Monday, January 9, 2012

"इप्टानामा" का यह अवतार


भिलाई में इप्टा के 13 वे वार्षिक सम्मेलन के दौरान एक बुलेटिन "इप्टानामा" का प्रकाशन किया गया था।  इसमें साथी जयप्रकाश जी, विनोद, विपुल, कमलेश वर्मा व शिशिर श्रीवास्तव जी ने  काफी मेहनत की थी। इसी दौरान कई साथियों ने यह सुझाव दिया कि "इप्टानामा" को सम्मेलन के बाद भी जारी रखा जाये। इस सुझाव का कई साथियों ने स्वागत किया। कामरेड जितेन्द्र रघुवंशी ने भी। कुछ साथी इसकी हार्ड कापी भी चाहते हैं, लेकिन यह काम थोड़ा जटिल इसलिये है कि मुद्रण व वितरण में नगद-नारायण की मुख्य भूमिका होती है। इसलिये फिलहाल तो ई-पत्रिका के रूप में ही हम इसकी शुरूआत कर रहे हैं। जो साथी फेसबुक के माध्यम से आपस में संपर्क में हैं वे आसानी से इसके साथ जुड़ सकते हैं। अभी यह संख्या कोई तीन सौ के आस-पास तो है ही।

"इप्टानामा" के इस अवतार की शुरूआत में मैं कुछ उन्हीं सामग्रियों को पोस्ट कर रहा हूं जो बुलेटिन में प्रकाशित हुई थीं। स्मारिका में प्रकाशित सामग्री का भी उपयोग करने का विचार है। कुछ पटकथायें, लेख भी बतौर "स्टार्टर" तैयार हैं। बाकी खबरों, रिपोर्टिंग व लेखादि के लिये आपका ही आसरा है। उम्मीद है कि आपका सहयोग सतत् मिलता रहेगा। 

एक निवेदन यह भी है कि ब्लाग की साज-सज्जा का मुझे कोई अनुभव नहीं है। इसलिये यह अभी जिस रूप में सामने आ रहा है वैसे ही स्वीकार करें। आगे इसमें सुधार की गुंजाइश तो है ही।

आपका ही,

दिनेश चौधरी

5 comments:

  1. E-Patrika "IPTANAMA" ke liye Badhai v Shubhkamanayen!Ummid hai,hum sab mil kar ise kamyab aur kargar banayenge.
    Poorv men IPTA ki patrikayen,bulletin samvaddatanon ki kami aur circulation ki diqatton ke karan band hui hain.Mere khyal men abhi ise is roop men hi chalayen.
    Agar IPTA ke koi zimmedar saathi angrezi men bhi aisi shuruat kar saken to swagat hai.
    -Jitendra Raghuvanshi

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  2. आपसे पूरी तरह सहमत हूँ दिनेश भाई । हार्ड कॉपी के लिये धन की आवश्यकता तो होगी ही , सिवाय इसके अन्य मुश्किलें भी हैं । इसलिये फिलहाल तो यही स्वरूप बेहतर होगा । फिर यह भी कि इस माध्यम से काफी लोग जुड़े हैं और इसमे तस्वीरें भी बेहतर तरीके से प्रकाशित हो सकती हैं । मैं कोशिश करूंगा कुछ सामग्री इसके लिये भेज सकूँ ।
    शुभकामनायें ।

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  4. Well beginning. Congrats Dinesh ji. Hoping that it will flourish and make its place with passing of time.The matter being published in it is really knowledgeable and beneficial in many aspects. Wishing for its super-duper success ji.

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  5. Congratulations. Dineshji, Your efforts are praiseworthy. You have started this historical document. This is the begining. I hope the day will come, when IPTANAMA will be referred as one of the authority. Best of Luck. I dont know how to send any material for inclussion in IPTANAMA. There must be some e'mail Id to send the material. Please make me know.

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