Saturday, March 30, 2013

आगरा में शहादत दिवस समारोह

आगरा।शहादत दिवस के दिन क्रांतिकारियों की कर्मस्थली रहे नूरी दरवाज़ा (अब भगत सिंह द्वार ) स्थित शहीद-ए-आज़म की प्रतिमा पर पुष्पांजलि से  सुबह शहर में बलिदान-दिवस समारोहों की शुरुआत हुई .   स्थानीय मेला कमेटी के संयोजक रामस्वरूप दीक्षित,शहीद स्मारक समिति के उपाध्यक्ष दीनदयाल शर्मा ,इप्टा के राष्ट्रीय महामंत्री जितेन्द्र रघुवंशी,लिटिल इप्टा के संयोजक सुबोध गोयल,संस्कृतिकर्मियों अनिल जैन,विजय शर्मा,डालचन्द आदि ने फूल चढ़ाये व् भगतसिंह ,सुखदेव और राजगुरु की शहादत को याद किया .भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा ), आगरा के कलाकारों ने रामप्रसाद बिस्मिल ,पाश,राजेन्द्र रघुवंशी ,दुष्यंत कुमार ,शलभ श्रीरामसिंह की क्रांतिचेता रचनाओं की प्रस्तुति की .इनमें अर्जुन गिरि ,संजय सिंह,निर्मल सिंह,आशुतोष गौतम,मानस रघुवंशी,वैशाली पाराशर ,नवीन कुमार,सुमित गुप्ता अदि शामिल थे.

शाम को सरदार भगतसिंह स्मारक समिति द्वारा शहीद स्मारक पर आयोजित बलिदान दिवस समारोह में आगरा इप्टा के कलाकारों ने विविध कार्यक्रम प्रस्तुत किये. डा. विजय शर्मा ने क्रांतिकारियों पर केंद्रित चित्र प्रदर्शनी भी लगायी।


Friday, March 29, 2013

नाटक का प्रतिरोधी होना जरूरी है

-हिमांशु राय 
जो समस्या इटली में सदियों से रही है, जिसके कारण दारियो फो चिन्तित हैं और जिसे उन्होंने अपने संदेश में व्यक्त किया है वो ये है कि पढ़ने से ज्यादा देखने से फर्क पढ़ता है। नाटक लिखा हुआ रहा आए तो चलेगा पर यदि उसे मंचित किया जाए तो बहुत कष्टकारी हो जाता है। क्योंकि पढ़ा हुआ कुछ दिन बाद धुधला हो जाता है पर देखा हुआ बहुत असरकारी होता है। याद रह जाता है। यही नाटक की ताकत है। वो जीवंत होता है। दर्शक के सामने घटित होता है। वो कहानी पाठ नहीं होता। वो लेख नहीं होता। वो सामने कलाकारों द्वारा महीनों की गई रिहर्सल के बाद एक एक शब्द पर की गई मेहनत का नतीजा होता है। इसीलिए वो असरकारक होता है और नाटक का जवाब बेहतर और तार्किक नाटक ही हो सकता है। नाटक करना बहुत मेहनत का काम है। और नाटक के जवाब में नाटक करना तो दोगुनी मेहनत की मांग करता है। इसीलिए इटली में सदियों पहले धर्माचार्यों ने नाटकघर बंद करवा दिए, कलाकारों को देश निकाला दे दिया। जो वो कर सकते थे उनने किया।

सत्ता चाहती है कि कोई विरोध में न बोले। सब भजन गाएं और चुप रहें। नाटक करने वाले की मुश्किल है कि यदि वो बिलकुल शाकाहारी नाटक करे तो उसका नाटक कोई क्यों देखे? नाटक का राजनैतिक होना जरूरी नहीं है, पर नाटक का प्रतिरोधी होना जरूरी है। नाटक हमारे जीवन में, समाज में, देश में राजनीति में हर क्षे़त्र में विरोधाभासों को सामने लाता है। ऐसे बहुत से नाटक हैं जो बहुत अच्छे हैं पर सीधे किसी पर चोट नहीं करते। वो अवचेतन पर मार करते हैं। उन्हें निर्देशित करने और मंचित करने में अनेक नाटक वालों को बहुत सुविधा होती है। दोनों काम पूरे हो जाते हैं प्रतिरोध का प्रतिरोध, कला की कला। हर नाटक करने वाले को हर तरह के नाटक करना चाहिए। यदि हम यह अपेक्षा करेंगे कि लोग हमारे पसंद के नाटक ही करें तो हम इटली के धर्माचार्यों के समान ही व्यवहार कर रहे होंगे।

