Friday, January 31, 2014

नफरत व घृणा के खिलाफ "दो मिनट का सत्याग्रह"

महात्मा गाँधी के 66वें शहादत दिवस पर भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा), पटना ने 29 एवं 30 जनवरी, 2014 को भिखारी ठाकुर रंगभूमि गाँधी मैदान में दो दिवसीय कार्यक्रम "हे राम....... बापू को बिहारी जन का सलाम" का आयोजन किय कार्यक्रम में प्रथम दर्शक के ...रूप में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार नसीरुद्दीन ने कहा कि गाँधी सनातनी हिन्दू थे पर उन्होंने अपने जीवन और कर्म में सभी धर्मों का बराबर सम्मान किया। उन्होंने सत्य, अहिंसा, क्षमा, करुणा और प्रेम को अपने जीवन और सामाजिक दायरे में समेटने
की कोशिश की उनकेलिए राजसत्ता का तात्पर्य एक समावेशी न्याय के साथ विकास का सिद्धांत था। जहाँ हर नागरिक देश-राष्ट्र के विकास का सहभागी हो। परन्तु आज की राजसत्ता और राजनीतिक शक्तियाँ बार-बार गाँधी और उनके विचारों का क़त्ल कर रहीं हैं। हाल के मुज़फ्फरपनगर के दंगे में जो कुछ हुआ वह शर्मनाक है। आज के सन्दर्भ में गाँधी प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए श्री नसीरूद्दीन ने कहा कि आज गाँधी को याद करने का मतलब अपने बच्चों को बेख़ौफ़ ज़िन्दगी देना है, ख़ुद से पड़ोसी से प्रेम करना है और ऐसे माहौल में जीना जहाँ कोई नफरत या घृणा ना हो।
इस अवसर पर बोलते हुए बिहार इप्टा के सचिव फीरोज़ अशरफ खां ने कहा कि 30 जनवरी, 1948 को गाँधी को गोली मार दी गयी थी, क्योंकि वे सांप्रदायिक शक्तियों के अस्तित्व के लिए खतरा बन गए थें। गाँधी की हत्या केवल एक राजनीतिक विचार की हत्या नहीं थी बल्कि सैकड़ों सालों की साझी सांस्कृतिक विरासत पर हमला था,
जिसे गाँधी ने अपने सीने पर गोली खा कर झेला और इस विरासत को अक्षुण्ण रखा; परन्तु अफ़सोस है कि उनकी विरासत को अपनाने का दावा करने वाली राजनीतिक ने ही इसे खण्डित करने का काम किया है। समाज में एक स्पेस पैदा कर दिया, जिसका फायदा सांप्रदायिक फासीवादी ताक़तें नफरत और घृणा फैलाने के लिए उठा रहीं हैं। नहीं तो क्या गाँधी के हत्या के लिए षड्यंत्र करने के आरोपी रहे वीर सावरकर का चित्र संसद में लगाई जाती? आज स्थिति यह है कि गाँधी के हत्यारे उन्हें अपने स्वार्थ के लिए अपना रहे हैं तो ऐसे में ये सवाल हमें खुद पूछना चाहिए कि "गाँधी को किसने मारा? गाँधी को क्यों मारा?
 
