Friday, January 27, 2017

आजमगढ़ में आरंगम

-संगम पाण्डेय 
जमगढ़ के उजाड़ और खस्ताहाल शारदा टाकीज को अभिषेक पंडित और ममता पंडित ने रंगमंच के लोकप्रिय ठीहे में बदल दिया है। सिनेमा मालिकों से पाँच साल के लिए उपहारस्वरूप मिली इस जगह पर उन्होंने अपनी एक पूरी दुनिया आबाद कर ली है। तीन दिन के आरंगम यानी आजमगढ़ रंग महोत्सव में कई तरह की रोशनियों, मुखौटों, रंग-बिरंगी कनातों से एक बढ़िया नजारा था। अभिषेक ने अपने बीस साल के रंगमंच और बारह साल के आरंगम के दौरान शहर में अच्छे-खासे दर्शक तैयार कर लिए हैं। हर रोज ही तीस-चालीस दर्शकों को जगह न मिलने से वापस लौटना पड़ा; और ये मुफ्तखोर दर्शक नहीं थे, उनके फुटकर सहयोग से जमा हुई धनराशि कई हजार में जा पहुँची थी। 

इस बार अभिषेक ने खुद के ही निर्देशित तीन नाटकों का मंचन किया-- ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘बटोही’ और ‘अंधेर नगरी’। ऐसे नाटकों को नए अभिनेताओं के साथ करने में एक फाँक हमेशा ही होती है, पर वही उसका कलेवर होता है। अच्छी बात यह है कि चूँकि अभिषेक ने जिंदगी को काफी जूझते हुए जिया है, लिहाजा अपने मजबूत यथार्थबोध के कारण उन्हें खुद भी ऐसी फाँकों का अंदाजा है। ये तीनों ही प्रस्तुतियाँ ये साबित करती हैं कि उनमें नाट्य निर्देशन की अच्छी सूझ है। दृश्यों में डिटेलिंग को लेकर वे काफी सचेत हैं, और अंधेर नगरी में टके सेर बिकती चीजों का उन्होंने अच्छा समकालीन बाजार बनाया है। उसके प्रहसन को वे एक दिलचस्प ऊँचाई पर ले गए हैं। 


उनकी संस्था सूत्रधार हर साल एक सूत्रधार-सम्मान देती है, जो इस बार वामन केन्द्रे को दिया गया। वामन केन्द्रे ने इस मौके पर कहा कि वे खुद भी महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव के रहने वाले हैं और जानते हैं कि छोटी जगहों पर रंगमंच करना कितना मुश्किल है। उन्होंने सम्मान स्वरूप दिए गए ग्यारह हजार रुपए में इतनी ही रकम अपनी ओर से मिलाकर सूत्रधार संस्था को वापिस भेंट की। आयोजन में जाने-माने नाट्य समीक्षक दीवान सिंह बजेली, सत्यदेव त्रिपाठी, पटना से आए दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक त्रिपुरारि शरण, जनसत्ता के संपादक मुकेश भारद्वाज, मध्यप्रदेश ड्रामा स्कूल के निदेशक संजय उपाध्याय, उज्जैन की कालिदास अकादेमी के निदेशक आनंद सिन्हा, लखनऊ की भारतेंदु नाट्य अकादेमी के निदेशक आरसी गुप्ता और अजित राय आदि ने भी तीन दिनों के दौरान शिरकत की।

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