नाटक को सतही तौर पर देखने वालों को यह ग़लतफ़हमी रहती है कि दर्शक को जो दिखाओ वही मान लेता है। ऐसा नहीं है। दर्शक नाटक देखकर मनन करता है और निर्णय करता है कि नाटक में क्या सही कहा गया है और क्या गलत कहा गया है। यदि किसी नाटक को पांच सौ दर्शक देख रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि ये पांच सौ लोग नाटक में कही बात से सहमत हैं। इसीलिए प्राचीनकाल से ही नाटक के दर्शक को देव या भगवान कहा गया है। नाटक उसी के लिए किया जाता है। वो वास्तविक नियंता होता है। और एक बार फिर कहा जाना चाहिए कि यदि आप नाटक की भावना या विवेचना या लब्बो लुआब से असहमत हैं तो नाटक का जवाब नाटक है। नाटक पर प्रतिबंध और कलाकारों की पिटाई या निर्देशक पर हमला या लेखक की हत्या आदि हरकतें नाटक का जवाब नहीं हैं।

नाटक की एक ही दिक्कत है। ये चुभता है। जिसे चुभता है वो भले ही सामने बैठा हंस रहा हो या गंभीर हो कर नाटक के गुणों की प्रशंसा कर रहा हो पर दरअसल उसके अंदर ’देख लूंगा’ वाला भाव आ ही जाता है। जिसके पास ताकत होती है वो परम विद्वान होता है। उससे बहस नहीं की जा सकती। हमने बार बार देखा है कि कोई व्यक्ति जब पैसा कमा लेता है तो ज्ञानी हो जाता है। वो हर विषय का विशेषज्ञ हो जाता है। उसे हक है कि वो सबको ज्ञान बांटे। उसे हक है कि वो आपको बोलने न दे क्योंकि वो पैसे वाला है। किसी टुटपुंजिए की औकात ही क्या है जो वो एक ताकतवर पैसे वाले से बहस करे या उसकी हंसी उड़ाए या उस पर व्यंग्य करे। इसीलिए कलाकार पिटते हैं। गांव शहर देश से निकाले जाते हैं।

दारियो फो द्वारा इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय नाट्य दिवस पर दिये गए संदेश में जो संदेश दिया गया है उसे इसी रोशनी में देखा जाना चाहिए। हमारे देश में अब कोई एक आदमी भी कह सकता है कि उसकी भावनाएं किसी नाटक से आहत हो सकती हैं और नाटक पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। अब कुछ भी हो सकता है। और नाटक करने वालों के साथ कोई नहीं आएगा यह भी तय हो चुका है। अब नाटक करने वालों को ही वैकल्पिक व्यवस्था करना होगी। प्रतिबंध लगवाने वालों से खुद ही निपटना होगा।


World Theatre Day celebrated at Cuttack,

Cuttack 27th March 2013 : World Theatre Day was celebrated at Cuttack, Odisha by IPTA among hundreds of artists and intellectuals. Prominent theatre personality Kartik Prasad Rath spoke about the importance of World Theatre Day vis-a-vis the important role played by theatre movement at the present day situation of Globalization.

Ramesh Padhy, state IPTA secretary read out the WTDay message-2013 written by DARIO FO, international theatre personality and noble award laureate of Italy. The Cuttack branch of Indian People’s Theatre Association (IPTA) screened “Rubina ra Jamanbandi”, a play written and directed by Shri Puranjan Roy on the occasion of World Theatre Day at Satabdi Bhawan. The play with a communal riot in the backdrop studies the aftermath of the riot and its consequences on the people who have suffered and survived it.

Senior advocate, Odisha High Court Shri Ashok Mukherjee inaugurated the programme by lighting the lamp. Secretary, IPTA, Cuttack Smt Krushnapriya Mishra gave a brief introduction about World Theatre Day which was followed by a dance rendition in Odissi by child artistes of IPTA, Cuttack.

