Friday, April 29, 2016

AJAB- GAJAB PAATHSHALA by IPTA, Mumbai


IPTA Baalmanch presents new hindi play for children AJAB- GAJAB PAATHSHALA on Saturday 30th april and Sunday 1st may at Prithvi Theatre at 12 noon.Adapted and Directed by Nivedita Baunthiyal. 



Music by Vikas Rawat, Lyrics by Nishu Sharma, Lights by Ronak kitta, Set design by Rohit Chowdhary, Choreography by Hemant.

बेगूसराय में जनोत्सव 2016

ननायक कॉ. चन्द्रशेखर सिंह जन्मशती समारोह के तहत बीहट, बेगूसराय में जनोत्सव 2016 का आयोजन किया जा रहा है.

जनोत्सव 2016 के तहत 26, 27 एवं 28 अप्रैल, 2016 को रंगभूमि नाट्य उत्सव का आयोजन किया जा रहा है. 26 अप्रैल को रंगभूमि नाट्य उत्सव की शुरुआत चन्द्रशेखर भारद्वाज रंगभूमि (बीहट मध्य विद्यालय) में शाम 4 बजे होगी. 27 एवं 28 अप्रैल को बीहट नगर परिषद् के अंतर्गत विभिन्न स्थानों पर सांस्कृतिक चौपाल के तहत जनसंवाद, गीत-संगीत एवं रंगभूमि नाटकों की प्रस्तुति की जायेगी. रंगभूमि नाट्य उत्सव का उद्घाटन पी. एन. सिंह (निदेशक, दूरदर्शन बिहार) करेंगे. 

इस अवसर पर कुणाल (वरिष्ठ रंगकर्मी), शैलेन्द्र (झारखण्ड इप्टा) एवं निवेदिता (वरिष्ठ पत्रकार) बतौर विशिष्ट अतिथि शिरकत करेंगी. रंगभूमि नाट्य उत्सव की शुरुआत से पूर्व दोपहर 3 बजे से जनसंस्कृति मार्च एवं संकल्प का आयोजन किया गया है. 

जनोत्सव 2016 के तहत 30 अप्रैल, 01 एवं 02 मई, 2016 को जन संस्कृति उत्सव का आयोजन कविवर कन्हैया-जनकवि राजनंदन सांस्कृतिक मंच (बीहट मध्य विद्यालय) पर रोज शाम 6 बजे से किया जायेगा. इसके अंतर्गत गीत-संगीत, नृत्य एवं नाटकों की प्रस्तुति की जायेगी. 30 अप्रैल को जन संस्कृति उत्सव का उद्घाटन इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश करेंगे. उद्घाटन समारोह में संजय मिश्रा (सिने अभिनेता), विनीत (सिने व रंग अभिनेता) एवं जावेद अख्तर खां बतौर विशिष्ट अतिथि शिरकत करेंगे. 02 मई को समापन समारोह में मुख्य अतिथि अब्दुल बारी सिद्दिकी (संरक्षक मंडल सदस्य, बिहार इप्टा-सह-मंत्री, वित्त विभाग, बिहार सरकार) एवं विशिष्ट अतिथि अंजन श्रीवास्तव (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, इप्टा) होंगे.


01 एवं 02 मई को सुबह 10.30 बजे से ए. बी. बर्धन विचार कक्ष (बीहट मध्य विद्यालय) में जनसंवाद का आयोजन किया गया है. 01 मई को जनसंवाद-1 के तहत रामधारी सिंह 'दिनकर' की रचना "संस्कृति के चार अध्याय" पर चर्चा की जायेगी. चर्चा की शुरुआत प्रो. तरुण कुमार (हिन्दी विभाग, पटना विश्वविद्यालय) और अध्यक्षता आलोक धन्वा करेंगे. 02 मई को जनसंवाद-2 के तहत "हम कैसा देश बनाना चाहते हैं?" विषय पर चर्चा की जायेगी, मुख्य वक्ता नासिरूद्दीन (वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ) होंगे और अध्यक्षता प्रो. विनय कुमार कंठ (पटना विश्वविद्यालय) करेंगे. 

