Monday, June 18, 2012

मेहनतकश इंसान है हर मशीन का सबसे अहम हिस्सा

इप्टा के बच्चों ने किया "मशीन" नाटक का मंचन


इंदौर। भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) द्वारा बच्चों के लिए आयोजित ग्रीष्मकालीन शिविर के समापन पर विभिन्न कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई। साठ से अधिक बच्चों ने इस कार्यशाला में भाग लिया था।
कव्वाली प्रस्तुत करते बच्चे
इस अवसर पर शिविर के दौरान तैयार सफदर हाशमी के नाटक "मशीन", "ये कैसा घोटाला", कुछ जनगीत एवं कव्वाली प्रस्तुत किये गये। "फैज अहमद फैज" की कविता "हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे" पर जनगीत की प्रस्तुति को लोगों ने बहुत सराहा। सफदर हाशमी द्वारा लिखित कविता को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया। "ये बात समझ में आयी नहीं और अम्मी ने समझायी नहीं" कव्वाली में बच्चों की चुहलबाजियों पर लोगों ने बहुत मजे लिए। कार्यक्रम के अंत में "मशीन" नाटक की प्रस्तुति हुई। कारखानों में काम करने वाले कामगारों, मजदूरों की समस्याओं पर आधारित यह नाटक लोगों ने बहुत पसंद किया। इसमें बताया कि मशीन के साथ काम करने वाला मजदूर भी मशीन का ही एक हिस्सा होता है, जिसका हर तरह से शोषण किया जाता है, और दूसरी तरफ मालिक अपने मनोरंजन के लिए, उपहार देने पर लाखों, करोड़ों रुपये यूँ ही बरबाद कर देता है, पर मजदूरों पर नहीं। ये सभी कार्यक्रम बच्चों की डेढ़ माह चली कार्यशाला के दौरान तैयार किये गये थे और इन प्रस्तुतियों में जया मेहता, विनीत तिवारी और प्रमोद बागड़ी का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। शिविर का संयोजन सारिका श्रीवास्तव ने किया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए अध्यक्ष विजय दलाल ने इप्टा की इंदौर इकाई के अब तक के कामों और गतिविधियों की जानकारी दी।
नाटक "मशीन" का दृश्य
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और इप्टा के पुराने साथी श्री आनंदमोहन माथुर ने अपने सम्बोधन में कहा कि आज टीवी और फिल्मों में मनोरंजन के नाम पर जो दिखाया जाता है वह साधारण लोगों की समस्याओं और आम जिंदगी से बहुत दूर है। इप्टा के लोग जब फिल्म की दुनिया में सक्रिय थे तो वे फिल्में लोगों की असल जिंदगी की खुशियों और समस्याओं को बयान करती थीं। उन्होंने कहा कि 1952 से 1955 में जिस इप्टा में हमने काम किया उसी इप्टा को आज फिर  से सक्रिय देखकर बहुत खुशी हो रही है।


इस समारोह के लिए शिविर रूप से अशोकनगर, उज्जैन और गुना के साथी कलाकार सत्यभामा, विष्णु झा, मुकेश बिजौले और योगेश भी आये थे। अशोकनगर से आयीं इप्टा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य सीमा राजोरिया ने अन्य जगहों पर हुए शिविरों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि म.प्र. के अनेक शहरों में इप्टा  पुनः सक्रिय हुई है और नाटक के जरिये आज के माहौल में एक प्रगतिशील संस्कृति के निर्माण की कोशिश कर रही है। टेलिविजन, सिनेमा के सामने यह कोशिशें बौनी लग सकती हैं लेकिन जनसंस्कृति को प्रदूषित न होने देने में इनकी दूरगामी भूमिका है क्योंकि इप्टा सिर्फ़ अच्छे कलाकार नहीं बल्कि ऐसे अच्छे कलाकार बनाती है जो अच्छे इंसान भी हों।
उपस्थित दर्शक
नितिन बेदरकर ने मशीन नाटक के लेखक सफदर हाशमी के बारे में जानकारी दी और बताया कि शोषण के खिलाफ नाटक करते हुए उन्हें जान गँवानी पड़ी लेकिन उन्होंने नुक्कड़ नाटक को अमर कर दिया। शिविर में विशेष सहयोग के लिए पुणे से आए लेखक अहमद करीम और ओ.पी. मोहनिया का बच्चों ने सम्मान किया।

कार्यक्रम में श्रीमती पेरीन दाजी, सर्वश्री आलोक खरे, ब्रजेश कानूनगो, सनत कुमार, एम. के. शुक्ला, बसंत शिंत्रे, शैला शिंत्रे आदि भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में इप्टा इंदौर के सचिव अशोक दुबे ने आभार व्यक्त किया।


रिपोर्ट : सारिका श्रीवास्तव, शिविर संयोजिका

No comments:

Post a Comment