Thursday, March 2, 2017

रणदीप हुड्डा के नाम बादल सरोज का खुला पत्र

 यार रणदीप, आपने तो बहुतई निराश किया। 2014 में आपकी एक बेहद शानदार फ़िल्म देखी थी -हाईवे ।
अब हम थोड़े से बड़े हो चले हैं । इसलिए जानते है कि फ़िल्म हीरो या हीरोइन नहीं बनाते । कोई कहानी लिखता है, कोई संवाद, कोई कैमरा पकड़ता है, कोई ड्रेस तो कोई सैट बनाता है, कोई निर्देशित करता है । मगर कुछ आदतें बचपन से घर कर जाती हैं : हम में आज भी हैं । फ़िल्म की भूमिका के हिसाब से उसे निबाहने वाले से लगाव जुड़ाव हो जाता है उस फ़िल्म में आपकी अदाकारी गजबई थी यार । हम आपके मुरीद हो गए थे। अगर हमे नम्बर देने का हक़ होता तो 10 में से 11 देते । हालांकि, इसमें बुरा मानने की बात नहीं है, हम तब भी इस फ़िल्म को आलिया भट्ट की फ़िल्म मानते थे, आज भी मानते हैं । परसों जॉली एलएलबी 2 देखते वक़्त उस संवाद पर भी हमने -पूरे हॉल में अकेले ही- तालियां बजाई थीं, जिसमे किसी ने बोला था कि द बिगेस्ट कॉन्ट्रिब्यूशन ऑफ़ महेश भट्ट टू द बॉलीवुड इज आलिया भट्ट!! खैर इसे छोडो । होता है यार, लडकियां बहुत मेहनत करती हैं । सिक्स सेवेन ऐट पैक एब्स तो कोई भी बना सकता है । एक्टिंग अलगई बात है – परिश्रम के साथ साथ कौशल भी मांगती है। तो मुद्दे की बात ये है पार्टनर, कि उस फ़िल्म के आख़िरी 10 मिनट ने हमे स्तब्ध कर दिया था. हमारे चम्बल में इसके लिए ज्यादा सही शब्द है- धक्क रह गए थे हम । फ़िल्म खत्म होने के बाद कुर्सी से उठ नहीं पाये थे। न रो पाये थे, न बोल पा रहे थे। निर्निमेष ताकते से बैठे रह गए थे। हमारे साथ के व्यक्तियों ने हमे झकझोर कर उठाया था। उस रात हम सो भी नहीं पाये थे। आपको याद है वह क्लाइमेक्स ? वीरा (आलिया भट्ट) जो एक सुपर रिच परिवार , जो त्रिपाठी भी है, की लाड़ली बेटी बताती है कि किस तरह बचपन से अपने ही घर में अपने ही अंकल की यौनयातनाओं का दंश झेलती रही थी वह। आपको याद है जब वह यह बात बोलते हुए अपने पिता से कहती है कि ” आप हमेशा मुझे बाहर के लोगों से बचकर रहने की कहते रहे और मेरे साथ अपने अंदर के लोग ही यह सब करते रहे।” इस लिहाज से हमारे लिए हमारे समय की एक बहुत बड़ी, चुस्त और परफेक्ट पैकेजिंग वाली फ़िल्म बन गयी थी हाईवे। हमारी राय थी कि यह फ़िल्म बाप-भाई-अंकलों के लिए अनिवार्य की जानी चाहिए और उनसे कहा जाना चाहिए कि वे अपने परिवार की बच्चियों के साथ उसे देखने जाएँ।

रणदीप, आपको याद है महावीर, वो करैक्टर जिसे फ़िल्म में आपने निबाहा था। कितना एकाकी, कितना सोगवार, कितना आत्मपीड़क और निष्ठुर हो गया था वह। क्यों ? इवोल्व होते होते खुद फ़िल्म ही इसे बताती है। इसलिए कि उसने अपने बचपन में अपने बाप और जमींदार के हाथों अपनी माँ का यौनउत्पीड़न देखा था। कितना बदल दिया था महावीर को उसके बचपन ने। याद है न! यौन अपराध के आगे असहायता इसी तरह तोड़ देती हैं अंदर का बहुत सारा।