Monday, April 25, 2016

“ ताजमहल का टेण्डर “ से शुरू होगी इप्टा अशोकनगर की बाल एवं किशोर नाट्य कार्यशाला


भारतीय जन नाट्य संघ ( इप्टा ) की अशोकनगर इकाई बच्चों में सांस्कृतिक अभिरुचिओं के परिष्कार तथा रंगकर्म के लिए  पच्चीस दिवसीय  बाल एवं किशोर नाट्य कार्यशाला का आयोजन 1 से 25 मई , 2016 के बीच करने जा रही है | इस तरह की नाट्य  कार्यशालायेँ  जनसहयोग से निःशुल्क शहर के बच्चों के लिए इप्टा आयोजित करती रही  हैं | नाट्य कार्यशाला 12 से 18 आयु वर्ग के बच्चों के लिए ही होगी | हर साल नेहरू पार्क में होने वाली इस कार्यशाला का स्थान जगह की कमी के कारण इस बार बदला गया है | यह नाट्य कार्यशाला अब संस्कृति गार्डन , मंडी रोड  में होगी जहां पच्चीस दिन लगातार बच्चे नाटक , संगीत , नृत्य , गायन , चित्रकला ,मंचीय उपकरण निर्माण आदि रंगकर्म की अनेक  विधाओं का नियमित अभ्यास करेंगे |

 नाट्यकार्यशाला का उद्घाटन दिनांक 1 मई को जाने-माने कथाकार कैलाश वानखेड़े करेंगे तथा कवि , आलोचक तथा समावर्तन पत्रिका के संपादक डॉ निरंजन श्रोत्रीय विशिष्ट अतिथि होंगे | इसी दिन पूर्ववर्ती नाट्य कार्यशालाओं से जुड़े  बच्चों द्वारा हिन्दी के चर्चित नाटक – “ ताजमहल का टेण्डर “ का मंचन किया जाएगा | श्री अजय शुक्ला के इस नाटक का निर्देशन युवतर रंगकर्मी ऋषभ श्रीवास्तव कर रहे हैं और बीस से ज़ियादा पात्रों के इस पूर्णकालिक नाटक का संगीत भी इप्टा से जुड़े युवा रंगकर्मी सिद्दार्थ शर्मा और आदित्य रूसिया ने तैयार किया है | इसी दिन प्रख्यात चित्रकार पंकज दीक्षित के कविता पोस्टर तथा  बच्चों के नाटको के चित्रों और रंग गतिविधियो पर एकाग्र एक वृहद प्रदर्शनी भी कार्यक्रम स्थल पर लगाई जाएगी |

 इस कार्यशाला में बाहर से भी कुछ रंगकर्मियों को आमंत्रित किया गया है | नाटक के लिए धीरज सोनी ( खैरागढ़ ) तथा प्रवीण नामदेव ( जबलपुर ) पूरे पच्चीस दिन बच्चों के साथ रहेंगे | नृत्य प्रशिक्षण के लिए जबलपुर से इन्द्र पाण्डेय को आमंत्रित किया गया है | कार्यशाला के दरम्यान रंगकर्म की अलग-अलग विधाओं के लिए बच्चों से संवाद स्थापित करने और व्याख्यान हेतु देश और प्रदेश के कुछ विद्वानों को  भी आमंत्रित किया जा रहा है |

अशोकनगर में बच्चों के लिए नाट्यकार्यशाला की शुरूआत 1998 में इप्टा द्वारा की गई थी | तब से लेकर अब तक 11 नाट्य कार्यशालाएं अशोकनागर में हो चुकीं हैं और बच्चों के थियेटर पर यहाँ हो रहे काम को  राष्ट्रीय स्तर पर रेखांकित किया गया है | नाट्य कार्यशाला के लिए बच्चों से आवेदन पत्र भरवाये जा रहे हैं और इन आवेदनों के आधार पर इप्टा की एक चयन समिति बच्चों का चयन करेगी |  

- सीमा राजोरिया 
अध्यक्ष , इप्टा , अशोकनागर

Friday, April 15, 2016

प्रतिबद्धता, जनपक्षधरता और सर्वहारा के संघर्ष की रचनाएँ

-टीकाराम त्रिपाठी

3 अप्रेल 2016 को प्रगतिशील लेखक संघ, सागर ने वरिष्ठ कहानीकार-उपन्यासकार श्री महेन्द्र फुसकेले के काव्य संग्रह ‘‘स्त्री तेरे हजार नाम ठहरे’’ के लोकार्पण का आयोजन किया। इस समारोह के मुख्य अतिथि थे प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव विनीत तिवारी और समारोह की अध्यक्षता की प्रलेसं अध्यक्ष मंडल के सदस्य महेन्द्र सिंह ने। 