Eminent playwright and director Dr Kartik Chandra Rath illuminated audience on the importance of the day. 
The core organizing team comprised IPTA members Sasmita Beura, Niharika Dash, Laxmidhar Das, Laxmi Karmakar and Susanta Mohapatra. The programme was attended by people from several walks of life including dignitaries, intellectuals, artistes and students. 


Tuesday, March 26, 2013

भारतेंदु की होली, दारियो फो का संदेश, नजीर का गीत

-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र















गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ए यार होली में.

नहीं यह है गुलाले सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे,
ये आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में.

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो,
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में.

है रंगत जाफ़रानी रुख़ अबीरी कुमकुम कुछ है,
बने हो ख़ुद ही होली तुम ए दिलदार होली में.

रसा गर जामे-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझको भी,
नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में.


दारियो फो का संदेश
















हुत समय पहले सत्ता ने कमेडिया दे ला आर्ट के अभिनेताओं को देश से बाहर निकाल कर उनके विरुद्ध अपनी असहिष्णुता को संतुष्ट किया. आज ऐसे ही संकट के कारण अभिनेताओं और थियेटर कंपनियों के लिए सार्वजानिक मंचों, प्रेक्षागृहों और दर्शकों तक पहुंचना कठिन हो गया है .शासकों को अब उन लोगों से कोई समस्या नहीं है, जो विडंबना और व्यंग्य की अभिव्यक्ति करते हैं क्योंकि न तो अभिनेताओं के लिए कोई मंच है और न ही दर्शक, जिसे संबोधित किया जा सके. इसके उलट पुनर्जागरण के दौर में इटली का सत्ताधारी वर्ग हास्य-व्यंग्य कलाकारों को दूर रखने के लिए विशेष प्रयास करने पर बाध्य हुआ क्योंकि ऐसे प्रदर्शन जनता में बहुत लोकप्रिय थे.

यह तो सर्वविदित है कि कमेडिया दे ला आर्ट के कलाकारों का बड़ी संख्या में बहिर्गमन सुधार्रों की गति को विपरीत दिशा में ले जाने वाली सदी में हुआ, जब सभी रंगकर्म स्थलों को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया . विशेष तौर पर रोम में, जहाँ उन कलाकारों पर पवित्र नगर को अपमानित करने का आरोप लगाया गया .1697 में पोप इनोसेंट बारहवें ने रूढ़िवादी बुर्जुआ पक्ष और प्रतिनिधि पादरी समूह के अड़ियल रवैये व लगातार बढ़ते दबाव में तार्दिनोना थियेटर को तोड़ने का आदेश दिया, जहाँ नैतिकवादियों के अनुसार सबसे अधिक अश्लील प्रदर्शन हुए.

सुधार के क्रम को उलट दिए जाने वाले समय में उत्तरी इटली मे सक्रिय कार्डिनल कार्ला बोरोमियो ने ‘मिलान की संतानों को’ शैतान और पाप से बचाने के लिए कला को आध्यात्मिक शिक्षा का सबसे उच्च स्वरुप और थियेटर को धर्म विरोधी, ईश निंदा और अहंकार के प्रदर्शन का केन्द्र बताया. अपने सहयोगियों को लिखे एक पत्र के माध्यम से, जिसे मैं अनायास ही उद्धृत कर रहा हूँ, उसने अपने को कुछ इस तरह से अभिव्यक्त कियाः ‘‘शैतानी ताक़तों का विनाश करने के अपने सरोकारों को ध्यान में रखते हुए हमने घृणित संभाषणों से भरे पाठ्यांशों को जलाने, आम जनता की स्मृतियों से उन्हें मिटाने और साथ ही ऐसे लोगों पर जो इन पाठ्यांशों को प्रकाशित कर जनता तक पहुंचाते हैं अभियोग चलाने के सभी संभव प्रयास किये. फिर भी यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि जब हम आराम से थे, शैतान अपने नवीनतम षड़यंत्रों और चालाकियों के साथ पुनः सक्रिय हुआ. आँखें जो देखती हैं, वह इन किताबों को पढ़े जाने की तुलना में कहीं अधिक गहराई से आत्मा को प्रभावित करता है! किशोरों और युवतियों के मस्तिष्क के लिए किताबों में छपे मृत शब्दों से कितने अधिक विध्वंसकारी हैं उपयुक्त भाव-भंगिमाओं के साथ बोले जाने वाले शब्द. अतः अपने शहरों को थियेटर करने वालों से मुक्त कराना नितांत आवश्यक है ठीक उसी तरह जैसे हम अनचाही आत्माओं से पीछा छुड़ाते हैं.’