वरीय संस्कृतिकर्मी विनोद कुमार 'वीनू' ने कहा कि गाँधी की कोशिश एक ऐसे हिन्दुस्तान की स्थापना थी, जहाँ का ग़रीब से ग़रीब आदमी यह महसूस करे कि यह देश उसका है और इसकी तक़दीर बनाने में उसकी भागीदारी रही है। वह हिन्दुस्तान ऐसा होगा जहाँ ना कोई बड़ा होगा ना कोई छोटा, जहाँ सब जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोग एकता के सूत्र में बंधेंगे। वैसे हिंदुस्तान में कोई छूआ-छूत नहीं होगा।
पटना इप्टा के अध्यक्ष डॉ० सत्यजीत ने कहा कि इप्टा ने जनता को नायक माना है और गाँधी भारत के पहले राजनितिक पुरुष थें जिसने जनता को अपना नायक मानकर आज़ादी के लिए संघर्ष किया था, इसलिए हम हर साल गाँधी को याद करते हैं।
बिहार इप्टा के संरक्षक एवं वरीय शिक्षाविद विनय कुमार कंठ ने कहा कि गाँधी ने हिंदुस्तानी विरासत को विस्तार देने का काम किया था, जो गैर-लोकतान्त्रिक शक्तियों को मंज़ूर नहीं था, इसलिए वे मार दिए गए। आज पूरी हिंदुस्तानी विरासत गहरे संक्रमण से गुजर रही है। आम आदमी को छोड़ कर कोई संस्कृति कोई लोकतंत्र ज़िंदा नहीं रह सकता है। सामाजिक कार्यकर्त्ता और प्राध्यापक भारती एस० कुमार ने साम्प्रदायिकता की राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आसन्न लोकसभा चुनाव भारत के लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भाजपा ने अपने सांप्रदायिक चेहरे को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाकर पेश किया है और उसके विरोध में कोई सशक्त उम्मीदवार नहीं है। अब देखना यह है कि भारतीय जनता क्या निर्णय लेती है? इस दो दिवसीय आयोजन में बिहार इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर, पटना इप्टा की सचिव उषा, हसन इमाम, सीताराम सिंह, उदय कुमार, नीरज ने भी सम्बोधित किया।
दो दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत कबीर की रचना "झीनी-झीनी बीनी चदरिया" के गायन से हुई. वरिष्ठ संगीतकार सीताराम सिंह ने कैफी आज़मी की नज़म "सोमनाथ" और "दूसरा बनवास" का गायन किया। इस अवसर पर नटमंडप द्वारा "शपथ" कविता का पाठ मोना झा ने किया। विस्तार कालिदास रंगालय के कलाकारों ने नीरज के निर्देशन में "भ्रष्टाचार महोत्सव" नाटक की प्रस्तुति की। हीरावल-जन संस्कृति मंच के साथी राजन कुमार ने निराला और गोरख पाण्डेय की रचनाओ का गायन किया। पटना इप्टा द्वारा हरिशंकर परसाई की रचना पर आधारित नाटक "महात्मा गाँधी को चिट्ठी पहुंचे" और तनवीर अख्तर के निर्देशन में "समरथ को नहिं दोष गोसाई" नाटक का मंचन किया गया। 




 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 आयोजन के दूसरे दिन कलाकारों और नागरिकों ने 11.00 से 11.02 बजे तक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि दी और नफरत व घृणा के खिलाफ "दो मिनट का सत्याग्रह" किया।
इसके उपरांत उपस्थित कलाकारों और नागरिकों ने बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और धर्मनिरपेक्ष हिंदुस्तान का संकल्प लिया। मैत्रयी कुहू ने नागार्जुन की रचना "तर्पण" का सस्वर पाठ किया। सुरेश कुमार हज्जू ने निर्देशन में एच०एम०टी० के कलाकारों ने "गाँधी" नाटक मंचित किया। प्रेरणा ने हसन इमाम के निर्देशन में "खोजत भये अधेड़" नाटक प्रस्तुत किया। पटना इप्टा ने सीताराम सिंह संगीत संयोजन में सूफी- भक्ति कवियों के गीतों की सांगीतिक प्रस्तुति "प्रेम राग" और तनवीर अख्तर के निर्देशन में नाटक "ख़ुदा हाफ़िज़" की प्रस्तुति की। सदा, खगौल ने उदय कुमार के निर्देशन में "धर्म का अफीम" नाटक मंचित किया। अंत में हरिशंकर परसाई की रचना पर आधारित नाटक "महात्मा गाँधी को चिट्ठी पहुंचे" का मंचन किया गया । बापू के शहादत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का समापन 'हम होंगे कामयाब……' के गायन से हुई।
 
फीरोज़ अशरफ खां 

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