कार्यक्रम का प्रारंभ देश के प्रख्यात लोकगायक श्री शिवरतन यादव के कबीर के भजन और लोककवि ईसुरी की कविताओं के गायन से हुआ। काव्य संग्रह के लोकार्पण के बाद अपने सम्बोधन में प्रलेसं मध्य प्रदेश के महासचिव विनीत ने महेन्द्र फुसकेले की कविताओं पर बात करते हुए कहा कि वर्तमान में जिस तरह का हमला आजादी की अभिव्यक्ति के ऊपर है वो लड़ाई लेखक और कलाकार सदियों से लड़ते आए हैं। ये लड़ाई जल्द ठहरने वाली नहीं है। सामन्तवाद, पूंजीवाद और पितृसत्ता सदियों से हमारे मानस के अंदर, हमारी मानसिकता के अंदर पैठ कर चुकी है उससे उबरने के लिए हमें रोज भीतर और बाहर लड़ते रहना होगा। आज की स्थिति में अनेक शब्दों को नया अर्थ दिया जा रहा है। राष्ट्रवाद के नाम पर हर एक की आवाज को कुचला जा रहा है और सबके लिए शोषण से आज़ादी चाहने वालों को देशद्रोही साबित करने की साजि़शें की जा रही हैं। ऐसे में फुसकेलेजी की कविताएं, भले वो गढ़न में कच्ची हों पर एक मनुष्य और रचनाकार के नाते राष्ट्रवाद के हमारे बुनियादी संकल्प को पुख्ता करती हैं कि हमें वंचितों, शोषितों के हक में अपनी कलम चलानी है। उनकी कविताओं से नेरुदा की याद आती है कि ‘जब सड़कों पर खून बह रहा हो तो कविता सिर्फ फूल-पत्तियों की बात नहीं करती रह सकती।’

उन्होंने कहा कि कबीर जब लिख रहे थे तो भाषाविद उनका मूल्यांकन नहीं कर रहे थे क्योकि जब जन की बात होती है तो अनेक शास्त्रीय रूप टूटते हैं। लेकिन जनता ने उन्हें पहले अपना प्रवक्त्ता स्वीकार किया, बाद में वे साहित्यकारों द्वारा स्वीकृत हुए। कथ्य और रूप की लंबी लड़ाई है लेकिन अंततः जनपक्षधरता पैमाना बनती है कि आप किस ओर खड़े हैं।

राष्ट्रवाद के सवाल पर विनीत तिवारी ने कहा कि जो लोग आज राष्ट्रवाद की बात कर रहे हैं उनके लिए अडानी, अंबानी राष्ट्र हैं, या छत्तीसगढ़, उड़ीसा, जेएनयू, हैदराबाद यूनिवर्सिटी और हर तरफ़ पूंजीवाद के षिकंजे में छटपटा रहे लोग राष्ट्र हैं। उन्होंने आह्वान किया कि ये वक़्त है जब लेखकों, कलाकारों को झूठे राष्ट्रवाद के खि़लाफ़ सही राष्ट्रवाद की परिभाषा लोगों के सामने लानी चाहिए। ये कविताएं उसी प्रयास का एक हिस्सा हैं चाहे ये कविताएं चाहे कितनी भी नयी हों लेकिन ये उसी प्रगतिषील कोशिश का एक हिस्सा हैं। इस उम्र में भी उन्होंने नई जमीन तोड़ने की कोशिश की है, ये एक वामपंथी विचार से ओत-प्रोत व्यक्ति के अंदर ही संभव है। विनीत तिवारी ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर को याद करते हुए कहा कि रवीन्द्रनाथजी ने भी अस्सी वर्ष की आयु में चित्र बनाना शुरू किए और वे बड़े चित्रकार के रूप में जाने जाते हैं। रचनाकार का कभी अंत नहीं होता। यहाँ रास्ता ही मंजि़ल है। फुसकेलेजी मूलतः गद्य रचनाकार हैं। उन्होंने इस उम्र में कविताएं लिखना प्रारंभ किया यह निष्चित ही अनुभव के सार की बात है। अभी तो उन्होंने अट्ठारह कविताएं लिखकर संग्रह प्रकाशित किया है हम आश्वस्त हैं कि वे आने वाले समय में एक सौ अस्सी कविताएं लिखेंगे। उन्होंने फुसकेलेजी के प्रतिबद्ध व रचनात्मक जीवन में उनकी जीवनसाथी के सहयोग को भी नमन किया।

श्री कैलाश तिवारी विकल ने काव्य संग्रह की समीक्षा करते हुए कविता की आवश्यकता और कविता की विषयवस्तु पर अपने विचार रखे। इस काव्य संग्रह के रचनाकार महेन्द्र फुसकेले ने कहा कि सारे रचनाकर्म का उद्देश्य और लक्ष्य यही है कि मनुष्यता बची रहे।

