Thursday, March 22, 2012

आगरा इप्टा द्वारा नाटक "कब तक पुकारूं" का मंचन


"यह कहानी चार पीढ़ियों तक फैली हुई है, जिसमें सामंतीय व्यवस्था का भूत पुकार रहा है, लहू से इसकी नींवें रंगी हुई है ।" 
- डा. रांगेय राघव

"लेखक की अपनी मानवता के कारण, संवेदना की कोमलता और परिष्कृति के कारण इस देश का सामाजिक परिवेश "प्रेत परिवेश" जैसा ही लगता है ।  
-डा. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय

"सुखराम अपने को अभिजात्य वर्ग का समझता हुआ, अभिजात्य के संस्कारों को बनाये रखने का प्रयास करता है । परन्तु परिवेश और संस्कारों के संघर्ष में अंतत: परिवेश विजयी होता है ।" 
 - डा. गोविन्द रजनीश 

गरा, 20 मार्च 2012।  "ताज महोत्सव, 2012" के तहत स्थानीय सूर सदन में भारतीय जन नाट्य संघ की आगरा इकाई द्वारा नाटक "कब तक पुकारूं" का मंचन किया गया। 50वें विश्व रंगमंच दिवस की पूर्वबेला में यह प्रस्तुति आगरा के गौरव-द्वय नाट्य पितामह राजेन्द्र रघुवंशी और मूर्द्धन्य साहित्यकार डा. रांगेय राघव को समर्पित थी । नटों के जीवन पर आधरित रांगेय राघव की यह कृति समाज के वंचित वर्गों के संस्कारों तथा मुक्ति के स्वप्नों को उजागर करती है । नाटक में यथार्थवादी शैली के साथ लोकमंच, फंतासी, गीत-नृत्य आदि के तत्वों का उपयोग किया गया। नाट्य रूपांतर जितेन्द्र रघुवंशी का व निर्देशन दिलीप रघुवंशी का था। आलेख संपादन किया था राजेन्द्र रघुवंशी ने।
नाटक में एक कहानी वर्तमान में चलती है, जो नट सुखराम (अर्जुन गिरी), बाबू भैया (  राजेश सिसौदिया) के इद-गिर्द बुनी हुई है । दूसरी कहानी फ्लैश बैक में है, जहां सुखराम, सोना (नीतू दीक्षित), कजरी (सौम्या रघुवंशी), रुस्तम खॉ (संजय सिंह) और अन्य पात्र हैं । दोनों को जोड़ता है अधूरे किले का रहस्य, जिसके प्रेत इन्हें चैन से नहीं रहने देते । बाबू भैया विवश हैं:  "मैं क्या करूं .. मैं पुकार-पुकार कर कहना चाहता हूं..  सुनो ! सुनो ! दिगन्तों में से अधिकार की तृष्णा चिल्ला रही है । सत्य सूर्य है, वह मेघों से सदैव के लिए घिरा नही रहेगा ।"
असमानता, भेदभाव व कुरीतियों पर प्रहार करने वाले इस नाटक में बॉंके की भूमिका में सूरज सिंह, नरेश  के स्प में सिद्वार्थ रघुवंशी, चन्दा - निहारिका बंसल, इसीला - आशुतोष गौतम, दीनू  -विक्रम सिंह, धूपो -वैशाली पाराशर,खचेरा - अनुज मिश्रा, ठाकुर - आनन्द बंसल, सिपाही - निर्मल सिंह, प्रेत/ग्रामीण- प्रखर सिंह, आमिर खान, तेज प्रकाश मुद्गल, बच्चियॉं - आकांक्षा सिंह, अंशिका और चन्दी,  बनिया- दिलीप रघुवंशीभागवन्ती  की भूमिका में कुमकुम रघुवंशी ने जीवंत अभिनय किया।
गीत  रचना डा. प्रतिमा अस्थाना व दिनेश संन्यासी की थी। संगीत/स्वर था डिम्पी मिश्रा व आकांक्षी खन्ना का तथा संगत की रोहन सिंह व राजू पांडे ने। संगीत अंकन - संजीव सिंह, नृत्य-रचना - पुरुषोत्तम मयूरा, दृश्य सज्जा - मनोज कुमार व  रूप सज्जा  विशाल रियाज व आनन्द बंसल ने की थी।



3 comments:

  1. my heart felt congratulations to the entire team of Agra IPTA..feels so nice to know... alas..! had i also been a part of this process and presentation.... i had read this novel some 32 years ago as far as my memory goes... my father use to bring such books... all the characters have come alive in my memory though the gallons of water has flown down the Jamuna and Gomti both... and the feelings, understandings, perceptions and the sensibilities grow with the time..naturally and if u are lucky enough to have seniors like i could have... it definitely guides one towards a better understanding of the vagaries of human nature and the puzzling mosaic of human affairs.

    once again congratulations and best wishes for the future shows.

    Dinesh ji thanks a bunch for such a theatrical treat...and that too... so close to the World Theatre Day.

    Regards

    Akhilesh Dixit

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  2. Thank you very much for report & photographs of "Kab Tak Pukaroon". Really it is a very nice Play & I am very Happy that I have acted in it. Direction of Shri. Dilip Raghuvanshi is appreciable. I hope it will be staged again very shortly...

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