इस तरह संकट का हल इसी आशा पर टिका है कि हमारे और युवा नाट्य प्रेमियों के निर्वासन की मुहिम चले तथा हास्य-व्यंग्य कलाकारों, रंगमंच की तामीर करने वालों को नया समूह उससे निश्चित रूप से अकल्पनीय लाभ तलाशे एवं इस जोर-जबर्दस्ती के खिलाफ नये प्रतिनिधित्व के रूप में आगे आये.

नजीर का गीत




Monday, March 25, 2013

मथुरा इप्टा ने दी शहीदों का श्रद्धांजलि

थुरा। दिनांक 23 मार्च 2013 को भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा), मथुरा द्वारा स्थानीय शहीद भगतसिह पार्क में शहीद-ए आजम भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू की शहादत पर शहीदों को श्रृंद्धाजली अर्पित की गयी।

शहीद भगतसिह पार्क में भगत सिंह की प्रतिमा के समक्ष आयोजित श्रृंद्धाजली समारोह का आयोजन वरिष्ठ क्रान्तिकारी विचारक श्री फतेह सिंह, एडवोकेट की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर शहीद-ए आजम  सी.पी.आई. के राज्य काउन्सिल सदस्य कामरेड गफ्फार अब्बास, भारतीय जन नाट्स संघ (इप्टा) की उपाध्यक्ष श्रीमती प्रेमलता राजपूत, इप्टा के सचिव सौरभ बंसल, भा.क.पा. के जिलामंत्री कामरेड बाबूलाल और सफाई यूनियन एटक के संयोजक कामरेड  ईश्वरदास चौहान आदि ने भगत सिंह की प्रतिमा पर  माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किये। साथ ही इप्टा द्वारा जनगीत भी प्रस्तुत किये गये।  इप्टा के निर्देशक देवेन्द्र पाल ने शहीद भगत सिंह को अपनी काव्यमयी श्रद्धांजलि दी।

समारोह में  सहयोगी संगठनों के कामरेड गफ्फार अब्बास, कामरेड बाबूलाल, कामरेड हमीद शाह, अब्दुल अस्फाक, याकूब शाह, कामरेड ईश्वरदास चौहान तथा इप्टा के कलाकरों  में इप्टा के सचिव सौरभ बंसल उपाध्यक्ष श्रीमती प्रेमलता राजपूत, अनिल स्वामी, वृजेश गुप्ता, राहुल बघेल, संदीप कुमार, रजत पाल, अरूण बघेल, अतुल कुमार, हर्ष मेहरा, प्रवीन पाल आदि ने सभा को संबोधित करते हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

अन्त में अध्यक्ष कामरेड फतेह सिंह एडवोकेट के सम्बोधन उपरान्त दो मिनट का मौन रखकर शहीदों को श्रृंद्धाजली अर्पित की गयी। धन्यवाद ज्ञापन एस.पी. सिंह ने किया व संचालन श्री देवेन्द्र पाल द्वारा किया गया इंकलाब जिन्दावाद, भगत सिंह अमर रहे के नारों के साथ श्रंद्धाजली समारोह सम्पन्न हुआ।

-सौरभ बंसल

Monday, March 18, 2013

Take a child to the theatre


Michael Morpurgo has written over one hundred books and won many awards. In 1976 Michael and his wife Clare started the charity Farms For City Children, which aims to relieve the poverty of experience of young children from inner city and urban areas. In 1999 they were awarded the MBE for their work in creating these farms and in 2006 Michael received an OBE.

His novel War Horse has been adapted into a hugely successful and critically acclaimed West End play, and a film directed by Steven Spielberg. Michael is a tireless champion for children's books and was formerly the Children's Laureate. Loved by children, teachers and parents alike, Michael Morpurgo has won the Whitbread Award, the Smarties Award, the Circle of Gold Award, the Children's Book Award and has been short-listed for the Carnegie Medal four times.

