Friday, October 7, 2016

श्रद्धांजलि : रंग गुरु एच कन्हाईलाल

ई दिल्‍ली: भारतीय रंगमंच के अप्रतिम निर्देशक ओझा हेस्नाम कन्हाईलाल का गुरुवार दोपहर निधन हो गया. वे फेफड़े के कैंसर से पीड़ित थे. इसी वर्ष उन्हें पद्म भूषण सम्मान दिया गया था. उन्हें पद्म श्री (2003) और संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (1985) भी मिल चुका है. वे संगीत नाटक अकादमी के फेलो भी थे.

सावित्री हेस्नाम उनकी पत्नी हैं जो विख्यात रंगमंच अभिनेत्री हैं और उनके पुत्र हेस्नाम तोम्बा उभरते हुए निर्देशक हैं. मणिपुर के कन्हाईलाल ने भारतीय रंगमंच की विविधता को समृद्ध किया. उनकी रंगभाषा में पुर्वोत्तर का शरीर, मानस और वहां की लोक परंपराओं के साथ वहां की जनता का संघर्ष और प्रतिरोध भी शामिल है.

उनकी रंगभाषा में पूर्वोत्तर की ध्वनियों का खेल भी था जो उसे गहराई देता था. उनकी प्रस्तुतियां देश विदेश में मंचित हुईं और सराही गईं. कन्हाईलाल ने मणिपुर में कलाक्षेत्र रंगमंडल की स्थापना की थी और इसके साथ वे काम करते रहे. उन्होंने देश विदेश की विभिन्न संस्थाओं में अभिनेतों को प्रशिक्षण भी दिया. ‘मेमायर्स आफ अफ्रीका’, ‘कर्ण’, ‘पेबेट’, ‘डाकघर’, ‘अचिन गायनेर गाथा’, ‘द्रोपदी’ इत्यादि उनकी चर्चित नाट्य प्रस्तुतियां हैं.

महाश्वेता देवी की कहानी पर आधीरित उनकी प्रस्तुति 'द्रौपदी' अत्यंत प्रशंसित और विवादित रही. इसमें उनकी पत्नी सावित्री का बेमिसाल अभिनय था. प्रस्तुति के बीच एक ऐसा क्षण आता है जब वे मंच पर अनावृत होती हैं. कहा जाता है कि मनोरमा देवी के रेप और अपहरण के खिलाफ महिलाओं ने नंगे होकर आसाम राइफल्स के विरोध में जो प्रदर्शन किया था उसकी प्रेरणा इस प्रस्तुति से ही मिली थी. उनका निधन से भारतीय रंगमंच का एक युगांत हो गया है.

एनडीटीवी इंडिया से साभार

श्रद्धांजलि : रंग गुरु एच कन्हाईलाल

जीवन और रंगमंच में मेरे लिए यह आदर्श जोड़ी रही है - एच कन्हाईलाल और सावित्री माँ। चाहे वो रंगमंच का मंच हो या जीवन की तपती ज़मीन - ये दोनों हमेशा ही एक दूसरे के कंधे से कन्धा मिलाकर मजबूती के साथ खड़े दिखे। मैंने जहाँ भी इन्हें देखा (चाहे वो क्लास हो या जीवन)- साथ में ही देखा; और सदा मनीषी मुद्रा में ही देखा।

दोनों एक दूसरे के पूरक - हर ख़ुशी, ग़म, कला, जीवन संघर्ष, स्नेह, फटकार सब एक साथ। एक थियरी हैं तो दूसरा प्रैक्टिकल, एक जिस्म तो दूसरा दिमाग, एक दिल तो दूसरा धड़कन। ऐसी आदर्श जोड़ी विरले ही होती हैं। ऐसे ही स्नेह के लिए तो जीता है - एक इंसान। कन्हाईलाल और सावित्री माँ ने भारत के न जाने कितने कलाकारों को प्रेरित किया, उन कइयों में से एक मैं भी हूँ। उनकी सादगी और कला का कुछ अंश हम जैसों के भीतर सदा साँस लेती रहेंगीं।

अपने कर्मों के आधार पर एक पीढ़ी दूसरे पीढ़ी के भीतर जीवित रहती हैं। कन्हाईलाल जी का देहावसान की पीड़ा विशाल है लेकिन उनकी विरासत की ज़िम्मेवारी भी तो है, इसे सहेजना ज़रूरी है।

पुंज प्रकाश

No comments:

Post a Comment