Monday, May 21, 2012

सौ ग्राम जिंदगी है, जी भर के जी है


-विनोद अनुपम
हिंदी सिनेमा के दस सर्वश्रेष्ठ दृश्य याद करने हो तो उनमें निश्चय ही एक आवारा का स्वप्न दृश्य भी होगा, जिसने राजकपूर को हिंदी सिनेमा का शोमैन बनाने की जमीन तैयार की. कल्पनातीत भव्य सेट और उस पर भारतीय जीवन दर्शन को साकार करते सैकड़ों नर्तक. इस दृश्य को साकार करने में जिस एक व्यक्ति की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी, वह है जोहरा सहगल.
पद्म विभूषण जोहरा सहगल. वाकई यह जानना एक सुखद अहसास देता है कि हम वर्षों से एक अभिनेत्री के रूप में, एक सक्रि य रंगकर्मी के रूप में जिनका सम्मान करते आ रहे हैं, वास्तव में उन्हें आवारा के उस ऐतिहासिक नृत्य नाटिका के कोरियोग्राफर के रूप में याद किया जाना चाहिए. आवारा ही नहीं, बाजी में भी नृत्य निर्देशन कर जोहरा सहगल ने गुरुदत्त को अपना प्रशंसक बना लिया था. भारत में सिनेमा के साथ जब जोहरा सहगल भी अपनी उम्र की शताब्दी मना रही होती हैं तो बरबस चीनी कम की उस वृद्धा, लेकिन जिंदादिल मां की याद आ जाती है जो अपने प्रौढ़ हो रहे बेटे को जिम भेजने के पीछे पड़ी रहती हैं.
वाकई तय करना मुश्किल है कि जोहरा के किस रूप को याद किया जाय. उसने वह सबकुछ किया जो कर सकती थी और जो करना चाहा. न तो उन्हों ने कभी सफलता की कामना की, न सराहना की. कला के लिए जोहरा थी, कला को उन्होंने कभी साधन नहीं बनाया. कला के अनंत विस्तार में निरंतर उड़ान भरती रहीं शायद सब कुछ जान लेने की जिद में. पड़ाव उनके स्वभाव में नहीं था, शायद अभी भी नहीं है.
कला के प्रति अभी भी वही असीम बेचैनी और संकल्प उनके चेहरे पर अभी भी देखी जा सकती है, जो शायद तब होगी जब 1935 में उन्होंने उदय शंकर की नृत्य मंडली के साथ जापान, मिस्र, यूरोप और अमेरिका की यात्र पर निकलने के निर्णय लिया होगा. 27अप्रैल 1912को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में जन्मी साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताज उल खान ने क्वींस मेरी कॉलेज, लाहौर से पढ़ाई की और यहीं से एक संबंधी के यहा उन्हें ड्रेसडेन जाने का अवसर मिला.
ड्रेसडेन में ही नृत्य की आरंभिक शिक्षा इन्होंने हासिल की, उसी दौरान इन्होने उदय शंकर की नृत्य नाटिका शिव पार्वती देखी और नृत्य विधा में पूर्णता हासिल करने के लिए उदय शंकर की शिष्या बन गयी. 1940में उदय शंकर जब स्वदेश लौटकर अल्मोड़ा में ‘उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर की स्थापना की तो जोहरा भी बतौर शिक्षिका वहा जुड़ गयी. इनके बहुआयामी व्यक्तित्व को साथ मिला एक और बहुआयामी व्यक्तित्व का.
14 अगस्त 1942 को इंदौर के एक वैज्ञानिक, चित्रकार और नर्तक कामेश्वर सहगल के साथ ये विवाह बंधन में बंध गयी. उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर पंडित जवाहर लाल नेहरू भी उपस्थित होते यदि ऐन मौके पर उन्हें जेल में नहीं बंद कर दिया गया होता. विवाह के बाद लाहौर में इन्होंने जोहरा डांस इंस्टिटय़ूट की शुरूआत की लेकिन विभाजन के तनाव को देखते हुए उन्हें मुंबई आना पड़ा. यहां 400 रुपये मासिक पर वे पृथ्वी थियेटर से जुड़ गयी.
और 14 साल तक सक्रि य रहीं. इसी समय इप्टा से भी वे जुड़ीं और इप्टा द्वारा निर्मित ख्वाजा अहमद अब्बास द्वारा निर्देशित धरती के लाल में अभिनय किया.
इसके बाद गोर्की की कहानी पर बनी चेतन आनंद की नीचा नगर में भी इन्होंने एक अहम भूमिका निभायी. 1959में पति कामेश्वर सहगल के निधन के बाद वे दिल्ली आ गयी और यहां एक नाट्य अकादमी की स्थापना की. 1962 में एक स्कालरशिप के अंतर्गत इन्हें लंदन जाने का अवसर मिला वहीं बीबीसी के एक धारावाहिक से टेलिविजन पर अभिनय की इन्होंने शुरूआत की.
1982में लंदन में इन्हें पहली फिल्म मिली मर्चेन्ट आइवरी की द कोटसीन ऑफ मुंबई इनके लिए काम की कभी कमी वहां नहीं थी, न तो टेलीविजन पर, न ही फिल्मों में. लेकिन रुकना जोहरा ने सीखा कहां था?
1990में ये भारत लौट आयी. और लाहोर में अपनी बहन उर्जा के साथ एक थी नानी का मंचन किया. इब्राहीम अल्काजी का चर्चित नाटक दिन के अंधेरे जोहरा के लिए अभी भी याद की जाती है. जोहरा विदेश छोड़कर चली आयीं, लेकिन विदेश उनकी प्रतिभा को नहीं भूल सका, ज्वेल इन द क्राउन, तंदूरी नाइट्स, अम्मा एंड फैमली जैसे धारावाहिकों के साथ भाजी ऑन द बीच, बेंड इट लाइक बेकहम, मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेज जैसी फिल्मों के लिए भी इन्हें आमंत्रित किया जाता रहा.
दिल से, वीर जारा, कल हो न हो, सांवरिया या चलो इश्क लड़ाये जैसी पचासों फिल्में. जोहरा सहगल को कभी फिल्मों के लिए याद नहीं किया जा सकता. जोहरा सहगल की बस एक ही पहचान है, जोहरा सहगल की. कहने को इन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान, कालिदास सम्मान, पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप और अब पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया. लेकिन जिसे ईश्वर ने ही सम्मानित किया हो उसके लिए इन सम्मानों का क्या अर्थ?
95वर्ष की उम्र में चीनी कम में जब वे युवतम खिलंदड़े उत्साह से भरपूर दिखती हैं तो मानना पड़ता है यह बगैर ईश्वरीय वरदान के तो संभव नहीं. या कह सकते हैं जोहरा के जीवट ने ईश्वर को भी मजबूर कर दिया है उनके लिए अपनी वक्त की रफ्तार थाम लेने को. विश्वास है हमें कायम रहेगा जोहरा का यह जीवट और थमी रहेगी उनके लिए वक्त की रफ्तार.
प्रभात खबर से साभार

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