Tuesday, August 14, 2012

भगतसिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की ...

इप्टानामा के पाठकों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें ! 



-शंकर शैलेन्द्र
भगतसिंह इस बार न लेना
काया भारतवासी की

देशभक्ति के लिए आज भी
सज़ा मिलेगी फांसी की

-फैज़ अहमद फैज़ 

ये दाग़-दाग़ उज़ाला, ये शबगुज़ीदा सहर
वो इन्‍तज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं
ये वो सहर तो नहीं, जिसकी आरजू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्‍त में तारों की आख़री मंज़ि‍ल

कहीं तो होगा शबे सुस्‍त मौज का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा, सफ़ीन-ए-ग़मे-दिल..........

-बाबा नागार्जुन
किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है?
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्‍त है?


सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्‍कार है
कातिल है, छलिया है, लुच्‍चा-लबार है
जैसे भी टिकट मिला
जहां भी टिकट मिला
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है

उसी की जनवरी छब्‍बीस
उसी का पन्‍द्रह अगस्‍त है

बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्‍त है...
कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है
कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्‍त है?
खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा
मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्‍त है

सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्‍त है
उसकी है जनवरी, उसी का अगस्‍त है


पटना है, दिल्‍ली है, वहीं सब जुगाड़ है
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है



गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मास्‍टर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
बच्‍चे की छाती में कै ठो हाड़ है!

देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
पटना है, दिल्‍ली है, वहीं सब जुगाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है
ग़रीबों की बस्‍ती में उखाड़ है, पछाड़ है

धत् तेरी, धत् तेरी, कुच्‍छों नहीं! कुच्‍छों नहीं
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
ताड़ के पत्‍ते हैं, पत्‍तों के पंखे हैं
पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है
कुच्‍छों नहीं, कुच्‍छों नहीं...
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!


किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है!
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्‍त है!

सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्‍त है
मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्‍त है
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्‍त है...

-ख़लीलुर्रहमान आज़मी 


अभी वही है निज़ामे कोहन अभी तो जुल्‍मो सितम वही है
अभी मैं किस तरह मुस्‍कराऊं अभी रंजो अलम वही है


नये ग़ुलामो अभी तो हाथों में है वही कास-ए-गदाई
अभी तो ग़ैरों का आसरा है अभी तो रस्‍मो करम वही है


अभी कहां खुल सका है पर्दा अभी कहां तुम हुए हो उरियां
अभी तो रहबर बने हुए हो अभी तुम्‍हारा भरम वही है


अभी तो जम्‍हूरियत के साये में आमरीयत पनप रही है
हवस के हाथों में अब भी कानून का पुराना कलम वही है


मैं कैसे मानूं कि इन खुदाओं की बंदगी का तिलिस्‍म टूटा
अभी वही पीरे-मैकदा है अभी तो शेखो-हरम वही है


अभी वही है उदास राहें वही हैं तरसी हुई निगाहें
सहर के पैगम्‍बरों से कह दो यहां अभी शामे-ग़म वही है

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