Message from Michael Morpurgo
'Shakespeare once wrote 'The play's the thing.....' And he was right, but not entirely right, actually! The story's the thing, and the play is simply the most powerful way of telling it.
I discovered why only the other day. I went to meet the new cast of the play of 'War Horse' (a story that has been both a book and a film of course). Around me as I told stories of Devon and farming and the First World War, were 40 or so actors coming together for the first time to make a play. So not one person telling a tale (which is what I usually do) but a huge company bringing heart and soul and all their considerable emotional energy, their intellect and acting talents to make a show that will entrance and horrify, rock audiences to laughter, move them to tears. Every show (and they will play to tens of thousands of children and young people), they will endeavour to make unforgettable.


The power of theatre, whether for young or old, lies in the collaboration of stories and ideas, the actors (and everyone back stage too of course) and most importantly the audience - we all make the play together, live it together, suspending disbelief together, bound in the same imaginative endeavour.

For young people, coming to the theatre for the first time, the effect is electrifying, utterly compelling. It is live in front of their eyes, the story, the spectacle, the music, the lighting, the movement, the sound, the actors.  Such an experience can change young lives. It informs and enriches us all.'

Sunday, March 17, 2013

विश्व रंगमंच दिवस 2013 : दारियो फो का संदेश

(दारियो फो : इटली के व्यंग्यकार, नाटककार, नाट्य-निर्देशक, अभिनेता, संगीतकार, नोबल पुरस्कार विजेता)

हुत समय पहले सत्ता ने कमेडिया दे ला आर्ट के अभिनेताओं को देश से बाहर निकाल कर उनके विरुद्ध अपनी असहिष्णुता को संतुष्ट किया. आज ऐसे ही संकट के कारण अभिनेताओं और थियेटर कंपनियों के लिए सार्वजानिक मंचों, प्रेक्षागृहों और दर्शकों तक पहुंचना कठिन हो गया है .शासकों को अब उन लोगों से कोई समस्या नहीं है, जो विडंबना और व्यंग्य की अभिव्यक्ति करते हैं क्योंकि न तो अभिनेताओं के लिए कोई मंच है और न ही दर्शक, जिसे संबोधित किया जा सके. इसके उलट पुनर्जागरण के दौर में इटली का सत्ताधारी वर्ग हास्य-व्यंग्य कलाकारों को दूर रखने के लिए विशेष प्रयास करने पर बाध्य हुआ क्योंकि ऐसे प्रदर्शन जनता में बहुत लोकप्रिय थे.

यह तो सर्वविदित है कि कमेडिया दे ला आर्ट के कलाकारों का बड़ी संख्या में बहिर्गमन सुधार्रों की गति को विपरीत दिशा में ले जाने वाली सदी में हुआ, जब सभी रंगकर्म स्थलों को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया . विशेष तौर पर रोम में, जहाँ उन कलाकारों पर पवित्र नगर को अपमानित करने का आरोप लगाया गया .1697 में पोप इनोसेंट बारहवें ने रूढ़िवादी बुर्जुआ पक्ष और प्रतिनिधि पादरी समूह के अड़ियल रवैये व लगातार बढ़ते दबाव में तार्दिनोना थियेटर को तोड़ने का आदेश दिया, जहाँ नैतिकवादियों के अनुसार सबसे अधिक अश्लील प्रदर्शन हुए.