समारोह के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह ने काव्य संग्रह पर बात करते हुए कहा कि फुसकेलेजी ने अभी तक उपन्यास, कहानियां और समीक्षत्मक लेख लिखे हैं लेकिन अब कविताएं लिख रहे हैं ये बड़ी खुशी की बात है। वस्तुतः कविता; रस और आनंद की सृष्टि करती है। भारतीय काव्यशास्त्र की परिभाषाओं के साथ सुमित्रानन्दन पंत का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि फुसकेलेजी की कविताएं सामाजिक विसंगतियों को उजागर करती है। उन्होंने कहा कि इस काव्य संग्रह कि कविता ‘चला चली की बेरा’ कबीर की शैली की कविता को निरूपित करती है। कार्यक्रम का संचालन प्रलेसं इकाई के अध्यक्ष टीकाराम त्रिपाठी ने किया।
दिनेश साहू और दीपा भट्ट ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया और आभार व्यक्त किया टीकाराम त्रिपाठी ने। डॅा. एम. के. खरे का विशेष सहयोग रहा।

इस कार्यक्रम में जीवनलाल जैन, लक्ष्मीनारायण चैरसिया, विष्णु पाठक, निर्मलचंद जैन ‘निर्मल’, शुकदेव प्रसाद तिवारी, अशोक मिजाज, गजाधर सागर, आशीश निःषंक, मणिकांत चौबे, मधुसूदन शिलाकारी, हरिसिंह ठाकुर, आनन्द प्रकाश त्रिपाठी तथा बीना से महेश कटारे ‘सुगम’, सागर से ही उमाकान्त मिश्रा, मनीषचंद झा, अंजना चतुर्वेदी, महेश तिवारी, मनोज श्रीवास्तव, पुरुषोत्तमलाल तिवारी, आशा जैन, एम. डी. त्रिपाठी, गोविन्ददास नगरिया, रमाकांत मिश्र, अशोक पाण्डेय, अशोक फुसकेले, अनिल जैन, निरंजना जैन, विश्वनाथ चौबे, अलीम अहमद खान, यू. बी. एस. गौर, राजेन्द्र पाण्डेय, देपेन्द्र सिंघई, पुष्पदंत हितकर, नलिन जैन, आशीष ज्योतिषी, व्ही. एन. सरवटे, रश्मि ऋतु जैन, और श्रीमती चन्दा फुसकेले, पेट्रिस फुसकेले, नम्रता फुसकेले, प्रिया तथा सागर के कला एवं संस्कृति से जुड़े अन्य लोग भी उपस्थित थे।
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भगतसिंह की याद में राजद्रोह के कानून से निजात पाने का आंदोलन छेड़ें



- महेंद्र सिंह

प्रगतिशील लेखक संघ, भोपाल इकाई द्वारा आयोजित ‘‘स्मरण भगत सिंह’’ कार्यक्रम 2 अप्रैल, 2016 को हिंदी साहित्य सम्मेलन के मायाराम सुरजन भवन में आयोजित किया जिसमें मुख्य वक्ता थे सर्वश्री विनीत तिवारी, रामप्रकाश त्रिपाठी व शैलेन्द्र शैली। अध्यक्षता की वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशन्कर हरदेनिया ने। 

प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव कॅामरेड विनीत तिवारी ने अपनी बात ‘‘राजद्रोह’’ पर केन्द्रित करते हुए कहा कि ये कानून अंग्रेजों के शासनकाल में बनाया गया। अधिकांश समझदार देश इससे निजात पा चुके हैं। इस कानून की मूल अवधारणा में इंग्लैंड के राजा द्वारा भारत और भारत जैसे अनेक गुलाम देशों पर आधिपत्य ईश्वरीय मानकर स्वीकार किया जाता था और राजद्रोह का आशय राजा की सत्ता के विरूद्ध किसी भी तरह के काम को गिना जाता था। जाहिर है कि जब राजे-रजवाड़े खतम हो गए और उपनिवेशवाद का समापन हो गया तो इस कानून को भी तिलांजली दे देनी चाहिए थी।

उन्होंने कश्मीर के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि हम पूरी तरह से कश्मीर के भारत में होने के पक्ष में हैं लेकिन कश्मीर की जनता को भी यह अहसास होना चाहिए कि वो भारत का अभिन्न अंग है। अगर कुछ लोग जनता को भारत के खिलाफ भड़काते हैं तो भारतीय राज्य को भी वहाँ की जनता का विश्वास जीतने की कोशिश करनी चाहिए। 

