Wednesday, August 29, 2012

वे भारत-पाकिस्तान की प्रगतिशील सांस्कृतिक विरासत के प्रतिनिधि थे


एके हंगल के निधन पर जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि
नई दिल्ली : मशहूर वामपंथी रंगकर्मी, स्वाधीनता सेनानी और फिल्मों के लोकप्रिय चरित्र अभिनेता एके हंगल का 95 वर्ष की उम्र में 26 अगस्त, 2012 को लम्‍बी बीमारी से बंबई में निधन हो गया। इंडियन पीपुल्स थियेटर(इप्टा) और प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन से संबद्ध एके हंगल ने वामपंथ और मार्क्‍सवाद के प्रति अपनी आस्था को आजीवन बरकरार रखा। 1917 में जन्में हंगल के बचपन का ज्यादातर समय पेशावर में गुजरा। उनके परिवार में कई लोग अंग्रेजी राज में अफसर थे और वे चाहते थे कि एके हंगल भी अफसर ही बनें, लेकिन उन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता संघर्ष में लगाने का फैसला कर लिया था, उन्हें अंग्रेजों की गुलामी कबूल नहीं थी। आजादी की लड़ाई में वह जेल भी गये। बलराज साहनी, कैफी आजमी सरीखे अपने साथियों के साथ वह सांस्कृतिक परिवर्तन के संघर्ष में शामिल हुए। कराची में वे कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव रहे। सांप्रदायिकता विरोधी आंदोलनों और मजदूर आंदोलनों के साथ एक प्रतिबद्ध संस्कृतिकर्मी के बतौर उनका जुड़ाव रहा। वह भारत-पाकिस्तान की जनता की साझी प्रगतिशील सांस्कृतिक विरासत के प्रतिनिधि थे।
एके हंगल एक ऐसे संस्कृतिकर्मी थे, जिन्होंने नाटकों में काम करने के साथ-साथ आजीविका के लिए टेलरिंग का काम भी किया और इस पेशे में उन्होंने बहुतों को प्रशिक्षित भी किया। उन्होंने 18 साल की उम्र में नाटक करना शुरू कर दिया था, लेकिन फिल्मों में चालीस साल की उम्र में आये- तीसरी कसम में निभाई गई एक छोटी सी भूमिका के जरिए। उसके बाद उन्होंने लगभग 200 फिल्मों में काम किया और भारतीय जनता के लिये वह ऐसे आत्मीय बुजुर्ग बन गये, जिनके द्वारा निभाए गये फिल्मी चरित्रों को लोग अपने जीवन का हिस्सा समझने लगे। उन्होंने अभिनय को यथार्थ की समझदारी से जोड़ा और छोटे से छोटे दृश्यों को भी यादगार बना दिया। हिन्‍दी फिल्मों में जब भी गरीब, लाचार उपेक्षित व्यक्तियों या समुदायों और बुजुर्ग लोगों की जिन्‍दगी के मार्मिक दृश्यों या प्रसंगों की चर्चा होगी, तब-तब एके हंगल का बेमिसाल अभिनय याद आयेगा। ‘बावर्ची’, ‘नमकहराम’, ‘शोले’, ‘शौकीन’, ‘अभिमान’, ‘गुड्डी’ आदि उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्में हैं। हिन्‍दी सिनेमा में अपराधियों और काले धन के हस्तक्षेप तथा आम जन जीवन की सच्चाइयों के गायब होने और एक भीषण आत्मकेंद्रित मध्यवर्ग की अभिरुचि के अनुरूप फिल्में बनाये जाने को लेकर वे काफी चिंतित रहते थे।
भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। लेकिन बहुप्रशंसित और सम्मानित इस अभिनेता के जीवन के आखिरी दौर में जबकि अपने ऑटोबायोग्राफी के लिये जरूरत के तहत वह अपने पुश्तैनी घर देखने गये थे और पाकिस्तानी डे फंक्शन के आमंत्रण को स्वीकार करके वहाँ चले गये तो साम्‍प्रदायिक-फाँसीवादी राजनीति के लिये कुख्यात शिवसेना के प्रमुख ने 1993 में देशद्रोह का आरोप लगाकर उनकी फिल्मों पर बैन लगा दिया था। उनकी फिल्मों को थियेटर्स से हटा दिया गया था। फिल्मों के पोस्टर फाड़े गये थे और एके हंगल के पुतले जलाए गये थे, फोन से धमकियाँ भी दी गई थीं। दो साल तक उनका बहिष्कार किया गया। उस वक्त उन्होंने कहा था कि वह स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं, उन्हें किसी से कैरेक्टर सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है।
बेशक जनता का सम्मान और सर्टिफिकेट किसी भी संस्कृतिकर्मी के लिये बड़ा सम्मान और सर्टिफिकेट होता है और यह एके हंगल को मिला। वह भारत-पाकिस्तान दोनों देशों में प्रगतिशील-जनवादी मूल्यों और मनुष्य के अधिकार के लिए लड़ने वाले सारे संस्कृतिकर्मियों और आंदोलनकारियों के जीवित पुरखे थे। देश में बढ़ती पूँजीवादी अपसंस्कृति, श्रमविरोधी राजनीतिक संस्कृति, सामप्रदायिक-अंधराष्ट्रवादी विचारों के विरोध में गरीबों-बेबसों और मेहनतकशों की जिन्‍दगी की पीड़ा और आकांक्षा को अभिव्यक्ति देना तथा उनकी एकता को मजबूत करना ही एके हंगल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जन संस्कृति मंच उनके निधन पर गहरी शोक संवेदना जाहिर करते हुए उनके अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाने का संकल्प लेता है।
(प्रणय कृष्ण, राष्ट्रीय महासचिव, जन संस्कृति मंच द्वारा जारी वि‍ज्ञप्‍ति‍, लेखक मंच से साभार)

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