सुधार के क्रम को उलट दिए जाने वाले समय में उत्तरी इटली मे सक्रिय कार्डिनल कार्ला बोरोमियो ने ‘मिलान की संतानों को’ शैतान और पाप से बचाने के लिए कला को आध्यात्मिक शिक्षा का सबसे उच्च स्वरुप और थियेटर को धर्म विरोधी, ईश निंदा और अहंकार के प्रदर्शन का केन्द्र बताया. अपने सहयोगियों को लिखे एक पत्र के माध्यम से, जिसे मैं अनायास ही उद्धृत कर रहा हूँ, उसने अपने को कुछ इस तरह से अभिव्यक्त कियाः ‘‘शैतानी ताक़तों का विनाश करने के अपने सरोकारों को ध्यान में रखते हुए हमने घृणित संभाषणों से भरे पाठ्यांशों को जलाने, आम जनता की स्मृतियों से उन्हें मिटाने और साथ ही ऐसे लोगों पर जो इन पाठ्यांशों को प्रकाशित कर जनता तक पहुंचाते हैं अभियोग चलाने के सभी संभव प्रयास किये. फिर भी यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि जब हम आराम से थे, शैतान अपने नवीनतम षड़यंत्रों और चालाकियों के साथ पुनः सक्रिय हुआ. आँखें जो देखती हैं, वह इन किताबों को पढ़े जाने की तुलना में कहीं अधिक गहराई से आत्मा को प्रभावित करता है! किशोरों और युवतियों के मस्तिष्क के लिए किताबों में छपे मृत शब्दों से कितने अधिक विध्वंसकारी हैं उपयुक्त भाव-भंगिमाओं के साथ बोले जाने वाले शब्द. अतः अपने शहरों को थियेटर करने वालों से मुक्त कराना नितांत आवश्यक है ठीक उसी तरह जैसे हम अनचाही आत्माओं से पीछा छुड़ाते हैं.’

इस तरह संकट का हल इसी आशा पर टिका है कि हमारे और युवा नाट्य प्रेमियों के निर्वासन की मुहिम चले तथा हास्य-व्यंग्य कलाकारों, रंगमंच की तामीर करने वालों को नया समूह उससे निश्चित रूप से अकल्पनीय लाभ तलाशे एवं इस जोर-जबर्दस्ती के खिलाफ नये प्रतिनिधित्व के रूप में आगे आये.

इन्टरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट आई. टी. आई., पेरिस विश्व रंगमंच दिवसः 27 मार्च, 2013

भारत में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) द्वारा प्रसारित













हिंदी अनुवाद: अखिलेश दीक्षित, इप्टा, लखनऊ

Thursday, March 14, 2013

विश्व रंगमंच दिवस संदेश : बांग्ला में




विश्व रंगमंच दिवस संदेश : कन्नड़ में




बलराज साहनी जन्मशती समारोह : हमारे राजनीतिज्ञ हमसे बड़े कलाकार हैं

राजनांदगांव। प्रगतिशील लेखक संघ(प्रलेस) ने सृजन संवाद भवन, मुक्तिबोध स्मारक में चर्चित फिल्म अभिनेता व लेखक बलराज साहनी जन्मशती समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर बलराज साहनी के रंगकर्म के क्षेत्र में योगदान पर परिचर्चा की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ प्रदेश इप्टा के महासचिव राजेश श्रीवास्तव थे। अध्यक्षता प्रभात तिवारी ने की।

जनसंघर्ष में रंगकर्म की भूमिका विषय पर विचार व्यक्त करते हुए मुख्य वक्ता डॉ. दादूलाल जोशी ने कहा कि भरतमुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना की है। इसमें लोक स्वभाव के चित्रण को नाटक का विषय बताया है। उन्होंने कहा कि दुनिया की ऐसी कोई भी कला नहीं है जो नाटक में समाहित न हो। भारत में नाट्य आंदोलन पर भारतेंदु व उसके बाद के तमाम लेखकों व कलाकारों ने अंग्रेजी साम्राज्य विरोधी संघर्ष में हिस्सा लिया। बंगाल की अकाल पीडि़त जनता के सहयोग के लिए इप्टा का जन्म हुआ। जो बाद में साम्राज्यवाद, फासीवाद, सांप्रदायिकता व पूंजीवाद के विरोध के साथ हर जन आंदोलन में सहभागिता को प्रेरक करने लगा। साहनी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वे एक संवेदनशील कलाकार थे जो जीवन पर्यंत जनसंघर्ष के पक्ष में अभिनय करते रहे।

