Thursday, July 24, 2014

CIVIL CODE IS AN INTEGRAL PART OF CULTURE:

RANBIR SINH.


Secular does not mean unity or oneness. It smells of otherness. It means that I recognise your religion or mazhab, but I remain aloof. Thus secular is a wrong word and social media and many others are mischievously, ignorantly or knowingly under some hidden agenda are dangerously using it to pollute the minds of the people. It will be much beneficial to our country and society at large that we stop using the words, ”Secular-Secularism.”The other day I happened to listen the debate of Headlines Today, and the anchor was constantly and most emphatically using Secular, meaning thereby oneness. He even said that India is a
secular country and we must have a secular civil code.


Civil Code is an integral part of culture. Culture means, ”the complex totality which includes, knowledge, belief, art, law, customs, and all other abilities and habits which man acquires as a member of a society.”Society of any given nation is a conglomeration of different people possessing their knowledge, beliefs, customs, art, law, and their own way of life. Yet they intermingle in such a way that they become one and respect, honour their nationality. India from the very ancient days till today is governed by Ganga-Jamani culture. Which means that, the culture of all different communities ,i.e. their religion, belief, knowledge, law, language, customs, their complete way of life, are fully respected and allowed to be practiced without any kind of interference.

The culture of all different communities intermingle in the same way as Ganga-Jamna intermingle and become one. Civil Code must protect and safeguard the way of life of the people, the society at large and the Nation. From the ancient times India has been governed by the laws of Ganga-Jamani or the Composite culture. Even our ancient scriptures Vedas, Puranas talk about this. We must take lesson from History which clearly informs us that those who wanted to impose their own culture got extinct very soon and were not heard any more. Kautilaya says,”The happiness of the king lies in the happiness of the people. The King must look after the welfare of the people, not his own. He should look after the interest, development and safety of the people, not selfish interest of his own.” Happiness of any society depends largely in oneness, respect of each other’s religion, close participation in the daily life, understanding of one’s culture, art ,literature and above all the way Giving example of other countries only show our weakness. 

We have to look within us not outside. Absolute majority gives power, and absolute power corrupts. The government has to safe guard itself from the scycophants in different shapes and colours, the religious fanatics, they should be told in clear words that any time one leg of the table becomes small, the table turns without any consideration what so ever. Discussion on these sensitive subjects is dangerous. The anchors of the social media make money on discussions and leave the danger to others to sustain. In an absolute majority sans culture and the capacity of reasoning, it gives the opportunity to the majority to go ahead. It is a saying that a mistake done in a moment, centuries suffer the agony.


Ranbir Sinh
President
Indian Peoples Theatre Association {IPTA}
MOB: 9829294707

Wednesday, July 23, 2014

जबलपुर में प्रसिद्ध अभिनेता जुगलकिशोर का व्याख्यान और प्रस्तुति

बलपुर। विवेचना संस्था द्वारा सुप्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक, साहित्यकार व भारतेन्दु नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक श्री जुगलकिशोर को जबलपुर में धर्मवीर भारती के नाटक ’अंधायुग’ के अंशों की सस्वर प्रस्तुति और आज के आधुनिक रंगकर्म के बारे में बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया है। आयोजन 26 जुलाई 2014 को संध्या 7 बजे रानी दुर्गावती संग्रहालय भंवरताल के डा हीरालाल कलावीथिका में आयोजित है। 27 जुलाई को भातखंडे महाविद्यालय के सभागार में दोपहर 2 बजे से जुगलकिशोर नवोदित रंगकर्मियों से संवाद करेंगे और 4 बजे से नगर के साहित्यप्रेमियों के बीच मुक्तिबोध की सुप्रसिद्ध कविता ’अंधेरे में’ का पाठ करेंगे।

लखनऊ वि वि में अध्ययन के बाद जुगलकिशोर जी ने भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ से अभिनय में विशेषज्ञता के साथ डिप्लोमा हासिल किया। विगत दो दशक से अधिक से वे अभिनय से जुड़े हुए हैं। पहले एक छात्र के रूप में फिर शिक्षक और सक्रिय रंगकर्मी के रूप में उन्होंने परंपरागत और लोकनाटकों के लिए अनथक कार्य किया। लगभग 25 वर्षाें तक भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ में अध्यापन करते हुए वे 2008 से 2012 तक उसके निदेशक भी रहे।