लेकिन वही महावीर कितना संवेदनशील और प्यारा बर्ताब करता है वीरा के साथ। सारे अवसर, यहां तक कि वीरा के तीव्र प्रेम और लगाव और आमन्त्रण जैसे भावों के बावजूद उसकी देह को हाथ नहीं लगाता।
परसों जब आप गुरमेहर कौर के बारे में वीरेंद्र सहवाग की निहायत वाहियात बात पर मजे (…..Viru cracked a joke and I admit I laughed. Damn! He is so witty and this is one of the other million things he’s said that has made me crack up. That was it!! … ये आपके ही शब्द हैं ) ले रहे थे । तब हमारी निगाहों में वीरा त्रिपाठी थीं, पति की रजामंदी से जमींदार द्वारा खींची जा रही महावीर की माँ थीं। हम हतप्रभ थे कि यार, लोग कैसे जी लेते हैं इतनी दोहरी ज़िंदगी।

हमें गुरमेहर की फ़िक्र नहीं है। वह समझदार भी है, बहादुर भी। मगर क्या आपको पता है कि जो गुरमेहर के साथ बलात्कार की धमकी दे रहे हैं, उनके इस माइंडसैट के चलते खुद उनके घरों की बच्चियां, उन्ही की बेटियां, बहने यहां तक कि माँयें भी घोर असुरक्षित हैं। किसी बाहरी से नहीं, खुद अपने घर के ऐसे ट्विटर और सोशल मीडिया वीरों से। उनकी मुश्किल यह है कि वे शुरू वाली वीरा त्रिपाठी की तरह हैं। परिवार की इज्जत की खातिर सब सहने वाली। वे न गुरमेहर की तरह बहादुर हैं न समझदार।

डिअर रणदीप सर , असहमत होने पर बलात्कार की धमकी देना द मोस्ट डेंजरस क्रिमिनल शाईकी है। ऐसे लोग -जब तक कि वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाते तब तक – सभ्य समाज से एकदम अलग थलग तन्हाई में रखे जाने के काबिल होते हैं। हाईवे का महावीर जब -जाने अनजाने ऐसे लोगों के साथ खड़ा दिखता है तो मन होता है कि इम्तियाज अली और साजिद से कहें कि भैय्ये डूब गयी तुम्हारी फिलिम, अब दोबारा से बनाइये। खैर हीरो को उसके जीए करैक्टर के साथ गड्डमड्ड करके देखना हमारी प्रॉब्लम है। आप तो जी मजे लेओ। हाँ, याद आया। इस फ़िल्म में जब आपके अभिनय की तारीफें हुयी थीं तब आपकी एक टिप्पणी अच्छी लगी थी। आपने कहा था कि ” मैं तो तब अच्छा मानूँगा जब नसीर साब इसे ठीक ठाक किया अभिनय मान लेंगे। ” पता नहीं आपकी मुराद पूरी हुयी कि नहीं, मगर नसीरुद्दीन शाह साब ने सहवाग और आपके इस एपिसोड पर जरूर कुछ बोला है। उम्मीद है पढ़ा होगा। न पढ़ा हो तो पढ़ लो यार, पढ़े लिखे आदमी हो, वीरेंद्र सहवाग थोड़े ही हो!
(To Randeep Hudda With LOVE!!)

6 comments:

  1. वाह बढ़िया लिखा है । आपका लेख पहली बार पढ़ा। बधाई आपको ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया - अपना पैगाम मोहब्बत है, जहां तक पहुंचे !!

      Delete
  2. सही जवाब है ऐसी मानसिकता वाले लोगों के लिए। बहुत बढ़िया लेख है आपका। 👍👍

    ReplyDelete
  3. शुक्रिया - अपना पैगाम मोहब्बत है, जहां तक पहुंचे !!

    ReplyDelete
  4. रणदीप हुड्डा तक यह पत्र ज़रूर पहुंचना चाहिये
    वैसे अपने आसपास के कुछ रणदीप हुड्डाओं ने तो इस पत्र को पढ़ ही लिया होगा कुछ असर हो ऐसी आस लगायें हैं.

    गजबई पत्र लिखा है साथी, सलाम!!

    ReplyDelete