विशिष्ट अतिथि भिलाई से आए मणिमय मुखर्जी ने साहनी के व्यक्तित्व व कृतित्व का विस्तार से परिचय दिया। साहनी ने इप्टा से जुड़कर अनेक नाटकों में काम किया। धरती के लाल, हकीकत, वक्त, काबुलीवाला, गर्म हवा, दो बीघा जमीन जैसी अनेक फिल्मों में जीवंत अभिनय किया। साहनी एक सुविधा संपन्न परिवार के थे जो चाहते तो पैतृक व्यवसाय चलाते हुए सुखपूर्वक जीवन यापन कर सकते थे लेकिन उन्होंने संघर्ष का रास्ता चुना। आजादी के आंदोलन में व आजादी के बाद जन संघर्ष में जेल गए। उन्होंने रंगकर्म की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केरल को साक्षर राज्य बनाने में रंगकर्मिय की बड़ी भूमिका रही है। आज स्त्रियों, दलितों के उत्पीडऩ व भ्रष्टाचार के विरोध में रंगकर्मी जुटे हुए हैं। रंगकर्म की भूमिका कभी कम नहीं हो सकती।

विशिष्ट अतिथि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल अग्रवाल ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में लेखक, नाटक, पत्रकारिता की बड़ी भूमिका रही है। तिलक ने गणेशोत्सव को जनचेतना का माध्यम बनाया। राजनांदगांव में बाल समाज, महाराष्ट्र मंडल के मंचों में राष्ट्रीय, सामाजिक मुद्दों पर व्याख्यान, वाद-विवाद होते रहा है। प्रयास अपना प्रभाव छोड़ जाता है। आजादी के बाद देश की स्थिति निराशाजनक है। आज इतना नैतिक पतन, भ्रष्टाचार देखने को मिल रहा है जिसका विरोध आवश्यक है।

मुख्य अतिथि श्रीवास्तव ने साहनी को याद करते हुए कहा कि वे एक प्रतिभाशाली कलाकार थे। उन्होंने जीवन पर्यंत वैचारिक निष्ठा को निभाया। मजदूरों किसानों के हक के लिए रंगकर्म को माध्यम बनाया। रंगकर्म की भूमिका पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे यहां भरतमुनि से इसकी शुरूआत हो चुकी थी। भारतेंदु ने इसे आगे बढ़ाया। इसे इप्टा ने वैचारिक दिशा दी। अंग्रेजों ने नाटक विरोधी जो कानून बनाया है वह आज भी लागू है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। 1936 से प्रलेस व इप्टा इसका विरोध कर रही है। सफदर हाशमी की हत्या के बाद भी रंगकर्मी पीछे नहीं हटा है।

अध्यक्षीय भाषण में तिवारी ने कहा कि लोग संसार को ही एक रंगमंच मानते आए हैं। हमारे राजनीतिज्ञ हमसे बड़े कलाकार हैं जो हर अभिनय में माहिर है। दरअसल हम जो कर रहे हैं वह कहां तक पहुंच रहा है हमें देखना है। उन्होंने साहनी पर प्रकाश डाला। हमारे पुरखों की वाणी प्रगतिशीलता का साथ देने प्रेरित करती है। उनकी उपेक्षा से वह पाखंडियों के हाथों पहुंच जाती है। बलराज ने कहा कि कोई यदि मानवता की सेवा करना चाहता है तो उसे श्रमिक वर्ग से जुडऩा पड़ेगा। एक लेखक के लिए व्यक्ति, समाज, वर्ग की भूमिका को समझना आवश्यक है। एक लेखक, कलाकार के रूप में बलराज साहनी की समझ स्पष्ट थी। कार्यक्रम का संचालन थानसिंह वर्मा व नरेश श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में कथाकार कुबेर साहू, मुकेश रामटेके, नलिनी श्रीवास्तव, संजय अग्रवाल, कैलाश श्रीवास्तव, प्रो.पीडी सोनकर, जैतराम साहू, नरेश श्रीवास्तव, मुन्ना बाबू, गजेंद्र झा, योगेश अग्रवाल, लखन साहू, गजेंद्र बघेल, सुधीर ठाकुर, गिरीश ठक्कर, सतीश भट्टड़, बंशीलाल जोशी, शंकर सक्सेना, यशवंत मेश्राम, राजेश जगने के अलावा बड़ी संख्या में लेखक- कलाकार उपस्थित थे।

भास्कर भूमि से साभार

Friday, March 8, 2013

World Theatre Day : Message by Dario Fo



World Theatre Day was initiated in 1961 by the International Theatre Institute (ITI). It is celebrated annually on the 27th March by ITI Centres and the international theatre community. Various national and international theatre events are organized to mark this occasion. One of the most important of these is the circulation of the World Theatre Day International Message through which at the invitation of ITI, a figure of world stature shares his or her reflections on the theme of Theatre and a Culture of Peace. The first World Theatre Day International Message was written by Jean Cocteau (France) in 1962.