वे नाट्य निर्देशक, नाट्य कलाकार, फिल्म कलाकार, मॉडल के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्होंने दबंग-2, पीपली लाइव, बाबर, कॉफी हाउस, मैं मेरी पत्नी और वो, कफन, हमका ऐसन वैसन ना समझा जैसी हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों में काम किया है और बह्म्र का स्वांग, पर्दा, वसीयत, ’हल होना एक कठिन समस्या का’ आदि टेलिफिल्मों में अभिनय किया है। जी वी अइयर की संस्कृत फिल्म ’श्रीमद्भगवतगीता’ के हिन्दी संस्करण को उन्होंने बनाया जिसे 1993 का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला। उन्होंने मूक बधिर पर, लखनऊ के रंगमंच पर, मृत्यु दंड पर, युवाओं की समस्याओं पर,लखनऊ के हस्तशिल्प पर फीचर लिखे हैं जो अब एक दस्तावेज हैं। उन्होंने भांडों पर और बंुदेलखंड के मार्शल आर्ट ’पाई डंडा’ पर शोध पत्र लिखे हैं। उन्होंने देश के विभिन्न शहरों में अनेक थियेटर वर्कशॉप का संचालन किया है। नौटंकी के परंपरागत कलाकारों और बी एन ए के छात्रों के साथ उन्होंने ’सत्यवक्ता हरिशन्द्र’ नाटक तैयार किया। 

जुगलकिशोर जी ने 30 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है। उनके नाटकों के चयन और उनके प्रयोगशील निर्देशन से समकालीन रंगमंच के राजनैतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पक्षों का पता मिलता है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी ’ब्रह्म का स्वांग’ या दारियो फो का नाटक ’एक अराजक की अचानक मौत’ हो जुगलकिशोर के निर्देशन में इन नाटकों से समाज के पाखंडों का पर्दाफाश होता है। जुगलकिशोर ने रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी ’ताशेर देश’ का रूपांतर ताशों का देश, अल्बर्ट कामू के नाटक ’कालीगुला’ भारतेन्दु के नाटक अंधेर नगरी, रूसी उपन्यास पर आधारित ’खोजा नसरूद्दीन’ कुरासोवा की फिल्म का नाट्य रूपांतर ’मटियाबुर्ज’, मोलियर के नाटक ’बिच्छू’ अरबी कहानी ’अली बाबा’ मुद्रा राक्षस के नाटक ’आला अफसर’ राकेश का नाटक ’माखनचोर’ और होली जो छात्रों के आंदोलन पर आधारित है आदि नाटकों का निर्देशन किया है। वैश्वीकरण की समस्या और पूंजीवादी समाज की विकृतियों को उन्होंने अपने नाटकों का विषय बनाया है।

Tuesday, July 15, 2014

हरदा इप्टा के कलाकारों ने थामी गैती आैर कुदाल

हरदा। अपने अंचल की पुरातन धरोहरों को सहेजने के लिए अब रंग मंच से जुड़े कलाकारों ने पहल की है। करीबी ग्राम उड़ा में स्थित पुरानी बावड़ी की सफाई के लिए इप्टा के कलाकार रविवार को हाथों में कुदाल, गेंती व फावड़ा और तगाड़ी लेकर नीचे उतरे। इसके पीछे कलाकारों की यह सोच थी कि हरदा शहर और आसपास की इस तरह की धरोहरों को संजोने के लिए स्थानीय स्तर पर जागरुकता लाकर औरों को भी प्रेरित किया जाए। इप्टा से जुड़े कलाकारों ने बताया कि विकास के नाम पर ये धरोहरें धीरे धीरे समाप्त कर दी गई। अब पुरानी बावड़ी व कुओं का आसपास के लोगों के द्वारा जीर्णोद्घार करने के बजाय कचरा घर के तौर पर उपयोग किया जाने लगा है।
इप्टा के कलाकारों का मानना था कि सामाजिक सरोकारों के जुड़े नाटक करने से या केवल जागरुकता अभियान चलाने से कुछ नहीं हो पा रहा है। इसके लिए आगे आकर श्रमदान की यह पहल स्थानीय लोगों के साथ मिलकर करने की जरुरत है। जिससे वे प्रेरित होकर अपनी धरोहरों को सहेजने एवं संरक्षित रखने का कार्य स्वप्रेरणा से कर सकें। श्रमदान में इप्टा के सुरेन्द्र चौहा, इरशाद खान, सुरेन्द्र राजपूत, संदीप, अमन बंसल, निकिता बंसल, मनोज विश्वकर्मा, अतुल जोशी, सुनीता जैन, शोभा बाजपेयी, मनोज जैन, संजय तेनगुरिया सहित अनेक ग्रामीण थे।
इप्टा अभिनय के जरिए समाज को जागरुक करने में लगा हुआ है। पुरानी धरोहरों को सहेजने के लिए जनता की भागीदारी भी जरुरी है। इसे देखते हुए रविवार को उड़ा में बावड़ी की सफाई की।
-संजय तेनगुरिया, संयोजक इप्टा हरदा
स्रोत : नई दुनिया