जेएनयू के मामले में काॅ. विनीत ने कहा कि भाजपा ने एक सुनियोजित रणनीति के तहत समूचे वामपंथ को आम जनता की निगाह में खलनायक बनाने की कोशिश की लेकिन उस प्रक्रिया में वे खुद ही हाशिए पर अकेले सिमट गए। उन्होंने अनुपम खेर जैसे कलाकारों की बात करते हुए कहा कि वे भी भाजपा की साजिश का  हिस्सा बनकर आधा सच और आधा झूठ परोसने के खेल में शरीक हुए। अंत में उन्होने कहा कि हम वामपंथ को इस देश में सहानुभूति पर नहीं चाह रहे हैं बल्कि वामपंथ दलित, शोषित, उत्पीडि़त जनता का आखिरी सम्बल है। चुनाव की जीत-हार से वामपंथ का आकलन नहीं हो सकता।

भगत सिंह को याद करते हुए कॅा. विनीत ने कहा कि भगतसिंह ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता मजदूर आंदोलन और समाजवादी आंदोलन के साथ जुड़कर हासिल की थी। आज भी सभी वामपंथी ताकतों के सामने ये चुनौती है कि हम अपने आप को मेहनतकश  तबके के साथ जोड़ें और अपने सिद्धांतों को रोजमर्रा की व्यवहारिक राजनीति के साथ जोड़कर माक्र्सवाद के अनूरूप अपना रास्ता तय करें। हमें उनके झूठ को उजागर करने की मुहिम को पूरी ताक़त से खड़ा करना चाहिए। 

प्रलेसं के प्रांतीय सचिव मंडल सदस्य शैलेन्द्र शैली ने भगत सिंह के ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ और ‘विद्यार्थी व राजनीति’ लेखों के उद्धरण सुनाए। काॅ. गोविंदसिंह असिवाल ने भगतसिंह पर लिखी अपनी कविता का पाठ किया।

भोपाल में हुए इस कार्यक्रम में हरदेनियाजी ने देश में हर वस्तु के भगवाकरण किए जाने पर चिंता व्यक्त्त करते हुए कहा कि ये भगवाकरण लोगों में आपसी वैमनस्य पैदा कर रहा है जिससे जरा-जरा सी बात पर दंगे भड़क रहे हैं, हत्याएं हो रही हैं। ये संघी सरकार स्वाथ्य से लेकर शिक्षा, व्यवसाय, बाजार हर क्षेत्र का बाजारीकरण कर रही है, निजीकरण कर रही है, हमें इसका विरोध करना बहुत जरूरी है।

इस बैठक में कुछ प्रस्ताव भी पारित किए गए जिसमें उडि़या के प्रसिद्ध लेखक, डॅाक्यूमेन्ट्री फिल्म निर्माता और मानव अधिकार कार्यकर्ता देवरंजन षड़ंगी को पुलिस ने बेबुनियाद आरोपों की बिना पर गिरफ्तार किया है, यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है और सरकार की फासीवादी मंशाओं को उजागर करता है। इसके लिए मांग की गई कि उन पर लगे सभी आरोपों को निरस्त कर उन्हें तत्काल रिहा किया जाना चाहिए। हरदेनियाजी ने प्रस्ताव रखा कि भोपाल में बने ओवरब्रिज का नाम ‘‘सावरकर’’ के नाम पर ना होकर भगत सिंह के नाम पर किया जाना चाहिए, जिसका सभी ने अनुमोदन किया।

जनवादी लेखक संघ के रामप्रकाष त्रिपाठी एवं नागपुर के मानवधिकार कार्यकर्ता सुरेश खैरनार ने भी इस मौके पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि फासीवाद से लड़ने के लिए सभी लोकतांत्रिक ताक़तों को फासीवाद के विरुद्ध एकजुट होना होगा। यह समय की माँग है।

कार्यक्रम का संचालन भोपाल प्रलेसं के इकाई सचिव श्री महेन्द्र सिंह ने किया और आभार ज्ञापित किया कवि अरविंद मिश्र ने। साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि राजेष जोशी, ओम भारती, अनिल करमेले, अमिताभ मिश्र, नवल शुक्ल, देवीलाल पाटीदार, वसंत सकरगाये, संध्या कुलकर्णी, शहनाज़ इमरानी, दीपक विद्रोही, अल्तमाश जलाल, जावेद, उपासना तथा अन्य अनेक लेखक, पत्रकार, कलाकर्मी एवं संस्कृतिकर्मी भी मौजूद थे।