के नाटक मेदिया का केन्द्रीय चरित्र),
मेफ़्तोई (पियरे दे शोर्डिलोज़ दे लुक्लोज़ के नाटक द डैंजरस लाइज़न का एक स्त्री पात्र),
ब्लांश डुबॉय (टेनेसी विलियम के नाटक  अ स्ट्रीटकार नेम्ड डिज़ायर का एक स्त्री चरित्र / इस नाटक पर आधारित इसी नाम से बनी फिल्म में यह चरित्र विवियन ले ने निभाया था)

मूल फ़्रांसीसी से अंग्रेज़ी अनुवाद – मेलोरी डोमेसिन और टॉम जॉन्सन |

अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद – अखिलेश दीक्षित
   
भारत में इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिअशन (इप्टा) द्वारा प्रसारित   

1 comment:

  1. मेरे लिए रंगमंच का मतलब संवाद बनाए रखने से है – किसी तरह की घृणा या वैमनस्य के बिना..... लोगों के बीच दोस्ती के साथ | समुदाय, दर्शक व अभिनेता की दोस्ती.... कभी न खत्म होने वाला जुड़ाव | उन सभी के बीच जिहें थियेटर एक मंच पर ले आता है - अनुवादक, शिक्षाविद, वेषभूषा अभिकल्पक (कॉस्टयूम डिज़ाइनर), मंच के कलाकार, विद्वान, दर्शक | इससे अधिक व्याख्या करने की सामर्थ्य नहीं है मुझमें | रंगमंच हमें सुरक्षा देता है – आश्रय प्रदान करता है | मेरा विश्वास है कि थियेटर के मन में हमारे लिए अगाध प्रेम है..... उतना ही जितना कि हमें....

    बेहतरीन, हर रंगकर्मी के लिये ज़रूरी बात...

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