The Message Author of the World Theatre Day 2013 is Dario Fo, Italian satirist, playwright, theatre director, actor, composer and recipient of the 1997 Nobel Prize in Literature.


DARIO FO’S MESSAGE

A long time ago, Power resolved the intolerance against Commedia dell’Arte actors by chasing them out of the country.

Today, actors and theatre companies have difficulties finding public stages, theatres and spectators, all because of the crisis.
Rulers are, therefore, no longer concerned with problems of control over those who express themselves with irony and sarcasm, since there is no place for actors, nor is there a public to address.
On the contrary, during the Renaissance, in Italy those in power had to make a significant effort in order to hold the Commedianti at bay, since these enjoyed a large audience.



It is known that the great exodus of Commedia dell’Arte players happened in the century of the counter-Reformation, which decreed the dismantling of all theatre spaces, especially in Rome, where they were accused of offending the holy city. In 1697, Pope Innocent XII, under the pressure of insistent requests from the more conservative side of the bourgeoisie and of the major exponents of the clergy, ordered the demolition of Tordinona Theatre which, according to the moralists, had staged the greatest number of obscene displays.
At the time of the counter-Reformation, cardinal Carlo Borromeo, who was active in the North of Italy, had committed himself to the redemption of the “children of Milan”, establishing a clear distinction between art, as the highest form of spiritual education, and theatre, the manifestation of profanity and of vanity. In a letter addressed to his collaborators, which I quote off the cuff, he expresses himself more or less as follows: “Concerned with eradicating the evil weed, we have done our utmost to burn texts containing infamous speeches, to eradicate them from the memory of men, and at the same time to prosecute also those who divulged such texts in print. Evidently, however, while we were asleep, the devil labored with renewed cunning. How far more penetrating to the soul is what the eyes can see, than what can be read off such books! How far more devastating to the minds of adolescents and young girls is the spoken word and the appropriate gesture, than a dead word printed in books. It is therefore urgent to rid our cities of theatre makers, as we do with unwanted souls”.

Thus the only solution to the crisis lies in the hope that a great expulsion is organized against us and especially against young people who wish to learn the art of theatre: a new diaspora of Commedianti, of theatre makers, who would, from such an imposition, doubtlessly draw unimaginable benefits for the sake of a new representation.

Translation by Victor Jacono, ITI Italy and Fabiana Piccioli

Circulated in India by












Indian People’s Theatre Association (IPTA)





Thursday, March 7, 2013

Some important IPTA events in March 2013

Gorakhpur (U.P.): Sham-e-Ghazal dedicated to 31st Death Anniversary 
of Firaq Gorakhpuri





Allahabad (U.P.): Ravi Nagar Memorial Seminar & Presentations 
on Natya-Sangeet 
by Samaantar.


International 
Women's Day 
programmes 
at various places
Chandigarh: 
Seminar on 
Saadat Hasan Manto






Allahabad: 
Lucknow IPTA's play 
"The Rule & the Exception"
(Bertolt Brecht)






Tejpur(Assam): 
State Conference of Assam IPTA








Bhilai (Chhattisgarh): 
World Day of Theatre for Children 
and Young People.







Martyrdom Day of Bhagat singh,Sukhdev & Rajguru

Godargavan,Begusarai(Bihar):

Lucknow IPTA's play at 
Viplavi Pustakalaya



Jaipur(Rajasthan):
IPTA's play "Hangama-e-Locket" by Ranbir Sinh







Delhi: 
Screening of Masood Akhtar's film on M. S. Sathyu by Hindustani Awaz.







Thiruvananthpuram (Kerala): 
Cultural Fest dedicated to 70th Anniversary of IPTA & World Theatre Day

World Theatre Day celebrations by various units and fraternal organizations.



Guwahati (Assam): 
Keshav Mahanta Memorial Lecture.